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BJP-कांग्रेस के लिए BSP Breaker! कभी हाथ को हराया तो कभी हाथी के पंजे से कमल को मसला

मध्यप्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियों के लिए स्पीड ब्रेकर (Speed Breaker of Politics) बन चुकी बसपा का कद भले ही बहुत छोटा है, लेकिन यहां की सियासत पर एक कहावत सटीक बैठती है कि 'देखन में छोटा लगे घाव करे गंभीर'. हर चुनाव में बसपा जैसी छोटी पार्टी (Jeet Breaker of Politics) कई सीटों के नतीजों में बड़ा उलटफेर (Speed Breaker for BJP Congress) कर चुकी है. कभी कांग्रेस की परंपरागत सीट पर कमल खिला देती है तो कभी कमल को ही 'हाथी के पंजे' से मसल देती है.

bsp breaker for bjp congress
BJP-कांग्रेस के लिए BSP Breaker
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Published : Nov 19, 2021, 6:16 AM IST

Updated : Nov 19, 2021, 7:03 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में पिछले कुछ दशकों से बहुजन समाज पार्टी चुनाव मैदान से भले ही दूर है, लेकिन उसके वोट बैंक का झुकाव हर बार नतीजों को प्रभावित करता है. बसपा का यह वोट बैंक जिसके भी पक्ष में झुकता है, उसके लिए यह निर्णायक साबित होता है. कांग्रेस और बीजेपी जैसी बड़ी पार्टियों के लिए बीएसपी हमेशा ही स्पीड ब्रेकर (Speed Breaker of Politics) नहीं बल्कि जीत ब्रेकर (Jeet Breaker of Politics) साबित होती रही है. विधानसभा चुनाव-उपचुनाव सब में बसपा का असर दिखा है, जिसका खामियाजा कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस को भुगतना पड़ा है.

आदिवासियों की ओर झुक रही मध्य प्रदेश की राजनीति, 2023 की तैयारी कर रही दोनों पार्टियां

70% वोट बैंक पर बीजेपी की नजर

प्रदेश में बसपा के प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव 2003, 2008 और 2013 में 69 सीटों पर बीएसपी का वोट शेयर 10 फीसदी से अधिक रहा है. जानकारों का कहना है कि बसपा पहले से अनुसूचित जाति वर्ग को लेकर राजनीति करती रही है, लेकिन अन्य समाज के वोट भी (Jeet Breaker of Politics) उसे मिलते रहे हैं. प्रदेश के जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां सामान्य वर्ग की आबादी 22 प्रतिशत है, जबकि ओबीसी 33 प्रतिशत हैं और एससी 16 प्रतिशत-एसटी 21 प्रतिशत हैं.

आदिवासी गौरव दिवस से बीजेपी क्या हासिल करना चाहती है ?

कांग्रेस की हार की बीएसपी जिम्मेदार

साल 2020 में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को 19 और कांग्रेस को 9 सीटें मिली थी, इस उपचुनाव में यदि बसपा कांग्रेस के साथ होती तो 5 सीटों का रिजल्ट पलट सकता था. प्रदेश की भांडेर, जौरा, बड़ा मलहरा, मेहगांव और पोहरी सीट पर कांग्रेस की हार के लिए बसपा ही जिम्मेदार रही. अभी हाल में हुए उपचुनाव में भी बसपा स्पीड ब्रेकर साबित हुई है. दो नवंबर को प्रदेश की 3 विधानसभा और एक लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आये थे, जिसमें बीएसपी की खास भूमिका रही.

bsp breaker for bjp congress
BJP-कांग्रेस के लिए जीत का Breaker

कांग्रेस की जीत पर लगा BSP का ब्रेक

सतना की रैगांव सीट पर बसपा के चुनाव नहीं लड़ने के चलते 31 साल बाद इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हुआ है, 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को रैगांव में 11% वोट मिले थे और कांग्रेस चुनाव हार गई थी. वहीं निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर में वर्ष 2018 में बीएसपी को 20 फीसदी वोट मिले थे, तब वहां दूसरे नंबर पर सपा थी, जिसे 32 फीसदी वोट मिले थे. बीजेपी चौथे नंबर पर पहुंच गई थी, लेकिन इस बार सपा का वोट बैंक बीजेपी के साथ चला गया और बसपा मैदान से बाहर रही, जिसके चलते यहां पर कांग्रेस को शिकस्त झेलनी पड़ी. यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट थी. वहीं जोबट में तीसरी शक्ति का जनाधार नहीं होने से सीधी टक्कर देखने को मिली.

उपचुनाव में भी स्पीड ब्रेकर बनी बीएसपी

उपचुनाव की चारों सीटों पर बसपा ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे, इसके बावजूद इनके वोट बैंक ने चुनाव में अहम भूमिका निभाई. पिछले उपचुनाव में बसपा का प्रदर्शन अच्छा रहा. पृथ्वीपुर में 30,000, जोबट में 2699, रैगांव में 16627 और खंडवा लोकसभा क्षेत्र में 15000 वोट बसपा उम्मीदवारों ने हासिल किए थे. हालांकि, बसपा 2008 में प्रदेश में सबसे ज्यादा सात सीटों पर जीत हासिल की थी, उत्तर प्रदेश में बसपा सत्ता में रह चुकी है, इसका असर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में रहा है.

bsp breaker for bjp congress
मध्यप्रदेश बीएसपी कार्यालय

2008 में 7 सीटों पर जीती थी बसपा

2003 के विधानसभा चुनाव में बसपा 157 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन जीत केवल दो सीटों पर ही मिली थी, 2008 के विधानसभा चुनाव में बसपा 228 सीटों पर चुनाव लड़ी और 7 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 2013 में 227 सीटों पर चुनाव लड़कर बसपा 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ दो सीटें ही हासिल हुई थी. दमोह जिले की पथरिया से विधायक राम बाई का कहना है कि आने वाले चुनाव में बसपा के विधायकों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि हर वर्ग के लोगों का सहयोग और भरोसा बसपा के प्रति बढ़ रहा है, जिससे उम्मीद है कि यदि प्रत्याशियों का चयन ठीक रहा तो विधायकों की संख्या में इजाफा होगा.

रीवा से बसपा की लोकसभा में एंट्री

1991 में बसपा प्रत्याशी भीम सिंह ने रीवा से कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवारों को हराकर लोकसभा (Speed Breaker for BJP Congress) में प्रवेश किया था, जबकि 1996 में रीवा से बुद्धसेन पटेल और सतना से सुखलाल कुशवाहा मप्र की 2 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर संसद पहुंचे थे. इस समय मप्र में बसपा के दो विधायक राम बाई और संजीव कुशवाहा हैं.

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में पिछले कुछ दशकों से बहुजन समाज पार्टी चुनाव मैदान से भले ही दूर है, लेकिन उसके वोट बैंक का झुकाव हर बार नतीजों को प्रभावित करता है. बसपा का यह वोट बैंक जिसके भी पक्ष में झुकता है, उसके लिए यह निर्णायक साबित होता है. कांग्रेस और बीजेपी जैसी बड़ी पार्टियों के लिए बीएसपी हमेशा ही स्पीड ब्रेकर (Speed Breaker of Politics) नहीं बल्कि जीत ब्रेकर (Jeet Breaker of Politics) साबित होती रही है. विधानसभा चुनाव-उपचुनाव सब में बसपा का असर दिखा है, जिसका खामियाजा कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस को भुगतना पड़ा है.

आदिवासियों की ओर झुक रही मध्य प्रदेश की राजनीति, 2023 की तैयारी कर रही दोनों पार्टियां

70% वोट बैंक पर बीजेपी की नजर

प्रदेश में बसपा के प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव 2003, 2008 और 2013 में 69 सीटों पर बीएसपी का वोट शेयर 10 फीसदी से अधिक रहा है. जानकारों का कहना है कि बसपा पहले से अनुसूचित जाति वर्ग को लेकर राजनीति करती रही है, लेकिन अन्य समाज के वोट भी (Jeet Breaker of Politics) उसे मिलते रहे हैं. प्रदेश के जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां सामान्य वर्ग की आबादी 22 प्रतिशत है, जबकि ओबीसी 33 प्रतिशत हैं और एससी 16 प्रतिशत-एसटी 21 प्रतिशत हैं.

आदिवासी गौरव दिवस से बीजेपी क्या हासिल करना चाहती है ?

कांग्रेस की हार की बीएसपी जिम्मेदार

साल 2020 में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को 19 और कांग्रेस को 9 सीटें मिली थी, इस उपचुनाव में यदि बसपा कांग्रेस के साथ होती तो 5 सीटों का रिजल्ट पलट सकता था. प्रदेश की भांडेर, जौरा, बड़ा मलहरा, मेहगांव और पोहरी सीट पर कांग्रेस की हार के लिए बसपा ही जिम्मेदार रही. अभी हाल में हुए उपचुनाव में भी बसपा स्पीड ब्रेकर साबित हुई है. दो नवंबर को प्रदेश की 3 विधानसभा और एक लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आये थे, जिसमें बीएसपी की खास भूमिका रही.

bsp breaker for bjp congress
BJP-कांग्रेस के लिए जीत का Breaker

कांग्रेस की जीत पर लगा BSP का ब्रेक

सतना की रैगांव सीट पर बसपा के चुनाव नहीं लड़ने के चलते 31 साल बाद इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हुआ है, 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को रैगांव में 11% वोट मिले थे और कांग्रेस चुनाव हार गई थी. वहीं निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर में वर्ष 2018 में बीएसपी को 20 फीसदी वोट मिले थे, तब वहां दूसरे नंबर पर सपा थी, जिसे 32 फीसदी वोट मिले थे. बीजेपी चौथे नंबर पर पहुंच गई थी, लेकिन इस बार सपा का वोट बैंक बीजेपी के साथ चला गया और बसपा मैदान से बाहर रही, जिसके चलते यहां पर कांग्रेस को शिकस्त झेलनी पड़ी. यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट थी. वहीं जोबट में तीसरी शक्ति का जनाधार नहीं होने से सीधी टक्कर देखने को मिली.

उपचुनाव में भी स्पीड ब्रेकर बनी बीएसपी

उपचुनाव की चारों सीटों पर बसपा ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे, इसके बावजूद इनके वोट बैंक ने चुनाव में अहम भूमिका निभाई. पिछले उपचुनाव में बसपा का प्रदर्शन अच्छा रहा. पृथ्वीपुर में 30,000, जोबट में 2699, रैगांव में 16627 और खंडवा लोकसभा क्षेत्र में 15000 वोट बसपा उम्मीदवारों ने हासिल किए थे. हालांकि, बसपा 2008 में प्रदेश में सबसे ज्यादा सात सीटों पर जीत हासिल की थी, उत्तर प्रदेश में बसपा सत्ता में रह चुकी है, इसका असर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में रहा है.

bsp breaker for bjp congress
मध्यप्रदेश बीएसपी कार्यालय

2008 में 7 सीटों पर जीती थी बसपा

2003 के विधानसभा चुनाव में बसपा 157 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन जीत केवल दो सीटों पर ही मिली थी, 2008 के विधानसभा चुनाव में बसपा 228 सीटों पर चुनाव लड़ी और 7 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 2013 में 227 सीटों पर चुनाव लड़कर बसपा 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ दो सीटें ही हासिल हुई थी. दमोह जिले की पथरिया से विधायक राम बाई का कहना है कि आने वाले चुनाव में बसपा के विधायकों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि हर वर्ग के लोगों का सहयोग और भरोसा बसपा के प्रति बढ़ रहा है, जिससे उम्मीद है कि यदि प्रत्याशियों का चयन ठीक रहा तो विधायकों की संख्या में इजाफा होगा.

रीवा से बसपा की लोकसभा में एंट्री

1991 में बसपा प्रत्याशी भीम सिंह ने रीवा से कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवारों को हराकर लोकसभा (Speed Breaker for BJP Congress) में प्रवेश किया था, जबकि 1996 में रीवा से बुद्धसेन पटेल और सतना से सुखलाल कुशवाहा मप्र की 2 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर संसद पहुंचे थे. इस समय मप्र में बसपा के दो विधायक राम बाई और संजीव कुशवाहा हैं.

Last Updated : Nov 19, 2021, 7:03 AM IST
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