भोपाल। केंद्र सरकार ने जब से तीन नए कृषि कानून बनाएं हैं तब से किसान आंदोलन के मोर्चे पर ही डटे हैं, किसान इस बात पर अड़े हैं कि जब तक सरकार तीनों कानून वापस नहीं लेती, तब तक वो आंदोलन करते रहेंगे. पर सरकार भी है कि जिद पर अड़ी है कि संसोधन कर सकते हैं, लेकिन कानून वापसी का कोई रास्ता नहीं है. यही वजह है कि आज फिर संयुक्त किसान मोर्चा के भारत बंद का आह्वान किया है, जिसे कई राजनीतिक दलों ने भी समर्थन किया है, भोपाल में भारत बंद का समर्थन करने पहुंचे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक-एक कर कृषि कानून की खामियां गिनाई. इसके लिए मध्यप्रदेश में भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं.
1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
इसके मुताबिक किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते हैं. बिना किसी रुकावट दूसरे रोज्यों में फसल बेच और खरीद सकते हैं. इसका मतलब एपीएमसी (एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (Agriculture Marketing Produce Committee) के दायरे से बाहर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकती है. साथ ही फसल की बिक्री पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. ऑनलाइन बिक्री की भी अनुमति होगी. इससे किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे.
किसानों की आपत्ति
किसानों का कहना है कि इच्छा के अनुरूप उत्पाद को बेचने के लिए आजाद नहीं हैं. भंडारण की व्यवस्था नहीं है, इसलिए वे कीमत अच्छी होने का इंतजार नहीं कर सकते. खरीद में देरी पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम कीमत पर फसलों को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं. कमीशन एजेंट किसानों को खेती व निजी जरूरतों के लिए रुपये उधार देते हैं. औसतन हर एजेंट के साथ 50-100 किसान जुड़े होते हैं. अक्सर एजेंट बहुत कम कीमत पर फसल खरीदकर उसका भंडारण कर लेते हैं और अगले सीजन में उसकी एमएसपी पर बिक्री करते हैं.
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2. मूल्य आश्वासन व कृषि सेवा कानून 2020
देशभर में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है. फसर खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी. किसान कंपनियों को अपनी कीमत पर फसल बेचेंगे. इससे किसानों की आय बढ़ेगी और बिचौलिया राज ख्त्म होगा.
किसानों की ये हैं आपत्तियां
किसानों का कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी. बड़ी कंपनियां छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी.
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020
आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में बनाया गया था. अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है. बहुत जरूरी होने पर ही स्टॉक लिमिट लगाई जाएगी. ऐसी स्थितियों में राष्ट्रीय आपदा, सूखा जैसी अपरिहार्य स्थितियां शामिल हैं. प्रोसेसर या वैल्यू चेन पार्टिसिपेंट्स के लिए कोई स्टॉक लिमिट लागू नहीं होगी. उत्पादन, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म होगा.
किसानों की आपत्तियां
असामान्य स्थितियों के लिए कीमतें इतनी अधिक होंगी कि उत्पादों को हासिल करना आम आदमी के बूते में नहीं होगा. आवश्यक खाद्य वस्तुओं के भंडारण की छूट से कॉरपोरेट फसलों की कीमत को कम कर सकते हैं. मौजूदा अनुबंध कृषि का स्वरूप अलिखित है. फिलहाल निर्यात होने लायक आलू, गन्ना, कपास, चाय, कॉफी व फूलों के उत्पादन के लिए ही अनुबंध किया जाता है. कुछ राज्यों ने मौजूदा कृषि कानून के तहत अनुबंध कृषि के लिए नियम बनाए हैं.
देश में कुल 7000 मंडियां, जरूरत 42000 मंडियों की
सरकार का कहना है कि हम मंडियों में सुधार के लिए यह कानून लेकर आ रहे हैं. लेकिन, कानून में कहीं भी मंडियों की समस्याओं के सुधार का जिक्र तक नहीं है. यह तर्क और तथ्य बिल्कुल सही है कि मंडी में पांच आढ़ती मिलकर किसान की फसल तय करते थे. किसानों को परेशानी होती थी. लेकिन कानूनों में कहीं भी इस व्यवस्था को ठीक करने की बात नहीं कही गई है. किसान भी कह रहे हैं कि कमियां हैं तो ठीक कीजिए. मंडियों में किसान इंतजार इसलिए भी करता है, क्योंकि पर्याप्त संख्या में मंडियां नहीं हैं. आप नई मंडियां बनाएं. नियम के अनुसार, हर 5 किमी के रेडियस में एक मंडी. अभी वर्तमान में देश में कुल 7000 मंडियां हैं, लेकिन जरूरत 42000 मंडियों की है. आप इनका निर्माण करें. कम से कम हर किसान की पहुंच तक एक मंडी तो बना दें.
10 महीने 11 बार वार्ता
किसान आंदोलन को पूरे 10 महीने होने के दौरान 11 बार सरकार से वार्ता हो चुकी है, लेकिन सभी वार्ताएं विफल रही हैं. राकेश टिकैत हर बार यही कहते आए हैं कि वह बात करने को तैयार हैं, लेकिन सरकार बिना शर्तों के बात करे. मगर सरकार की तरफ से हर बार यही जवाब आया है कि कृषि कानून की वापसी की शर्त पर किसान बात ना करें. सरकार की तरफ से हर बार संशोधन की बात कही गई है. ऐसे में सवाल यही है कि 10 महीने का यह आंदोलन हो चुका है. समाधान कब निकलेगा.
'हिंसा या उपद्रव, भारत बंद का हिस्सा नहीं'
सोमवार को किसानों द्वारा भारत बंद की शुरुआत सुबह 6 बजे से होगी जो शाम 4 बजे तक चलेगा. संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) गाजीपुर, बॉर्डर के प्रवक्ता जगतार सिंह बाजवा ने बताया कि संयुक्त मोर्चा द्वारा 27 तारीख को घाेषित भारत बंद काे सफल बनाने के लिए तैयारियां चल रही हैं. देशभर के विभिन्न संगठनों से जिला स्तर व राज्य स्तर पर भी वार्ता कर सहयोग की अपील की गई है. भारत बंद शांतिपूर्वक होगा. हिंसा या उपद्रव, भारत बंद का हिस्सा नहीं होगा.
विपक्षी दलों ने किया समर्थन का एलान
राजद के बाद अब कांग्रेस ने 'भारत बंद' को समर्थन देने की घोषणा की है. पार्टी ने प्रदर्शन कर रहे किसानों से वार्ता बहाल करने की मांग भी उठाई. कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने शनिवार को कहा कि कांग्रेस पार्टी और उसके सभी कार्यकर्ता किसान संगठनों व किसानों द्वारा 27 सितंबर को बुलाए गए शांतिपूर्ण भारत बंद का समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा, 'हम मांग करते हैं कि किसानों के साथ वार्ता प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए क्योंकि वे पिछले नौ महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हुए हैं. हम मांग करते हैं कि बिना चर्चा के लागू किए गए ये तीनों काले कानून वापस लिए जाने चाहिए.'