भोपाल। मध्यप्रदेश में 8 महीने बाद विधानसभा चुनाव है. इसी को ध्यान में रखकर दोनों ही पार्टियां अंबेडकर जयंती के बहाने दलितों (अनुसूचित जाति) यानी शेड्यूल कास्ट के 17 फीसदी वोटर को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है. मप्र दलित वर्ग से जुड़े लोग सवाल उठा रहे हैं कि जिस प्रदेश में अब तक 28 मुख्यमंत्री में एक भी दलित नहीं बना, वहां हम सिर्फ वोट बैंक बनकर रह गए हैं.
एमपी में नहीं बना एक बी दलित सीएम: मध्यप्रदेश में एक बार भी दलित या आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया है. ईटीवी भारत ने न केवल मुख्यमंत्री, बल्कि विधानसभा अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठने वालों को जातिगत प्रतिनिधित्व देने के मामले की पड़ताल. दोनों ही पार्टियां एक-एक मामले में आगे दिखाई दी. अब तक मप्र में कुल 28 मुख्यमंत्री बने. इनमें से कांग्रेस के 18 बार और भाजपा के 10 बार मुख्यमंत्री बने. कई लोग दो से चार बार तक सीएम बने, लेकिन इनमें एक भी नाम दलित या आदिवासी नहीं है. इसी प्रकार प्रदेश में अब तक कुल 18 बार विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए. इनमें से केवल कांग्रेस ने एक बार नर्मदा प्रसाद प्रजापति को विधानसभा अध्यक्ष बनाया. प्रजापति अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं. वहीं कांग्रेस ने ही एक बार एक मुस्लिम चेहरे को भी विधानसभा अध्यक्ष की कमान सौंपी है.
बीजेपी-कांग्रेस में कितने दलित मंत्री-विधायक: अब यदि वर्तमान हालात की बात करें तो इस समय भाजपा ने अपने मंत्रीमंडल में तीन दलित चेहरों को मंंत्री बनाया है. इनमें इंदौर के सांवेर से तुलसीराम सिलावट, मल्हारगढ़ से जगदीश देवड़ा और रायसेन के सांची से डॉ. प्रभुराम चौधरी. वहीं एमपी में भाजपा की तीन सांसद दलित हैं. इनमें टीकमगढ़ से वीरेंद्र कुमार, देवास से महेंद्र सिंह सोलंकी, उज्जैन से अनिल फिरौजिया और भिंड से संध्या राय सांसद हैं. जबकि कांग्रेस की बात करें तो एक भी सांसद दलित नहीं है. वहीं दलित विधायक में जरूर कांग्रेस का पलड़ा भारी है. एमपी की कुल 35 आरक्षित सीट में से अभी कांग्रेस के पास 18 विधायक हैं. इनमें बड़े चेहरे सोनकच्छ से सज्जन सिंह वर्मा, गोटेगांव विधायक नर्मदा प्रसाद प्रजापति, महेश्वर विधायक डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ है. इनके अलावा गोहद विधायक मेवाराम जाटव, रणवीर सिंह जाटव, जबलपुर पूर्व से विधायक लखन घनघोरिया, परासिया से सोहनलाल बाल्मीक, आगर से विपिन वानखेड़े, तराना से महेश परमार, घटि्टया से रामलाल मालवीय और आलोट से मनोज चावला मुख्य नाम हैं.
दलित और आदिवासियों से ही पलटी थी सरकार: एमपी में 52 फीसदी आबादी वाला ओबीसी वर्ग दो भाग में बटा है, लेकिन एससी यानी अनुसूचित जाति और एसटी यानी ट्राइबल वोटर्स एक साथ चलते हैं. इसको समझने के लिए हमने विधानसभा क्षेत्र बार जानकारी निकाली. अभी प्रदेश में एससी के कुल 35 सीटें रिजर्व हैं. वहीं ट्राइबल के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से भाजपा के पास अभी 18 दलित और 16 आदिवासी विधायक हैं. जबकि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास 28 दलित और 31 आदिवासी विधायक थे, लेकिन पिछली बार यह वोट बैंक भाजपा के हाथ से खिसक गया. अब कांग्रेस के पास एससी के 17 और एसटी के 30 विधायक हैं.
डाटा दो साल के चुनाव और उसका अंतर
2018 2013
पार्टी | SC | ST | SC | ST |
भाजपा | 18 | 16 | 28 | 31 |
कांग्रेस | 17 | 30 | 4 | 15 |
बसपा | 0 | 0 | 3 | 0 |
निर्दलीय | 0 | 1 | 0 | 1 |