भोपाल। मध्यप्रदेश में हुए तीन हज़ार करोड़ रुपए के ई टेंडर घोटाले को लेकर अब प्रवर्तन निदेशालय ने नए सिरे से कार्रवाई शुरू की है. इसी कड़ी में ईडी की टीम ने बुधवार को भोपाल में छापामार कार्रवाई की. बताया जा रहा है कि ईडी ने उन फर्म से जुड़े व्यक्तियों के यहां दस्तावेज खंगाले जो जल संसाधन विभाग के ठेके लेते रहे हैं. प्रवर्तन निदेशालय के छापों के बाद अब ईओडब्ल्यू भी हरकत में आ गया है.
ईडी के बाद ईओडब्ल्यू भी कर सकता है कार्रवाई
ई टेंडर घोटाले में भोपाल और हैदराबाद में ईडी की छापामार कार्रवाई के बाद अब इस पूरे मामले की जांच कर रही एजेंसी ईओडब्ल्यू भी हरकत में आ गई है. बताया जा रहा है कि ईओडब्ल्यू की टीम भी अब मध्य प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में टेंडर लेने वाली अलग-अलग कंपनियों पर शिकंजा कस सकती है. पहले हुई कार्रवाई में ईओडब्ल्यू ने ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन और तेलंगाना के बड़े कारोबारी राजू मेंटेना के ठिकानों पर भी छापामार कार्रवाई की थी और दस्तावेज जप्त किए थे. लेकिन इस कार्रवाई में कुछ खास ईओडब्ल्यू के हाथ नहीं लगा था. अब ईओडब्ल्यू इस मामले में तेलंगाना, मध्यप्रदेश और गुजरात समेत बेंगलुरु की उन कंपनियों पर शिकंजा कस सकती है जो लगातार मध्यप्रदेश में अलग-अलग टेंडर लेते रहे हैं.
ऑस्मो आईटी कंपनी के डायरेक्टर्स को किया था गिरफ्तार
ई टेंडर घोटाले में एफआईआर दर्ज करने के बाद ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए ईओडब्ल्यू की टीम ने भोपाल के मानसरोवर स्थित ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन कंपनी पर छापामार कार्रवाई की थी. कई अहम दस्तावेज यहां से बरामद किए गए थे. इतना ही नहीं इस कंपनी के 3 अधिकारियों को भी ईओडब्ल्यू ने गिरफ्तार कर जेल भेजा था. इन तीनों की निशानदेही पर पुलिस ने कुछ बिचौलियों को भी गिरफ्तार किया था, लेकिन सारे आरोपी एक-एक कर जमानत पर रिहा हो गए हैं. ईओडब्ल्यू इस पूरे मामले में किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है.
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मंत्री के करीबी ने की थी टेंडरों में टेम्परिंग
ई टेंडर घोटाले में ऑस्मो आईटी कंपनी के डायरेक्टर की निशानदेही पर पेशे से इंजीनियर और तीन कंपनियों के मालिक मनीष खरे को ईओडब्ल्यू ने गिरफ्तार किया था. उस वक्त ईओडब्ल्यू को जानकारी मिली थी कि जल संसाधन विभाग का ओरिजिनल टेंडर 116 करोड़ रुपए का था. मनीष खरे ने ऑस्मो कंपनी के संचालकों के साथ मिलकर टेंडर में टेंपरिंग की और उसे 105 करोड़ रुपए का कर दिया.
मनीष खरे ने यह टेंडर सोरठिया बेलजी एन्ड रत्न कंपनी गुजरात को दिलाया था. बताया जाता है कि आरोपी मनीष खरे को इसके एवज में 1 करोड़ 23 लाख रुपये कमीशन मिला था. हालांकि यह टेंडर निरस्त हो गया और कमीशन की राशि अकाउंट के जरिए खरे ने गुजरात की कंपनी को वापस की है. इन तमाम तकनीकी साक्ष्यों को जुटाने के बाद ही ईओडब्ल्यू ने मनीष खरे को गिरफ्तार किया था. मनीष खरे तत्कालीन सरकार में रहे एक कद्दावर मंत्री के काफी करीबी हैं.
घोटाले की जांच लंबे समय से जस की तस
मध्यप्रदेश में हुए 3 हज़ार करोड़ रुपये के ई टेंडर घोटाले की जांच लंबे समय से जस की तस है. काफी समय से यह जांच अटकी पड़ी हुई है. जबकि ई टेंडर घोटाले में साक्ष्य और तकनीकी जांच में पाया गया था कि ई प्रोक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ कर मध्यप्रदेश जल निगम, लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग और मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम के कुल 9 टेंडरों को सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ कर जारी किया गया है. ईओडब्ल्यू ने इन टेंडरों की तकनीकी जांच के लिए कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम को करीब 13 हार्ड डिस्क भेजी थी. जिनमें टेंपरिंग की पुष्टि हुई थी.
क्या है पूरा मामला
ई टेंडर घोटाले में तत्कालीन कमलनाथ सरकार के दौरान 9 टेंडर को लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी. आरोप लगे थे कि मध्य प्रदेश के अलग-अलग सरकारी विभागों से जारी हुए ई टेंडरों में टेंपरिंग की गई है और पसंदीदा कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया है. जिसके बाद 9 टेंडरों में गड़बड़ियों को लेकर ईओडब्ल्यू ने ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन कंपनी के ठिकानों पर छापेमारी कार्रवाई की. कई दस्तावेज बरामद किए और इस कंपनी के तीन डायरेक्टर को गिरफ्तार किया गया.
प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और 3 हज़ार करोड़ के ई टेंडर घोटाले की जांच ठंडे बस्ते में चली गई. इतना ही नहीं जिन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, वह सभी आरोपी एक-एक कर जमानत पर रिहा भी हो गए.माना जा रहा था कि इतने बड़े घोटाले की जांच अब खत्म सी हो गई है लेकिन प्रवर्तन निदेशालय के छापों के बाद एक बार फिर ईओडब्ल्यू एक्शन मोड में आ सकती है और इस मामले को लेकर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर सकती है.