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बादल सरोज से जानिए किसान आंदोलन कब खत्म होगा

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Published : Mar 21, 2021, 1:45 PM IST

कोरबा में महापंचायत के लिए पहुंचे ऑल इंडिया किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज ने ETV भारत से चर्चा में बताया कि देश को बचाने के लिए इस आंदोलन की जरूरत है. किसान आंदोलन के विषय में भ्रांतियां फैलकर इसे बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन वास्तविकता यह है कि दिल्ली के सभी छह बॉर्डर पर किसान डटे हुए हैं. 35 किलोमीटर लंबा किसानों का अघोषित शहर बस चुका है. सरकार ने इंटरनेट सेवा बंद कर दी तब स्थानीय लोगों ने भी समर्थन किया और अपने निजी वाईफाई का पासवर्ड घरों के दरवाजों पर लिख दिया, ताकि किसान आंदोलन चलता रहे.

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बादल सरोज से खास बात

भोपाल/ कोरबा: दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को अब 100 दिन से भी ज्यादा का समय बीत चुका है. इस आंदोलन से जुड़े किसान नेताओं की मानें तो अब किसान आंदोलन और भी व्यापक रुख अख्तियार करने की ओर अग्रसर है. किसान आंदोलन से जुड़े और इसके संचालन करने वालों में शुमार ऑल इंडिया किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज इसी सिलसिले में छत्तीसगढ़ का दौरा कर रहे हैं. वह लोगों को किसान आंदोलन से जुड़ने के लिए और इस दिशा में जागरूकता फैलाने के लिए समूचे छत्तीसगढ़ में महापंचायतों का आयोजन कर रहे हैं.

बादल सरोज कोरबा में भी महापंचायत के लिए पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने ETV भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन क्यों जरूरी है? देश के वर्तमान हालात और वर्तमान में किसान आंदोलन की क्या स्थिति है.

सवाल- किसान आंदोलन क्यों, देश को इसकी जरूरत क्या है?


जवाब- यह आंदोलन अब सिर्फ किसानों का आंदोलन ही रह गया है, अब यह देश को बचाने का आंदोलन है. देश की संप्रभुता और स्वतंत्रता का आखिरी विकेट गिरने से बचाने के लिए यह आंदोलन किया जा रहा है. मोदी सरकार के तीन कृषि कानून अगर लागू किए गए तो आने वाले 10 सालों में खेती और किसानी खत्म जाएगी. किसानों की जमीन कॉरपोरेट के हाथों में चली जाएगी. विदेशी कॉरपोरेट कंपनी भी किसानों की जमीन को हथियाने में कामयाब हो जाएगी. लोगों की आजादी खतरे में पड़ जाएगी, तब स्थिति बेहद भयानक होगी. इसलिए यह आंदोलन देश की जरूरत है, ना सिर्फ किसानों को बल्कि हर आदमी को अब इससे जुड़ना होगा.

सवाल- सरकार जब आपसे कहती है कि MSP खत्म नहीं होगी और इससे किसानों का अहित नहीं होगा तब आप लोग विश्वास क्यों नहीं कर लेते?


जवाब- सरकार पर हम विश्वास इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हमारी सरकार से बातचीत चल रही थी. चौथे दौर की बातचीत में जब हमने डेढ़ घंटे तक समझाया तब सरकार ने हमारी बातें सुनी. हमने सरकार को यह बताया कि यह कानून क्यों बुरे हैं और इससे किसानों का कितना अहित होगा. हमारे 40 लोगों का डेलिगेशन सरकार से बात करने जाता था, पांचवें दौर की बातचीत में हम दोनों टाइम का खाना साथ लेकर गए थे. हमने कहा कि आज आप हमें समझा दीजिए कि इस कानून से किसानों का कैसे हित होगा, अच्छा क्या है? तब सरकार की ओर से यह कहा गया कि 40 लोगों को समझाना संभव नहीं है. चार-पांच लोगों की एक- एक कमेटी बनाईये उन्हें हम समझा देंगे.
जबकि वास्तविकता यह है कि उनके पास समझाने के लिए कुछ है ही नहीं. बार-बार एक ही बात कहते हैं कि किसान कहीं भी अपना धान बेच सकता है, वह तो आज भी बेच सकता है. इसमें कहीं कोई परिवर्तन नहीं है, लेकिन क्या यह संभव है कि 4 या 5 एकड़ में धान उगाने वाला किसान बेंगलुरु जाकर अपना धान बेच पाए. यह संभव नहीं है, किसानों को लागत का मूल्य नहीं मिल पा रहा है.

बादल सरोज से खास बात

'ब्राजील, अमेरिका फिलीपींस के किसान बर्बाद हुए'

हमने सरकार को बताया है कि जहां-जहां इस तरह के कानून लागू हुए हैं. वहां के किसान बर्बाद हो गए हैं. ब्राजील, अमेरिका फिलीपींस के किसान इसका उपयुक्त उदाहरण हैं कि कैसे वहां की जमीन कॉरपोरेट्स में चली गई और किसान बर्बाद हो गया.

'MSP में सिर्फ ढाई फसलों की खरीदी'

मोदी सरकार ने अपने मेनिफेस्टो में कहा था कि हम सरकार में आते ही स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू कर देंगे. आज तक ऐसा नहीं हो पाया है. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इसे लागू नहीं कर सकते. MSP में 23 तरह की फसलों को खरीदने का प्रावधान है, लेकिन सिर्फ ढाई फसलों की खरीदी होती है.

'मध्य प्रदेश में सरसों की MSP पर नहीं हो रही खरीदी'

धान गेहूं और कहीं-कहीं कुछ किस्म की दाल खरीदी जाती है. जब मैं महापंचायत में था तब भी मुझे ग्वालियर से फोन आया कि वहां सरसों की खरीदी समर्थन मूल्य पर नहीं हो रही है. हालात बहुत बुरे हैं, यदि देश को स्वस्थ बनाना है तो आपको इसका हिमोग्लोबिन जांचना होगा, इसकी बीपी, शुगर की जांच करनी होगी. केवल हवा हवाई बयानबाजी से देश का स्वास्थ्य नहीं सुधर सकता समुचित प्रयास करने होंगे.

सवाल- इस आंदोलन के विषय में यह कहा जाता है कि यह केवल पंजाब, हरियाणा और कुछ राज्यों का आयोजन है, आम किसान नहीं जुड़ पा रहे हैं ?
जवाब- किसान आंदोलन की शुरुआत पंजाब से हुई थी इसे नकारा नहीं जा सकता. इतिहास में जब अंग्रेज सरकार ने तीन कानून लाए थे तब पंजाब में पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन की शुरुआत हुई थी. भगत सिंह के पिता उस आंदोलन में शामिल हुए थे. तब अंग्रेज सरकार को वह कानून वापस लेना पड़ा था. ऐतिहासिक सत्य है और अब भी किसान आंदोलन की शुरुआत पंजाब से हुई है. इसका मतलब यह नहीं हुआ है कि यह आंदोलन पंजाब के किसान कर रहे हैं या हरियाणा के किसान कर रहे हैं. किसान आंदोलन से देश का किसान जुड़ रहा है. लोग खुद ही दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शन करने आ रहे हैं. आजादी की लड़ाई की शुरुआत भी पंजाब से हुई थी तो क्या वह सिर्फ पंजाब का आंदोलन बन कर रहा? नहीं! इस आंदोलन की व्यापकता को समझना होगा. मैं लगातार महा पंचायतों में लोगों को संबोधित कर रहा हूं. इस दौरान मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसने मुझे कहा हो कि इस कानून से किसानों का भला होगा या किसी भी तरह का कोई हित होगा.

सवाल- वर्तमान में किसान आंदोलन की क्या स्थिति है?


जवाब- पिछले 26 जनवरी को जब हमारा धरना प्रदर्शन चल रहा था. तब एक प्रायोजित घटना करवाई गई, सरकार के ही कुछ लोगों ने लाल किले पर झंडा फहरा दिया और किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश हुई, लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ दिनों बाद आंदोलन और तेज हो गया. किसान दिल्ली बॉर्डर पर जमे हुए हैं, और वह हटने को तैयार नहीं है. आने वाले 23 मार्च को भगत सिंह की पुण्यतिथि पर शहादत दिवस मनाया जाएगा. उसके बाद 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान करेंगे. हम सभी देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को जागरूक करने के लिए निकले हैं. मैं छत्तीसगढ़ आया हूं, इसी तरह हमारे और भी साथी उड़ीसा, मध्य प्रदेश और अन्य स्थानों पर जा रहे हैं. लोगों को जागरूक कर रहे हैं. उन्हें आंदोलन से जोड़ रहे हैं. लोग लगातार इस आंदोलन से जुड़ रहे हैं. इसकी व्यापकता बढ़ रही है, आंदोलन और भी व्यापक होगा.

सवाल- आपने कहा कि 35 किलोमीटर लंबा शहर बस गया है, इसके बारे में बताइए ?


जवाब- किसान आंदोलन को अगर समझना है तो दिल्ली आकर देखना होगा. वहां एक अलग तरह का माहौल बन गया है. 35 किलोमीटर लंबा किसानों का शहर बन गया है. जहां ट्रैक्टर की लंबी कतारें लगी रहती है. हर गांव से किसान आ रहे हैं. 60 प्रतिशत गांव के लोग वहां पहुंच रहे हैं. आंदोलन की अगुवाई करते हैं, इसके बाद वह फिर वापस लौट जाते हैं. उसके बाद गांव के दूसरे लोग वहां आकर रुकते हैं. किसी को कोई जल्दी नहीं है, सभी जानते हैं कि लड़ाई लंबी चलेगी. इसलिए सब पूरे इंतजाम के साथ वहां डटे हुए हैं. अलग-अलग क्षेत्रों से दूध, दही, मक्खन, गेहूं का इंतजाम हो रहा है. बिजली बंद हुई तब लोगों ने अपने घर खोल दिए जब सरकार ने इंटरनेट की सेवा बाधित की तब वहां के स्थानीय लोगों ने अपने निजी वाईफाई का पासवर्ड अपने दरवाजे पर लिख दिया और इंटरनेट इस्तेमाल करने की छूट दे दी, ताकि किसान आंदोलन चलता रहे. हाल ही में राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने कहा था कि किसान थकेगा नहीं, उन्होंने ठीक कहा था. किसान थकेगा नहीं वह और भी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सरकार से लड़ेगा और हम इसके लिए तैयार हैं.

सवाल- आंदोलन को 100 दिन से ज्यादा का समय बीत चुका है. आखिर और कब तक चलेगा यह आंदोलन ?


जवाब- देश के इतिहास में पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन 9 माह तक चला था. अब किसान आंदोलन कब तक चलेगा यह मोदी सरकार पर निर्भर करता है. यदि वह कानून वापस ले ले तो आंदोलन खत्म हो जाएगा. लेकिन हमने सोच लिया है कि वहां से मर कर जाएंगे लेकिन हार कर वापस नहीं जाएंगे. जब तक कानून वापस नहीं होंगे. तब तक हम आंदोलन करते रहेंगे. फिर चाहे इसके लिए अगले लोकसभा चुनाव का ही इंतजार क्यों ना करना पड़े, हम डटे रहेंगे.

भोपाल/ कोरबा: दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को अब 100 दिन से भी ज्यादा का समय बीत चुका है. इस आंदोलन से जुड़े किसान नेताओं की मानें तो अब किसान आंदोलन और भी व्यापक रुख अख्तियार करने की ओर अग्रसर है. किसान आंदोलन से जुड़े और इसके संचालन करने वालों में शुमार ऑल इंडिया किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज इसी सिलसिले में छत्तीसगढ़ का दौरा कर रहे हैं. वह लोगों को किसान आंदोलन से जुड़ने के लिए और इस दिशा में जागरूकता फैलाने के लिए समूचे छत्तीसगढ़ में महापंचायतों का आयोजन कर रहे हैं.

बादल सरोज कोरबा में भी महापंचायत के लिए पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने ETV भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन क्यों जरूरी है? देश के वर्तमान हालात और वर्तमान में किसान आंदोलन की क्या स्थिति है.

सवाल- किसान आंदोलन क्यों, देश को इसकी जरूरत क्या है?


जवाब- यह आंदोलन अब सिर्फ किसानों का आंदोलन ही रह गया है, अब यह देश को बचाने का आंदोलन है. देश की संप्रभुता और स्वतंत्रता का आखिरी विकेट गिरने से बचाने के लिए यह आंदोलन किया जा रहा है. मोदी सरकार के तीन कृषि कानून अगर लागू किए गए तो आने वाले 10 सालों में खेती और किसानी खत्म जाएगी. किसानों की जमीन कॉरपोरेट के हाथों में चली जाएगी. विदेशी कॉरपोरेट कंपनी भी किसानों की जमीन को हथियाने में कामयाब हो जाएगी. लोगों की आजादी खतरे में पड़ जाएगी, तब स्थिति बेहद भयानक होगी. इसलिए यह आंदोलन देश की जरूरत है, ना सिर्फ किसानों को बल्कि हर आदमी को अब इससे जुड़ना होगा.

सवाल- सरकार जब आपसे कहती है कि MSP खत्म नहीं होगी और इससे किसानों का अहित नहीं होगा तब आप लोग विश्वास क्यों नहीं कर लेते?


जवाब- सरकार पर हम विश्वास इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हमारी सरकार से बातचीत चल रही थी. चौथे दौर की बातचीत में जब हमने डेढ़ घंटे तक समझाया तब सरकार ने हमारी बातें सुनी. हमने सरकार को यह बताया कि यह कानून क्यों बुरे हैं और इससे किसानों का कितना अहित होगा. हमारे 40 लोगों का डेलिगेशन सरकार से बात करने जाता था, पांचवें दौर की बातचीत में हम दोनों टाइम का खाना साथ लेकर गए थे. हमने कहा कि आज आप हमें समझा दीजिए कि इस कानून से किसानों का कैसे हित होगा, अच्छा क्या है? तब सरकार की ओर से यह कहा गया कि 40 लोगों को समझाना संभव नहीं है. चार-पांच लोगों की एक- एक कमेटी बनाईये उन्हें हम समझा देंगे.
जबकि वास्तविकता यह है कि उनके पास समझाने के लिए कुछ है ही नहीं. बार-बार एक ही बात कहते हैं कि किसान कहीं भी अपना धान बेच सकता है, वह तो आज भी बेच सकता है. इसमें कहीं कोई परिवर्तन नहीं है, लेकिन क्या यह संभव है कि 4 या 5 एकड़ में धान उगाने वाला किसान बेंगलुरु जाकर अपना धान बेच पाए. यह संभव नहीं है, किसानों को लागत का मूल्य नहीं मिल पा रहा है.

बादल सरोज से खास बात

'ब्राजील, अमेरिका फिलीपींस के किसान बर्बाद हुए'

हमने सरकार को बताया है कि जहां-जहां इस तरह के कानून लागू हुए हैं. वहां के किसान बर्बाद हो गए हैं. ब्राजील, अमेरिका फिलीपींस के किसान इसका उपयुक्त उदाहरण हैं कि कैसे वहां की जमीन कॉरपोरेट्स में चली गई और किसान बर्बाद हो गया.

'MSP में सिर्फ ढाई फसलों की खरीदी'

मोदी सरकार ने अपने मेनिफेस्टो में कहा था कि हम सरकार में आते ही स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू कर देंगे. आज तक ऐसा नहीं हो पाया है. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इसे लागू नहीं कर सकते. MSP में 23 तरह की फसलों को खरीदने का प्रावधान है, लेकिन सिर्फ ढाई फसलों की खरीदी होती है.

'मध्य प्रदेश में सरसों की MSP पर नहीं हो रही खरीदी'

धान गेहूं और कहीं-कहीं कुछ किस्म की दाल खरीदी जाती है. जब मैं महापंचायत में था तब भी मुझे ग्वालियर से फोन आया कि वहां सरसों की खरीदी समर्थन मूल्य पर नहीं हो रही है. हालात बहुत बुरे हैं, यदि देश को स्वस्थ बनाना है तो आपको इसका हिमोग्लोबिन जांचना होगा, इसकी बीपी, शुगर की जांच करनी होगी. केवल हवा हवाई बयानबाजी से देश का स्वास्थ्य नहीं सुधर सकता समुचित प्रयास करने होंगे.

सवाल- इस आंदोलन के विषय में यह कहा जाता है कि यह केवल पंजाब, हरियाणा और कुछ राज्यों का आयोजन है, आम किसान नहीं जुड़ पा रहे हैं ?
जवाब- किसान आंदोलन की शुरुआत पंजाब से हुई थी इसे नकारा नहीं जा सकता. इतिहास में जब अंग्रेज सरकार ने तीन कानून लाए थे तब पंजाब में पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन की शुरुआत हुई थी. भगत सिंह के पिता उस आंदोलन में शामिल हुए थे. तब अंग्रेज सरकार को वह कानून वापस लेना पड़ा था. ऐतिहासिक सत्य है और अब भी किसान आंदोलन की शुरुआत पंजाब से हुई है. इसका मतलब यह नहीं हुआ है कि यह आंदोलन पंजाब के किसान कर रहे हैं या हरियाणा के किसान कर रहे हैं. किसान आंदोलन से देश का किसान जुड़ रहा है. लोग खुद ही दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शन करने आ रहे हैं. आजादी की लड़ाई की शुरुआत भी पंजाब से हुई थी तो क्या वह सिर्फ पंजाब का आंदोलन बन कर रहा? नहीं! इस आंदोलन की व्यापकता को समझना होगा. मैं लगातार महा पंचायतों में लोगों को संबोधित कर रहा हूं. इस दौरान मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसने मुझे कहा हो कि इस कानून से किसानों का भला होगा या किसी भी तरह का कोई हित होगा.

सवाल- वर्तमान में किसान आंदोलन की क्या स्थिति है?


जवाब- पिछले 26 जनवरी को जब हमारा धरना प्रदर्शन चल रहा था. तब एक प्रायोजित घटना करवाई गई, सरकार के ही कुछ लोगों ने लाल किले पर झंडा फहरा दिया और किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश हुई, लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ दिनों बाद आंदोलन और तेज हो गया. किसान दिल्ली बॉर्डर पर जमे हुए हैं, और वह हटने को तैयार नहीं है. आने वाले 23 मार्च को भगत सिंह की पुण्यतिथि पर शहादत दिवस मनाया जाएगा. उसके बाद 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान करेंगे. हम सभी देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को जागरूक करने के लिए निकले हैं. मैं छत्तीसगढ़ आया हूं, इसी तरह हमारे और भी साथी उड़ीसा, मध्य प्रदेश और अन्य स्थानों पर जा रहे हैं. लोगों को जागरूक कर रहे हैं. उन्हें आंदोलन से जोड़ रहे हैं. लोग लगातार इस आंदोलन से जुड़ रहे हैं. इसकी व्यापकता बढ़ रही है, आंदोलन और भी व्यापक होगा.

सवाल- आपने कहा कि 35 किलोमीटर लंबा शहर बस गया है, इसके बारे में बताइए ?


जवाब- किसान आंदोलन को अगर समझना है तो दिल्ली आकर देखना होगा. वहां एक अलग तरह का माहौल बन गया है. 35 किलोमीटर लंबा किसानों का शहर बन गया है. जहां ट्रैक्टर की लंबी कतारें लगी रहती है. हर गांव से किसान आ रहे हैं. 60 प्रतिशत गांव के लोग वहां पहुंच रहे हैं. आंदोलन की अगुवाई करते हैं, इसके बाद वह फिर वापस लौट जाते हैं. उसके बाद गांव के दूसरे लोग वहां आकर रुकते हैं. किसी को कोई जल्दी नहीं है, सभी जानते हैं कि लड़ाई लंबी चलेगी. इसलिए सब पूरे इंतजाम के साथ वहां डटे हुए हैं. अलग-अलग क्षेत्रों से दूध, दही, मक्खन, गेहूं का इंतजाम हो रहा है. बिजली बंद हुई तब लोगों ने अपने घर खोल दिए जब सरकार ने इंटरनेट की सेवा बाधित की तब वहां के स्थानीय लोगों ने अपने निजी वाईफाई का पासवर्ड अपने दरवाजे पर लिख दिया और इंटरनेट इस्तेमाल करने की छूट दे दी, ताकि किसान आंदोलन चलता रहे. हाल ही में राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने कहा था कि किसान थकेगा नहीं, उन्होंने ठीक कहा था. किसान थकेगा नहीं वह और भी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सरकार से लड़ेगा और हम इसके लिए तैयार हैं.

सवाल- आंदोलन को 100 दिन से ज्यादा का समय बीत चुका है. आखिर और कब तक चलेगा यह आंदोलन ?


जवाब- देश के इतिहास में पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन 9 माह तक चला था. अब किसान आंदोलन कब तक चलेगा यह मोदी सरकार पर निर्भर करता है. यदि वह कानून वापस ले ले तो आंदोलन खत्म हो जाएगा. लेकिन हमने सोच लिया है कि वहां से मर कर जाएंगे लेकिन हार कर वापस नहीं जाएंगे. जब तक कानून वापस नहीं होंगे. तब तक हम आंदोलन करते रहेंगे. फिर चाहे इसके लिए अगले लोकसभा चुनाव का ही इंतजार क्यों ना करना पड़े, हम डटे रहेंगे.

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