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RT-PCR टेस्ट से भी डिटेक्ट नहीं हो रहा कोरोना वायरस, डॉक्टरों ने कही ये बात

कोरोना वायरस की दूसरी लहर काफी खतरनाक है. डरने वाली बात यह है कि अब रैपिड और आरटी-पीसीआर की जांच में भी कोरोना संक्रमण का पता नहीं चल पा रहा है. ऐसे में डॉक्टरों का कहना है कि चेस्ट का सिटी स्कैन कर संक्रमित मरीजों का इलाज किया जा सकता है.

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Published : Apr 16, 2021, 10:43 AM IST

Updated : Apr 16, 2021, 11:01 AM IST

भोपाल। कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने इस बार अपना रूप बदल लिया है. यह अब रैपिड और आरटी-पीसीआर की जांच में भी सामने नहीं आ पा रहा है. ऐसे में डॉक्टर्स का कहना है कि चेस्ट का सिटी स्कैन कराकर जल्द ही इसका इलाज मरीजों को दिया जा सकता है.

एंटीबॉडी टेस्ट का फेल होना चिंता का विषय

अब कोरोना की स्थिति और गंभीर होती जा रही है, क्योंकि जबसे रैपिड टेस्ट किट फेल हुई है, तब से कोरोना की स्थिति को खतरनाक माना जा रहा है. ऐसे में विशेषज्ञ इस चीज की खोज में है कि देश में कोरोना की पहचान करने वाले और कौन से संसाधन का इस्तेमाल हो सकता है. अगर देखा जाए, तो आरटी-पीसीआर ही अभी तक ऐसा टेस्ट है, जो जांच की तकनीक में इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन दिक्कत इस बात की है कि ये टेस्ट किट टेस्ट लेने में बेहद समय ले रहा है. दूसरी तरफ एंटीबॉडी टेस्ट का फेल होना चिंता का विषय बनता जा रहा है.

मुसीबत यही नहीं रूकती. अब हमारे आसपास कई ऐसे लोग है, जिनमें कोरोना के कोई भी लक्षण नहीं नजर आ रहे है. कोरोना मरीजों का इलाज ज्यादातर लक्षण दिखने के बाद ही शुरू किया जाता है, लेकिन बिना लक्षण वाले मरीजों के लिए दो तरह की चुनौतियां सामने आ रही है. एक तो ये कि मरीज अनजाने में अन्य के संपर्क में आ जाते है. दूसरा बड़ा खतरा ये कि जब तक किसी में लक्षण नहीं दिखेंगे, तब तक इलाज शुरू नहीं हो पाएगा. ऐसे शहर में बहुत से मरीज है, जिनमें लक्षण दिखाई नहीं दे रहे है. उनके टेस्ट अभी भी पेंडिंग है.

डॉक्टर संजय गुप्ता

मरीज के परिजनों ने सिटी स्कैन एंट्री ऑपरेटर को पीटा, पहले नंबर लगवाने पर हुआ विवाद

डॉक्टर्स को यह उम्मीद थी कि आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट से इस संक्रमण को पहचाना जा सकता है, लेकिन इन टेस्ट से भी संक्रमण का पता नहीं चल पा रहा है. ऐसे में आरटी-पीसीआर की जगह एक तरीका ये अपनाया जा सकता है कि फेफड़ों का सीटी स्कैन या फिर चेस्ट एक्स-रे किया जाए, क्योंकि इससे कोरोना से हो रहे नुकसान का पता लगाया जा सकता है.

इस साल मार्च माह में अमेरिकन जर्नल ऑफ रोएंटजनोलॉजी में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी, जिसमें वुहान के 62 रोगियों पर CT-स्कैन कर इस बात का पता चल सका कि कोरोना की शुरुआती अवस्था में 62 लक्षण वाले रोगियों में से 52 रोगियों के फेफड़ों में ग्राउंड गलास ओपेसिटी है. ग्राउंड ओपेसिटी का पता लगना इसलिए अहम है क्योंकि ये ओपेसिटी कोरोना का एक महत्वपूर्ण लक्षण है. इस स्थिति में दिया गया उपचार काफी निर्णायक सिद्ध हो सकता है. केसेस की स्टडी से साफ तौर पर यह परिणाम निकलते है कि चेस्ट का सिटी स्कैन आरटी-पीसीआर की तरह ही कोरोना वायरस संक्रमण की पहचान के लिए इसे इस्तेमाल किया जा सकता है. इस स्टडी में चेस्ट सिटी स्कैन RT-पीसीआर की डायग्नोस्टिक वैल्यू की तुलना की गई है. यह स्टडी बताती है कि चेस्ट का सिटी स्कैन RT-पीसीआर से बेहतर है.

भोपाल। कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने इस बार अपना रूप बदल लिया है. यह अब रैपिड और आरटी-पीसीआर की जांच में भी सामने नहीं आ पा रहा है. ऐसे में डॉक्टर्स का कहना है कि चेस्ट का सिटी स्कैन कराकर जल्द ही इसका इलाज मरीजों को दिया जा सकता है.

एंटीबॉडी टेस्ट का फेल होना चिंता का विषय

अब कोरोना की स्थिति और गंभीर होती जा रही है, क्योंकि जबसे रैपिड टेस्ट किट फेल हुई है, तब से कोरोना की स्थिति को खतरनाक माना जा रहा है. ऐसे में विशेषज्ञ इस चीज की खोज में है कि देश में कोरोना की पहचान करने वाले और कौन से संसाधन का इस्तेमाल हो सकता है. अगर देखा जाए, तो आरटी-पीसीआर ही अभी तक ऐसा टेस्ट है, जो जांच की तकनीक में इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन दिक्कत इस बात की है कि ये टेस्ट किट टेस्ट लेने में बेहद समय ले रहा है. दूसरी तरफ एंटीबॉडी टेस्ट का फेल होना चिंता का विषय बनता जा रहा है.

मुसीबत यही नहीं रूकती. अब हमारे आसपास कई ऐसे लोग है, जिनमें कोरोना के कोई भी लक्षण नहीं नजर आ रहे है. कोरोना मरीजों का इलाज ज्यादातर लक्षण दिखने के बाद ही शुरू किया जाता है, लेकिन बिना लक्षण वाले मरीजों के लिए दो तरह की चुनौतियां सामने आ रही है. एक तो ये कि मरीज अनजाने में अन्य के संपर्क में आ जाते है. दूसरा बड़ा खतरा ये कि जब तक किसी में लक्षण नहीं दिखेंगे, तब तक इलाज शुरू नहीं हो पाएगा. ऐसे शहर में बहुत से मरीज है, जिनमें लक्षण दिखाई नहीं दे रहे है. उनके टेस्ट अभी भी पेंडिंग है.

डॉक्टर संजय गुप्ता

मरीज के परिजनों ने सिटी स्कैन एंट्री ऑपरेटर को पीटा, पहले नंबर लगवाने पर हुआ विवाद

डॉक्टर्स को यह उम्मीद थी कि आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट से इस संक्रमण को पहचाना जा सकता है, लेकिन इन टेस्ट से भी संक्रमण का पता नहीं चल पा रहा है. ऐसे में आरटी-पीसीआर की जगह एक तरीका ये अपनाया जा सकता है कि फेफड़ों का सीटी स्कैन या फिर चेस्ट एक्स-रे किया जाए, क्योंकि इससे कोरोना से हो रहे नुकसान का पता लगाया जा सकता है.

इस साल मार्च माह में अमेरिकन जर्नल ऑफ रोएंटजनोलॉजी में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी, जिसमें वुहान के 62 रोगियों पर CT-स्कैन कर इस बात का पता चल सका कि कोरोना की शुरुआती अवस्था में 62 लक्षण वाले रोगियों में से 52 रोगियों के फेफड़ों में ग्राउंड गलास ओपेसिटी है. ग्राउंड ओपेसिटी का पता लगना इसलिए अहम है क्योंकि ये ओपेसिटी कोरोना का एक महत्वपूर्ण लक्षण है. इस स्थिति में दिया गया उपचार काफी निर्णायक सिद्ध हो सकता है. केसेस की स्टडी से साफ तौर पर यह परिणाम निकलते है कि चेस्ट का सिटी स्कैन आरटी-पीसीआर की तरह ही कोरोना वायरस संक्रमण की पहचान के लिए इसे इस्तेमाल किया जा सकता है. इस स्टडी में चेस्ट सिटी स्कैन RT-पीसीआर की डायग्नोस्टिक वैल्यू की तुलना की गई है. यह स्टडी बताती है कि चेस्ट का सिटी स्कैन RT-पीसीआर से बेहतर है.

Last Updated : Apr 16, 2021, 11:01 AM IST
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