भोपाल। मध्यप्रदेश देश का ऐसा एकलौता राज्य है, जहां पिछले 4 साल से राज्य सरकार के कर्मचारी-अधिकारियों को पदोन्नति हासिल नहीं हुई है. ऐसी स्थिति इसलिए बनी, क्योंकि प्रमोशन में आरक्षण के विवाद के चलते हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश की पदोन्नति की प्रक्रिया को रद्द कर दिया था. सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई, तो सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया. लेकिन पिछले 4 साल में इस मामले पर किसी तरह की सुनवाई ना होने के कारण प्रदेश के कर्मचारी अधिकारी बिना पदोन्नति के रिटायर हो रहे हैं और जो सेवारत हैं वह पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं.
पिछले 4 सालों में करीब 50 हजार कर्मचारी अधिकारी बिना प्रमोशन के रिटायर
प्रमोशन में आरक्षण के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मप्र हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार को स्थगन आदेश दे दिया था. ये स्थगन आदेश मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दिया गया था. जिसमें एमपी हाईकोर्ट ने सरकार की पदोन्नति प्रक्रिया को खारिज कर दिया था. 2016 में सुप्रीम कोर्ट में स्टे दिए जाने के बाद मप्र में एक भी विभाग में कर्मचारी-अधिकारियों का प्रमोशन नहीं हुआ है. एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक करीब 50 हजार कर्मचारी-अधिकारी पदोन्नति का इंतजार करते-करते रिटायर हो गए हैं और हर साल 15 से 20 हजार कर्मचारी पदोन्नति के इंतजार करते हुए रिटायर हो जाते हैं.
हाईकोर्ट ने मप्र लोक सेवा पदोन्नति अधिनियम 2002 को कर दिया था खारिज
अप्रैल 2016 में मप्र हाईकोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण को अवैध बताते हुए सिविल सर्विस प्रमोशन रूल्स 2002 को असंवैधानिक करार दिया था. इसके साथ ही मप्र हाई कोर्ट ने इस नियम के तहत किए गए प्रमोशन को भी रद्द करने को कहा था. मप्र हाई कोर्ट ने फैसला सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज फैसले को आधार बनाते हुए दिया था. इस फैसले के बाद तत्कालीन शिवराज सरकार के मुख्य सचिव एंटोनी डिसा ने अधिकारियों की बैठक बुलाकर फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही थी. मप्र सरकार ने जब जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, तो सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को स्टे ऑर्डर दे दिया था. लेकिन इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई नहीं हुई है.
प्रमोशन ना होने से कर्मचारियों में बढ़ रहा है अवसाद
पिछले 4 सालों में प्रमोशन का इंतजार करते करते करीब 50 हजार कर्मचारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो चुके हैं. हर साल करीब 15 से 20 हजार कर्मचारी अधिकारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में कर्मचारियों में निराशा और हताशा का वातावरण बन रहा है. इससे कर्मचारी की कार्य क्षमता पर असर पड़ रहा है और कर्मचारी अधिकारी अपने अधिकार से वंचित हैं.
सरकार के कामकाज और योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी पड़ रहा है असरकर्मचारियों की पदोन्नति ना होने के कारण उच्च स्तर के पद खाली पड़े हैं. ऐसी स्थिति में सरकार के कामकाज पर असर पड़ रहा है. सरकार के निर्णय लेने की प्रक्रिया बाधित हो रही है और योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी गंभीर असर पड़ रहा है. कई विभागों में पदोन्नति ना मिलने वाले कर्मचारियों को प्रभारी के रूप में काम कराया जा रहा है.
नए नियम बनाने की चुनावी घोषणा को सरकार ने डाला ठंडे बस्ते मेंमप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री एल एन शर्मा का कहना है कि इन परिस्थितियों को लेकर कर्मचारी संगठन लगातार सरकार से बातचीत कर रहे हैं. लेकिन अभी तक बीच का कोई रास्ता नहीं निकल पाया है. हालांकि चुनाव के पहले सरकार ने जरूर घोषणा की थी कि हम पदोन्नति के संबंध में नए नियम बना रहे हैं, जिसके आधार पर पदोन्नति दी जाएगी. लेकिन इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. इन सारी व्यवस्थाओं के कारण मप्र के अधिकारियों और कर्मचारियों में काफी नाराजगी है. उनका कहना है कि हम फिर एक बार मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री से मिलकर मांग करेंगे कि कोई वैकल्पिक व्यवस्था निकाली जाए. जिससे मप्र में अधिकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त होने के पहले पदोन्नति प्राप्त कर सकें.
सुप्रीम कोर्ट का स्थगन निरस्त कराने और वैकल्पिक व्यवस्था के लिए सरकार ने नहीं किए कोई प्रयास मप्र सचिवालयीन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक कहते हैं कि इस अव्यवस्था के कारण कर्मचारी-अधिकारियों का जो नुकसान हो रहा है, वह अपनी जगह है. सबसे ज्यादा नुकसान स्वयं शासन का हो रहा है. उच्च स्तर के पद खाली होने के कारण निर्णय प्रक्रिया बाधित हो रही है. शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में बाधा हो रही है. एक व्यक्ति तीन-तीन जगह का काम देख रहा है, तो निश्चित है कि वह एक जगह के काम पर फोकस नहीं कर पा रहा है. कर्मचारी और अधिकारी वर्ग में हताशा और निराशा का वातावरण व्याप्त है. लोक प्रशासन का सर्वमान्य सिद्धांत है कि पदोन्नति एक निश्चित समय बाद मिले,तो मनोबल बढ़ा रहता है. लेकिन पिछले 4 साल में सुप्रीम कोर्ट के स्थगन समाप्त कराने के लिए कोई गंभीरतापूर्वक प्रयास नहीं किए गए हैं, ना ही ऐसी कोई वैकल्पिक व्यवस्था बनाई गई है. अंत में परेशान होकर हर विभाग और संवर्ग अपने अपने तरीके खोज रहा है. उनका कहना है कि मप्र पुलिस ने प्रस्ताव बनाया है कि हम अपने यहां मानद पदोन्नति देंगे,लोक निर्माण विभाग ने प्रभारी व्यवस्था लागू कर अगले पद पर प्रभाव देना शुरू कर दिया है. इसी तरीके से कर्मचारी वर्ग अपने उपाय ढूंढ रहे हैं, जो कि प्रशासन के लिए शुभ लक्षण नहीं हैं. प्रशासन में एक नियम सबके लिए सर्वमान्य होना चाहिए. इसके लिए मंत्रालय कर्मचारी संघ ने मुहिम चालू की है. हमने पूरे मंत्रालय के सभी कर्मचारी अधिकारियों के हस्ताक्षर कराए थे और 28 नवंबर को मुख्य सचिव को सौंपे थे. अब हम मुहिम को और आगे बढ़ाएंगे.
वेतनमान के हिसाब से पदनाम क्यों नहीं देती है सरकार पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा कहते हैं कि शिवराज सरकार कर्मचारियों के मामले में बहुत शिथिल है. ना केवल उनकी पदोन्नति का मामला है और भी मामलों में निर्णय नहीं लेती है. यह मांग आती है कि जिस स्तर पर वेतनमान पहुंच गया है, वह पदनाम उनको दे दीजिए. जब कोर्ट का निर्णय आएगा, तो उस हिसाब से निर्णय लेंगे. लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं देती है. दूसरी तरफ यह प्रस्ताव लेकर आई है कि 20 साल नौकरी और 50 साल पूरे होने पर रिटायर कर दो.
मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन,वैकल्पिक व्यवस्था पर हो रहा है विचार सामान्य प्रशासन विभाग के अतिरिक्त प्रमुख सचिव विनोद कुमार का कहना है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के कारण कुछ भी कहना उचित नहीं होगा. हालांकि पदोन्नति को लेकर शासन विचार कर रहा है.