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शिवराज मंत्रिमंडल विस्तार से उपजे असंतोष में वापसी की संभावनाएं तलाश रही है कांग्रेस - भोपाल न्यूज

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पांचों मंत्रियों के बीच विभाग का बंटवारा कर दिया है. उससे बीजेपी के अंदर ही असंतोष देखने को मिल रहा है. जिन परिस्थितियों में कांग्रेस की सरकार गिरी थी, वही परिस्थितियां अब बीजेपी में निर्मित होती दिखाई दे रही हैं.

Dissatisfaction in BJP after division of departments
विभागों के बंटवारे के बाद बीजेपी में असंतोष
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Published : Apr 22, 2020, 4:50 PM IST

भोपाल। सिंधिया खेमे और कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों को तोड़कर मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज होने वाली शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल का गठन लंबे इंतजार के बाद हो गया है. उम्मीद थी कि, देर आए हैं, तो दुरुस्त आएंगे, लेकिन जो मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया, उससे बीजेपी के अंदर ही असंतोष देखने को मिल रहा है. जिन परिस्थितियों में कांग्रेस की सरकार गिरी थी, वह परिस्थितियां अब बीजेपी में निर्मित होती दिखाई दे रही है. इन परिस्थितियों में कांग्रेस एक बार फिर वापसी की उम्मीद तलाशने लगी है. गोपाल भार्गव जैसे कई वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है. क्योंकि सवाल यह खड़ा हो रहा है कि, अगर मंत्रिमंडल विस्तार करना था, तो सिर्फ 5 लोगों को क्यों शामिल किया गया.

विभागों के बंटवारे के बाद बीजेपी में असंतोष

सबसे बड़ा सवाल खड़ा यह हो रहा है कि, इस मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी के वरिष्ठ और दिग्गज नेताओं की जमकर उपेक्षा की गई है. वहीं दूसरी ओर सवाल यह भी है कि, अगर 5 लोगों का मंत्रिमंडल बनाया जाता सकता है, तो 10 या 12 लोगों का भी बनाया जा सकता था. आखिर बीजेपी के सामने ऐसी कौन सी परिस्थितियां थी, कि सिर्फ 5 मंत्रियों का मिनी मंत्रिमंडल मनाया गया. कमलनाथ सरकार के समय पर नेता प्रतिपक्ष रहे गोपाल भार्गव को सबसे वरिष्ठ विधायक होने के बाद भी मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया. जबकि नरोत्तम मिश्रा जोकि गोपाल भार्गव से कम अनुभव रखते हैं, उनको नए मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया. बीजेपी के दो अन्य चेहरे जो इस मंत्रिमंडल में शामिल किए गए, वो बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं से अनुभव और वरिष्ठता में कमतर हैं.

वहीं दूसरी तरफ सिंधिया खेमे के दो पूर्व विधायक गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया है. कांग्रेस का दामन छोड़ने वाले अन्य 20 पूर्व विधायकों में नाराजगी देखने को मिल रही है. कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे सिंधिया खेमे के चार विधायक,जो इस मंत्रिमंडल में स्थान नहीं पा सकें हैं, वह भी नाराज बताए जा रहे हैं. इसके अलावा वो लोग भी नाराज हैं, जिन्हें मंत्री पद का प्रलोभन देकर कांग्रेस से नाता तोड़ने के लिए मजबूर किया गया था. कुल मिलाकर शिवराज सरकार उन्हीं परिस्थितियों का सामना कर रही है. जिन परिस्थितियों का सामना कमलनाथ सरकार कर रही थी और सिंधिया खेमे के असंतोष के कारण सरकार गिर गई थी. इन परिस्थितियों को देखते हुए कांग्रेस एक बार फिर अपनी वापसी की संभावनाएं तलाशने लगी है.

कांग्रेस ने साधा निशाना

कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि, 'मंत्रिमंडल के गठन से मध्यप्रदेश में एक नया राजनीतिक स्वरूप दिखना लाजमी है. जिस तरीके से गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की है, उसकी कुछ ना कुछ प्रतिक्रिया आने की संभावना है. यह प्रतिक्रिया मध्यप्रदेश के हित की प्रतिक्रिया होगी. यह प्रकृति का नियम है, जो जैसा करता है, उसको वैसा भरना पड़ता है. जिनको मंत्री पद से नवाजा जाना चाहिए था, लेकिन शिवराज सिंह अपनी राजनीतिक मजबूरियों के तहत उनको नवाज नहीं सके. ऐसा गोपाल भार्गव,सीताशरण शर्मा या भूपेंद्र सिंह के साथ हुआ है. ऐसे अनेक नेता भाजपा में हैं. मैं मानता हूं कि वे सक्षम हैं. उनका प्रदेश को मार्गदर्शन मिलता, इसके लिए उन्हें मंत्री पद दिया जाना चाहिए था'.

भोपाल। सिंधिया खेमे और कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों को तोड़कर मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज होने वाली शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल का गठन लंबे इंतजार के बाद हो गया है. उम्मीद थी कि, देर आए हैं, तो दुरुस्त आएंगे, लेकिन जो मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया, उससे बीजेपी के अंदर ही असंतोष देखने को मिल रहा है. जिन परिस्थितियों में कांग्रेस की सरकार गिरी थी, वह परिस्थितियां अब बीजेपी में निर्मित होती दिखाई दे रही है. इन परिस्थितियों में कांग्रेस एक बार फिर वापसी की उम्मीद तलाशने लगी है. गोपाल भार्गव जैसे कई वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है. क्योंकि सवाल यह खड़ा हो रहा है कि, अगर मंत्रिमंडल विस्तार करना था, तो सिर्फ 5 लोगों को क्यों शामिल किया गया.

विभागों के बंटवारे के बाद बीजेपी में असंतोष

सबसे बड़ा सवाल खड़ा यह हो रहा है कि, इस मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी के वरिष्ठ और दिग्गज नेताओं की जमकर उपेक्षा की गई है. वहीं दूसरी ओर सवाल यह भी है कि, अगर 5 लोगों का मंत्रिमंडल बनाया जाता सकता है, तो 10 या 12 लोगों का भी बनाया जा सकता था. आखिर बीजेपी के सामने ऐसी कौन सी परिस्थितियां थी, कि सिर्फ 5 मंत्रियों का मिनी मंत्रिमंडल मनाया गया. कमलनाथ सरकार के समय पर नेता प्रतिपक्ष रहे गोपाल भार्गव को सबसे वरिष्ठ विधायक होने के बाद भी मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया. जबकि नरोत्तम मिश्रा जोकि गोपाल भार्गव से कम अनुभव रखते हैं, उनको नए मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया. बीजेपी के दो अन्य चेहरे जो इस मंत्रिमंडल में शामिल किए गए, वो बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं से अनुभव और वरिष्ठता में कमतर हैं.

वहीं दूसरी तरफ सिंधिया खेमे के दो पूर्व विधायक गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया है. कांग्रेस का दामन छोड़ने वाले अन्य 20 पूर्व विधायकों में नाराजगी देखने को मिल रही है. कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे सिंधिया खेमे के चार विधायक,जो इस मंत्रिमंडल में स्थान नहीं पा सकें हैं, वह भी नाराज बताए जा रहे हैं. इसके अलावा वो लोग भी नाराज हैं, जिन्हें मंत्री पद का प्रलोभन देकर कांग्रेस से नाता तोड़ने के लिए मजबूर किया गया था. कुल मिलाकर शिवराज सरकार उन्हीं परिस्थितियों का सामना कर रही है. जिन परिस्थितियों का सामना कमलनाथ सरकार कर रही थी और सिंधिया खेमे के असंतोष के कारण सरकार गिर गई थी. इन परिस्थितियों को देखते हुए कांग्रेस एक बार फिर अपनी वापसी की संभावनाएं तलाशने लगी है.

कांग्रेस ने साधा निशाना

कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि, 'मंत्रिमंडल के गठन से मध्यप्रदेश में एक नया राजनीतिक स्वरूप दिखना लाजमी है. जिस तरीके से गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की है, उसकी कुछ ना कुछ प्रतिक्रिया आने की संभावना है. यह प्रतिक्रिया मध्यप्रदेश के हित की प्रतिक्रिया होगी. यह प्रकृति का नियम है, जो जैसा करता है, उसको वैसा भरना पड़ता है. जिनको मंत्री पद से नवाजा जाना चाहिए था, लेकिन शिवराज सिंह अपनी राजनीतिक मजबूरियों के तहत उनको नवाज नहीं सके. ऐसा गोपाल भार्गव,सीताशरण शर्मा या भूपेंद्र सिंह के साथ हुआ है. ऐसे अनेक नेता भाजपा में हैं. मैं मानता हूं कि वे सक्षम हैं. उनका प्रदेश को मार्गदर्शन मिलता, इसके लिए उन्हें मंत्री पद दिया जाना चाहिए था'.

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