भोपाल। महिला अपराधों और पॉक्सो एक्ट के मामले में पहले ही मध्य प्रदेश अव्वल है और अब प्रदेश में बच्चों के लापता होने के मामलों में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. साल 2020 में ही जून माह तक करीब 6 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हुए हैं. इनमें बड़ी संख्या में लड़कियां भी शामिल हैं. मध्यप्रदेश में हर दिन औसतन 25 और हर महीने करीब 800 से ज्यादा बच्चे गुमशुदा हो रहे हैं. हालांकि पुलिस ने पिछले दिनों कुछ मिसिंग चाइल्ड को रिकवर भी किया है.
MP में हर दिन 25 और महीने में 800 से ज्यादा बच्चे होते हैं लापता
मध्यप्रदेश में नाबालिग बच्चों की किडनैपिंग के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं. हालांकि पुलिस इन्हें रोकने के लिए कई प्रकार के दावे कर रही हैं, लेकिन पुलिस इन मामलों को खत्म नहीं कर पाई है. जानिए लापता होते बच्चों से जुड़े आंकड़े.
फाइल फोटो
भोपाल। महिला अपराधों और पॉक्सो एक्ट के मामले में पहले ही मध्य प्रदेश अव्वल है और अब प्रदेश में बच्चों के लापता होने के मामलों में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. साल 2020 में ही जून माह तक करीब 6 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हुए हैं. इनमें बड़ी संख्या में लड़कियां भी शामिल हैं. मध्यप्रदेश में हर दिन औसतन 25 और हर महीने करीब 800 से ज्यादा बच्चे गुमशुदा हो रहे हैं. हालांकि पुलिस ने पिछले दिनों कुछ मिसिंग चाइल्ड को रिकवर भी किया है.
बड़े शहरों से सबसे ज्यादा लापता होते हैं बच्चे
राजधानी भोपाल और व्यावसायिक राजधानी इंदौर समेत जबलपुर और ग्वालियर से बच्चे सबसे ज्यादा लापता होते हैं. आलम यह है कि इंदौर से ही इस साल जून माह तक 2 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हुए हैं. वही भोपाल से 1,523 ग्वालियर से 1,167 बच्चे गुमशुदा हुए हैं. वही बात करें जबलपुर की तो जनवरी 2020 से लेकर जून 2020 तक यहां 2002 बच्चे लापता हुए हैं. इसके अलावा छोटे जिलों को मिलाकर इस साल जून माह तक कुल 6,981 बच्चे लापता हुए हैं. जिनमें बड़ी संख्या में लड़कियां भी शामिल हैं. भोपाल पुलिस का दावा है कि हर महीने बड़ी संख्या में बच्चे लापता होते हैं, भोपाल पुलिस ने अब तक 80 प्रतिशत बच्चों को रिकवर कर लिया है और केवल 20 फीसदी ही बच्चों को रिकवर करना बाकी है.
डायल 100 के पास भी पहुंचती है लापता बच्चो की शिकायतें
मध्य प्रदेश डायल हंड्रेड कंट्रोल रूम में भी गुमशुदा बच्चों की सैकड़ों शिकायतें पहुंचती है. डायल 100 की एसपी वीणा सिंह ने बताया कि कंट्रोल रूम में कई तरह की शिकायतें आती हैं. जिनको अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है. मिसिंग चाइल्ड की शिकायतों की बात करें तो डायल हंड्रेड के पास ही जनवरी से लेकर अब तक 2000 से ज्यादा शिकायतें पहुंची हैं. एसपी ने बताया कि शिकायत पर तत्काल डायल हंड्रेड की टीम मौके पर पहुंचती है. कई मामलों में बच्चों को रिकवर भी किया गया है. साल 2015 से लेकर अब तक डायल हंड्रेड कंट्रोल रूम में 14 हजार से भी ज्यादा मिसिंग चाइल्ड की शिकायतें पहुंची हैं.
पिछले साल इतनी बच्चियां हुई थी गुमशुदा
मध्य प्रदेश गृह विभाग के मुताबिक जनवरी से नवंबर 2019 तक 11 महीने में राज्य से 7,891 बच्चियां लापता हुई है. इस लिहाज से हर महीने 700 से ज्यादा बच्चियां प्रदेश में गुम हो रही है. बताया जा रहा है कि प्रदेश में हजारों मामले मानव तस्करी से जुड़े हैं. लेकिन पुलिस उनको गुमशुदा मानती है. प्रकरण भी मानव तस्करी की जगह गुमशुदा का बनाया जाता है. मध्यप्रदेश के मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, खंडवा, सिवनी, हरदा और बैतूल जिलों में लगातार बच्चियों की गुमशुदगी के मामले सामने आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है कि जो बच्चे चार माह तक बरामद नहीं हुए हैं. उन सभी मामलों को मानव तस्करी माना जाए. लेकिन मध्यप्रदेश में इस गाइडलाइन का भी सही तरीके से पालन नहीं हो रहा है.
पुलिस आधुनिकीकरण पर खर्च होते है इतने पैस
मध्यप्रदेश में पुलिस आधुनिकीकरण के लिए सरकार बड़ी राशि खर्च कर रही है प्रदेश के साथ-साथ केंद्र सरकार भी पुलिस सुधार के लिए लगातार मध्य प्रदेश को फंड भेज रही है. सरकार इन मामलों को रोकने के लिए तकनीकी सहारा भी ले रही है. इसके बावजूद भी प्रदेश में यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. बताया जा रहा है कि साल 2016-17 में मध्य प्रदेश को केंद्र सरकार ने 25 करोड़ रुपये आवंटित किए थे. साल 2017-18 में 33 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. और साल 2018-19 में मध्य प्रदेश को केंद्र सरकार ने 38 करोड़ रुपये जारी किए.
बड़े शहरों से सबसे ज्यादा लापता होते हैं बच्चे
राजधानी भोपाल और व्यावसायिक राजधानी इंदौर समेत जबलपुर और ग्वालियर से बच्चे सबसे ज्यादा लापता होते हैं. आलम यह है कि इंदौर से ही इस साल जून माह तक 2 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हुए हैं. वही भोपाल से 1,523 ग्वालियर से 1,167 बच्चे गुमशुदा हुए हैं. वही बात करें जबलपुर की तो जनवरी 2020 से लेकर जून 2020 तक यहां 2002 बच्चे लापता हुए हैं. इसके अलावा छोटे जिलों को मिलाकर इस साल जून माह तक कुल 6,981 बच्चे लापता हुए हैं. जिनमें बड़ी संख्या में लड़कियां भी शामिल हैं. भोपाल पुलिस का दावा है कि हर महीने बड़ी संख्या में बच्चे लापता होते हैं, भोपाल पुलिस ने अब तक 80 प्रतिशत बच्चों को रिकवर कर लिया है और केवल 20 फीसदी ही बच्चों को रिकवर करना बाकी है.
डायल 100 के पास भी पहुंचती है लापता बच्चो की शिकायतें
मध्य प्रदेश डायल हंड्रेड कंट्रोल रूम में भी गुमशुदा बच्चों की सैकड़ों शिकायतें पहुंचती है. डायल 100 की एसपी वीणा सिंह ने बताया कि कंट्रोल रूम में कई तरह की शिकायतें आती हैं. जिनको अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है. मिसिंग चाइल्ड की शिकायतों की बात करें तो डायल हंड्रेड के पास ही जनवरी से लेकर अब तक 2000 से ज्यादा शिकायतें पहुंची हैं. एसपी ने बताया कि शिकायत पर तत्काल डायल हंड्रेड की टीम मौके पर पहुंचती है. कई मामलों में बच्चों को रिकवर भी किया गया है. साल 2015 से लेकर अब तक डायल हंड्रेड कंट्रोल रूम में 14 हजार से भी ज्यादा मिसिंग चाइल्ड की शिकायतें पहुंची हैं.
पिछले साल इतनी बच्चियां हुई थी गुमशुदा
मध्य प्रदेश गृह विभाग के मुताबिक जनवरी से नवंबर 2019 तक 11 महीने में राज्य से 7,891 बच्चियां लापता हुई है. इस लिहाज से हर महीने 700 से ज्यादा बच्चियां प्रदेश में गुम हो रही है. बताया जा रहा है कि प्रदेश में हजारों मामले मानव तस्करी से जुड़े हैं. लेकिन पुलिस उनको गुमशुदा मानती है. प्रकरण भी मानव तस्करी की जगह गुमशुदा का बनाया जाता है. मध्यप्रदेश के मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, खंडवा, सिवनी, हरदा और बैतूल जिलों में लगातार बच्चियों की गुमशुदगी के मामले सामने आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है कि जो बच्चे चार माह तक बरामद नहीं हुए हैं. उन सभी मामलों को मानव तस्करी माना जाए. लेकिन मध्यप्रदेश में इस गाइडलाइन का भी सही तरीके से पालन नहीं हो रहा है.
पुलिस आधुनिकीकरण पर खर्च होते है इतने पैस
मध्यप्रदेश में पुलिस आधुनिकीकरण के लिए सरकार बड़ी राशि खर्च कर रही है प्रदेश के साथ-साथ केंद्र सरकार भी पुलिस सुधार के लिए लगातार मध्य प्रदेश को फंड भेज रही है. सरकार इन मामलों को रोकने के लिए तकनीकी सहारा भी ले रही है. इसके बावजूद भी प्रदेश में यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. बताया जा रहा है कि साल 2016-17 में मध्य प्रदेश को केंद्र सरकार ने 25 करोड़ रुपये आवंटित किए थे. साल 2017-18 में 33 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. और साल 2018-19 में मध्य प्रदेश को केंद्र सरकार ने 38 करोड़ रुपये जारी किए.