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बगावत ने छीन लिया मध्यप्रदेश में कांग्रेस का बढ़ता कुनबा, नेताओं के अभाव में हाथ 'अनाथ' !

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Published : Nov 22, 2020, 11:04 AM IST

Updated : Nov 23, 2020, 11:09 PM IST

बिहार चुनाव और उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार के बाद एक बार फिर कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं, लेकिन पिछले 15 सालों के हालातों में नजर डाले तो मध्यप्रदेश कांग्रेस में सुधार भी हुआ है.

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कॉन्सेप्ट इमेज

भोपाल। बिहार चुनाव और उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार के बाद एक बार फिर कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. मध्यप्रदेश में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. जबकि महज 2 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और सत्ता पर काबिज हुई थी. हालांकि अपनों की बगावत के कारण कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा और ऐसी स्थिति में पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं और कांग्रेस समर्थकों को मप्र में कांग्रेस के भविष्य को लेकर चिंता सता रही हैं.

मध्यप्रदेश में क्या कांग्रेस की हो चुकी है वापसी ?

एमपी में कांग्रेस की तीसरी हार
2003 में जब मप्र में कांग्रेस की सरकार गिरी तो उसके पहले 1993 से लगातार कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार सत्ता पर काबिज थी. 2003 में बिजली पानी और सड़क के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार बुरी तरह घिरी और उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को हराया. कांग्रेस 230 में से सिर्फ 38 सीट पर सिमट गई. 2008 में भी कांग्रेस की इसी तरह की पराजय हुई. हालांकि 2003 की अपेक्षा कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा. लेकिन 2013 में कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला करने के लिए जोरदार तैयारी कर रही थी. लेकिन केंद्र में कांग्रेस के खिलाफ बने वातावरण और मोदी लहर के कारण कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा.

Congress performance in Lok Sabha elections
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन

15 साल बाद हुई थी वापसी,लेकिन अपनों की बगावत से गिरी सरकार

मध्यप्रदेश में लगातार तीसरी हार के बाद कांग्रेस निराशा के दौर में पहुंच गई थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस की कमान कमलनाथ को सौंपी गई, और उन्होंने मध्यप्रदेश कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं को एक साथ लाकर 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कांग्रेस सत्ता के जादुई आंकड़े से महज 2 सीट पीछे रह गई. लेकिन निर्दलीय और अन्य के सहारे कांग्रेस ने सरकार बना ली थी. लेकिन सिंधिया खेमे सहित 22 विधायकों की बगावत के कारण कमलनाथ की सरकार महज 15 महीने में ही गिर गई. भाजपा ने कांग्रेस के चार विधायक तोड़ने का काम किया और जब 28 सीटों पर उपचुनाव हुए, तो उम्मीद के विपरीत कांग्रेस को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा और 28 सीटों में से कांग्रेस महज 9 सीटों पर सिमट गई गई. जबकि बीजेपी को 19 सीटें मिली. इन 19 सीटों के साथ बीजेपी 126 सीटों पर पहुंच गई और बहुमत के जादुई आंकड़े 116 से 10 सीटें ज्यादा हासिल करने में बीजेपी कामयाब रही.

Congress performance in assembly elections
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन

बीजेपी के 15 साल

करीब 13 साल से शिवराज सिंह चौहान सीएम पद हैं. 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद 15 महीने के लिए जरूर बीजेपी सत्ता से बाहर हुई थी. लेकिन 15 महीने बाद जब फिर बीजेपी की सत्ता आई, तो शिवराज सिंह चौहान को ही सीएम बनाया गया. अपने पहले कार्यकाल में शिवराज सिंह ने जनता में लोकप्रिय नेता की छवि बनाई. इसका फायदा ये मिला कि 2008 में दोबारा बीजेपी की सरकार बनी. जनता से संवाद बनाने में माहिर शिवराज सिंह का 2013 में बीजेपी को प्रदेश में शानदार जीत दिलाई. लेकिन 2013 के बाद शिवराज सिंह की कार्यशैली और घोषणाओं पर सवाल खड़े होने लगे.

'कांग्रेस एमपी में वापसी तो कर चुकी है, लेकिन नेताओं का अभाव'

वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह की माने तो उनका कहना है कि कांग्रेस ने 2018 के बाद से ही वापसी कर ली है. 2018 के चुनाव के पहले बीजेपी की 15 साल की सरकार थी. उस दौरान कांग्रेस विधानसभा में कभी 48 सीटों पर तो कभी 60 सीटों पर रहती थी, लेकिन 2018 में 114 सीटें आई थी. कांग्रेस वापसी कर चुकी है और इसे बनाए रखने के लिए उनको लीडरशिप मजबूत करनी चाहिए. वहीं कांग्रेस की दूसरी पंक्ति कमजोर है. दूसरी पंक्ति में जीतू पटवारी, उमंग सिंघार, मीनाक्षी नटराजन का नाम आता है. नेता पुत्रों में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह और कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ का नाम आता है. लेकन कांग्रेस को इन नेताओं को कहीं न कहीं तैयार करने की जरूरत है.

भोपाल। बिहार चुनाव और उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार के बाद एक बार फिर कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. मध्यप्रदेश में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. जबकि महज 2 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और सत्ता पर काबिज हुई थी. हालांकि अपनों की बगावत के कारण कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा और ऐसी स्थिति में पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं और कांग्रेस समर्थकों को मप्र में कांग्रेस के भविष्य को लेकर चिंता सता रही हैं.

मध्यप्रदेश में क्या कांग्रेस की हो चुकी है वापसी ?

एमपी में कांग्रेस की तीसरी हार
2003 में जब मप्र में कांग्रेस की सरकार गिरी तो उसके पहले 1993 से लगातार कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार सत्ता पर काबिज थी. 2003 में बिजली पानी और सड़क के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार बुरी तरह घिरी और उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को हराया. कांग्रेस 230 में से सिर्फ 38 सीट पर सिमट गई. 2008 में भी कांग्रेस की इसी तरह की पराजय हुई. हालांकि 2003 की अपेक्षा कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा. लेकिन 2013 में कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला करने के लिए जोरदार तैयारी कर रही थी. लेकिन केंद्र में कांग्रेस के खिलाफ बने वातावरण और मोदी लहर के कारण कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा.

Congress performance in Lok Sabha elections
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन

15 साल बाद हुई थी वापसी,लेकिन अपनों की बगावत से गिरी सरकार

मध्यप्रदेश में लगातार तीसरी हार के बाद कांग्रेस निराशा के दौर में पहुंच गई थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस की कमान कमलनाथ को सौंपी गई, और उन्होंने मध्यप्रदेश कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं को एक साथ लाकर 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कांग्रेस सत्ता के जादुई आंकड़े से महज 2 सीट पीछे रह गई. लेकिन निर्दलीय और अन्य के सहारे कांग्रेस ने सरकार बना ली थी. लेकिन सिंधिया खेमे सहित 22 विधायकों की बगावत के कारण कमलनाथ की सरकार महज 15 महीने में ही गिर गई. भाजपा ने कांग्रेस के चार विधायक तोड़ने का काम किया और जब 28 सीटों पर उपचुनाव हुए, तो उम्मीद के विपरीत कांग्रेस को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा और 28 सीटों में से कांग्रेस महज 9 सीटों पर सिमट गई गई. जबकि बीजेपी को 19 सीटें मिली. इन 19 सीटों के साथ बीजेपी 126 सीटों पर पहुंच गई और बहुमत के जादुई आंकड़े 116 से 10 सीटें ज्यादा हासिल करने में बीजेपी कामयाब रही.

Congress performance in assembly elections
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन

बीजेपी के 15 साल

करीब 13 साल से शिवराज सिंह चौहान सीएम पद हैं. 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद 15 महीने के लिए जरूर बीजेपी सत्ता से बाहर हुई थी. लेकिन 15 महीने बाद जब फिर बीजेपी की सत्ता आई, तो शिवराज सिंह चौहान को ही सीएम बनाया गया. अपने पहले कार्यकाल में शिवराज सिंह ने जनता में लोकप्रिय नेता की छवि बनाई. इसका फायदा ये मिला कि 2008 में दोबारा बीजेपी की सरकार बनी. जनता से संवाद बनाने में माहिर शिवराज सिंह का 2013 में बीजेपी को प्रदेश में शानदार जीत दिलाई. लेकिन 2013 के बाद शिवराज सिंह की कार्यशैली और घोषणाओं पर सवाल खड़े होने लगे.

'कांग्रेस एमपी में वापसी तो कर चुकी है, लेकिन नेताओं का अभाव'

वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह की माने तो उनका कहना है कि कांग्रेस ने 2018 के बाद से ही वापसी कर ली है. 2018 के चुनाव के पहले बीजेपी की 15 साल की सरकार थी. उस दौरान कांग्रेस विधानसभा में कभी 48 सीटों पर तो कभी 60 सीटों पर रहती थी, लेकिन 2018 में 114 सीटें आई थी. कांग्रेस वापसी कर चुकी है और इसे बनाए रखने के लिए उनको लीडरशिप मजबूत करनी चाहिए. वहीं कांग्रेस की दूसरी पंक्ति कमजोर है. दूसरी पंक्ति में जीतू पटवारी, उमंग सिंघार, मीनाक्षी नटराजन का नाम आता है. नेता पुत्रों में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह और कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ का नाम आता है. लेकन कांग्रेस को इन नेताओं को कहीं न कहीं तैयार करने की जरूरत है.

Last Updated : Nov 23, 2020, 11:09 PM IST
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