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बच्चों के साथ ना रहने से अकेलेपन का शिकार हो रहे बुजुर्ग, लगातार बढ़ रहे एंपटी नेस्ट सिंड्रोम के मामले

मध्य प्रदेश में इन दिनों बुजुर्ग एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम (Empty Nest Syndrome) का शिकार हो रहे है. मनोचिकित्सक और काउंसलर्स का मानना है कि अकेलेपन के कारण यह बीमारी बुजुर्गों में बढ़ रही है. इसका मुख्य करण बच्चों का अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना है. बच्चे नौकरी और पढ़ाई के सिलसिले में बाहर चले जाते है, जिसके कारण माता-पिता अकेले रहते है.

elderly people suffering from loneliness
अकेलेपन का शिकार हो रहे बुजुर्ग
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Published : Oct 10, 2021, 8:08 PM IST

Updated : Oct 10, 2021, 9:57 PM IST

भोपाल। बुजुर्ग इन दिनों एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम (Empty Nest Syndrome) का शिकार हो रहे है. यह बीमारी अकेलेपन के कारण हो रही है. इसका प्रमुख कारण बच्चों का माता-पिता के साथ ना रहना है. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ नहीं रहते उन बुजुर्गों में इस प्रकार की बीमारी हो रही है. मनोचिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी के लगातार मरीज पूरे देश में बुजुर्ग शिकार हो रहे है. मनोचिकित्सक और काउंसलर के पास रोज ऐसे बुजुर्गों के फोन आते हैं, जो इस बीमारी से पीड़ित है.

बच्चों के साथ ना रहने से अकेलेपन का शिकार हो रहे बुजुर्ग

नौकरी लगने के बाद दूर हो जाते है बच्चे

अधिकतर मामलों में ऐसा होता है कि बच्चे नौकरी, पढ़ाई या किसी अन्य कारणों से अपने माता-पिता से दूर रहने लगते है. एक उम्र के बाद बुजुर्गों को अपनों के साथ रहने की इच्छा होती है. उस उम्र में बच्चों को घर से दूर रहना पड़ता है, जिसके कारण बुजुर्ग अकेलापन महसूस करने लगते है. देखते ही देखते यह अकेलापन इतना बढ़ जाता है कि एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम बीमारी का रूप ले लेता है.

रोजाना आ रहे दो-तीन केस

भोपाल में काउंसलिंग करने वाली काउंसलर सोनम चटवानी बताती हैं कि एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम बीमारी लगातार अपने पैर पसार रही है. बुजुर्गों को अकेलापन खाए जा रहा है. उनके पास रोज दो से तीन केस ऐसे आते हैं. जिसमें बच्चे बाहर नौकरी कर रहे हैं, या पढ़ाई करते हैं और यहां माता पिता घर में अकेले हैं. ऐसे में बच्चे उनकी फोन पर ही काउंसलिंग कराना चाहते हैं. लेकिन माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे उनके पास आ जाए, तो ही वह ठीक होंगे.

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जीने की चाह छोड़ देते है बुजुर्ग

सोनम एक केस स्टडी बताते हुए कहती हैं कि अभी हाल ही में एक केस आया, जिसमें माता-पिता बेटी के जाने के बाद इतने अकेले हो गए की मां ने खुद को आग तक लगा ली. इसके बाद उन्होंने काउंसलिंग कर माता-पिता के साथ उनकी बेटी को भी समझाया.

बच्चों के साथ ना रहने से अकेलेपन का शिकार हो रहे बुजुर्ग

वृद्धाश्रम का सहारा लेते है बुजुर्ग

मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य मानती हैं कि बच्चों के बाहर रहने से बुजुर्ग अकेलेपन का शिकार होते हैं. ऐसे में इस अकेलेपन से बचने के लिए अधिकतर बुजुर्ग वृद्धाश्रम (ओल्ड एज होम) को अपना ठिकाना बना लेते हैं. रूमा भट्टाचार्य कहती हैं कि ऐसे में यह बुजुर्ग एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम बीमारी का शिकार हो रहे हैं. उनके पास लगातार इस तरह की बुजुर्गों के केस आ रहे हैं. जिसमें वृद्धि होने लगी है.

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इस उम्र में किसी का साथ जरूरी

रुमा कहती हैं कि वृद्धों की समस्या का एक हल है, बहुत से वृद्धों को एक साथ रहने की कोशिश करना. एक उम्र के बाद मेंटल हेल्थ में बदलाव आता है. कई बुजुर्ग बताते नहीं है लेकिन वे अकेलेपन का सामना कर रहे होते है. जीवन के इस पड़ाव पर वह खुद को टूटा और बिखरा हुआ महसूस करते है. जिस उम्र में उसे अपनों के सहारे की जरुरत महसूस होती है. असुरक्षा की भावना उनके अंतर्मन में इस कदर व्याप्त है कि उन्हें अपना जीवन व्यर्थ सा लगने लगा है.

भोपाल। बुजुर्ग इन दिनों एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम (Empty Nest Syndrome) का शिकार हो रहे है. यह बीमारी अकेलेपन के कारण हो रही है. इसका प्रमुख कारण बच्चों का माता-पिता के साथ ना रहना है. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ नहीं रहते उन बुजुर्गों में इस प्रकार की बीमारी हो रही है. मनोचिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी के लगातार मरीज पूरे देश में बुजुर्ग शिकार हो रहे है. मनोचिकित्सक और काउंसलर के पास रोज ऐसे बुजुर्गों के फोन आते हैं, जो इस बीमारी से पीड़ित है.

बच्चों के साथ ना रहने से अकेलेपन का शिकार हो रहे बुजुर्ग

नौकरी लगने के बाद दूर हो जाते है बच्चे

अधिकतर मामलों में ऐसा होता है कि बच्चे नौकरी, पढ़ाई या किसी अन्य कारणों से अपने माता-पिता से दूर रहने लगते है. एक उम्र के बाद बुजुर्गों को अपनों के साथ रहने की इच्छा होती है. उस उम्र में बच्चों को घर से दूर रहना पड़ता है, जिसके कारण बुजुर्ग अकेलापन महसूस करने लगते है. देखते ही देखते यह अकेलापन इतना बढ़ जाता है कि एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम बीमारी का रूप ले लेता है.

रोजाना आ रहे दो-तीन केस

भोपाल में काउंसलिंग करने वाली काउंसलर सोनम चटवानी बताती हैं कि एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम बीमारी लगातार अपने पैर पसार रही है. बुजुर्गों को अकेलापन खाए जा रहा है. उनके पास रोज दो से तीन केस ऐसे आते हैं. जिसमें बच्चे बाहर नौकरी कर रहे हैं, या पढ़ाई करते हैं और यहां माता पिता घर में अकेले हैं. ऐसे में बच्चे उनकी फोन पर ही काउंसलिंग कराना चाहते हैं. लेकिन माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे उनके पास आ जाए, तो ही वह ठीक होंगे.

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जीने की चाह छोड़ देते है बुजुर्ग

सोनम एक केस स्टडी बताते हुए कहती हैं कि अभी हाल ही में एक केस आया, जिसमें माता-पिता बेटी के जाने के बाद इतने अकेले हो गए की मां ने खुद को आग तक लगा ली. इसके बाद उन्होंने काउंसलिंग कर माता-पिता के साथ उनकी बेटी को भी समझाया.

बच्चों के साथ ना रहने से अकेलेपन का शिकार हो रहे बुजुर्ग

वृद्धाश्रम का सहारा लेते है बुजुर्ग

मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य मानती हैं कि बच्चों के बाहर रहने से बुजुर्ग अकेलेपन का शिकार होते हैं. ऐसे में इस अकेलेपन से बचने के लिए अधिकतर बुजुर्ग वृद्धाश्रम (ओल्ड एज होम) को अपना ठिकाना बना लेते हैं. रूमा भट्टाचार्य कहती हैं कि ऐसे में यह बुजुर्ग एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम बीमारी का शिकार हो रहे हैं. उनके पास लगातार इस तरह की बुजुर्गों के केस आ रहे हैं. जिसमें वृद्धि होने लगी है.

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इस उम्र में किसी का साथ जरूरी

रुमा कहती हैं कि वृद्धों की समस्या का एक हल है, बहुत से वृद्धों को एक साथ रहने की कोशिश करना. एक उम्र के बाद मेंटल हेल्थ में बदलाव आता है. कई बुजुर्ग बताते नहीं है लेकिन वे अकेलेपन का सामना कर रहे होते है. जीवन के इस पड़ाव पर वह खुद को टूटा और बिखरा हुआ महसूस करते है. जिस उम्र में उसे अपनों के सहारे की जरुरत महसूस होती है. असुरक्षा की भावना उनके अंतर्मन में इस कदर व्याप्त है कि उन्हें अपना जीवन व्यर्थ सा लगने लगा है.

Last Updated : Oct 10, 2021, 9:57 PM IST
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