भोपाल। कोरोना महामारी ने देश और दुनिया में बहुत कुछ बदल दिया है. अपनी सेहत को लेकर लोगों की सोच और नजरिया बदला है, साथ-साथ कई तरह के सामाजिक और रचनात्मक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं. जहां लोगों की सोच में परिवर्तन आया है और लोग अपने साथ दूसरों की भी फिक्र करने लगे है. भोपाल की एक ऐसी युवती है जो कोरोना काल में ना सिर्फ बेजुबान स्ट्रीट डॉग की हमदर्द बनी है, बल्कि लोगों को ये भी संदेश दे रही है कि लोगों को बेजुबान जानवरों की भाषा को समझना चाहिए और उनके लिए जितना कर सकते है, उनकी मदद करनी चाहिए.
स्ट्रीट डॉग्स की बनी हमदर्द
भोपाल में मिनाल रेसीडेंसी इलाके में रहने वाली चांदनी पॉल एक फैशन इंस्टीट्यूट में कस्मेटोलॉजी की छात्रा है और अपने परिवार की सौंदर्य प्रसाधन की शॉप में मदद करती हैं, लेकिन इन दिनों उन्होंने एक अलग बीड़ा उठाया है. वह स्ट्रीट डॉग की हमदर्द बनकर उन्हें रोजाना खाना खिलाती हैं, साथ ही उन्हें बीमार होने और कोई चोट लगने पर उनका इलाज भी कराती हैं.
24 से ज्यादा डॉग को खिलाती हैं खाना
चांदनी हर रोज शाम को स्ट्रीट डॉग के लिए खाना तैयार करके तय स्थानों पर पहुंचती है, जहां स्ट्रीट डॉग चांदनी को देखते ही भागे-भागे आते है और खाने में जुट जाते है. चांदनी ने बताया कि वो बचपन से ही जानवर बेहद पंसद है और उनके परिवार के लोग उनकी भरपूर मदद करते हैं. आमतौर पर उनकी शॉप पर पहले वह स्ट्रीट डॉग को खाना खिलाती रहती थी, लेकिन कोरोना काल में उनकी सोच बदली है और उन्होंने स्ट्रीट डॉग को लॉकडाउन के दौरान रोजाना खाना देना शुरू किया. शुरूआत में चांदनी गिने-चुने स्ट्रीट डॉग को खाना खिलाती थी, लेकिन आज ये संख्या करीब 24 से अधिक हो गई है.
बचपन से है जानवरों से लगाव
चांदनी पॉल बताती है कि बचपन में उनके घर के पीछे पार्क में एक फीमेल डॉग ने बच्चे दिए थे, तब से वे उनको घर लाने लगी और खाना खिलाने लगी. उन्होंने कहा कि उनकी शॉप में हर रोज चार से पांच स्ट्रीट डॉग कुछ ना कुछ खाने के लिए आते है, उनके घर पर भी एक डॉग फैमिली है, जिसमें सात लोग हैं. अभी लॉकडाउन के समय पर स्ट्रीट डॉग के लिए खाने की परेशानी हो गई और वह भूखे रहने लगे, जिसके देखते हुए उन्होंने अपने घर से सभी डॉग के खाने का इंतजाम किया और बीमार होने या चोट लगने पर भी उनका इलाज कराते हैं.
खाने में खिलाती हैं ये चीजें
चांदनी बताती है कि वे स्ट्रीट डॉग के खाने पीने के लिए दूध, दलिया, कभी दूध चावल का इंतजाम करती हैं. कभी-कभी रोटी भी बनाती हैं, जो उनके लिए ठीक रहता है, उन्हें वो खिलाती है. कभी पेडिग्री भी खिलाती है, लेकिन स्ट्रीट डॉग पेडिग्री पसंद नहीं करते है, इसलिए दूध दलिया ज्यादा खिलाती है. चांदनी ने कहा कि स्ट्रीट डॉग्स के इलाज के लिए उनके पास एक पैट क्लीनिक है, जिसके डॉक्टर उनकी मदद करते है. वह स्ट्रीट डॉग के ट्रीटमेंट का पैसा नहीं लेते है, केवल मेडिसिन का पैसा लेते है, वहीं कई बार तो सैंपल की मेडिसिन फ्री में दे देते है.
दो रोटी जानवरों के जीने का जरिया
चांदनी ने कहा कि वे लोगों तक संदेश भेजना चाहती हैं कि वर्तमान में इंसान मतलबी हो गए है, सिर्फ अपने लिए जी रहे है, उनको आसपास से कोई मतलब नहीं है, लेकिन चांदनी का कहना है कि भगवान ने हमें इंसान बनाया है, तो हमें मूक जानवरों की मदद करनी चाहिए. जिसके लिए अगर उन्हें दो रोटी दे सकते हैं, तो वह उनके जीने का जरिया बन जाता हैं.
जानवरों को खाना खिलाने से मिलती है शांति
चांदनी के मामा राजेंद्र सोमवंशी बताते है कि इंसौनों को जिस तरह भूख प्यास और दूसरी परेशानी होती है, ठीक ऐसे ही जानवरों को भी होती है, लेकिन जानवर मूक होते है, तो वह किसी को अपनी परेशानी नहीं बता पाते. जिसे देखते हुए उन्होंने धीरे-धीरे काम शुरू किया, एक से दो, दो से चार और ऐसे सिलसिला बढ़ता गया. जानवरों की देखभाल करके, उन्हें खाना खिलाकर मन को शांति मिलती है.
कोरोना के समय पर काफी लंबा लॉकडाउन था. खाने-पीने की सभी दुकानें बंद थी. इसलिए स्ट्रीट डॉग को कुछ खाने पीने नहीं मिल रहा था. वह किसी को बोल भी नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने स्ट्रीट डॉग को खाना खिलाने का काम शुरू किया.