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जान के साथ खिलवाड़, जीवन रक्षक दवाओं की हो रही कालाबाजारी - भोपाल में कोरोना केस

एमपी के भोपाल में कोरोना के इस संकट काल में दवाओं की कालाबाजारी की जा रही है. ऐसे में कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में कारगर दवा फेविपिराविर की जमकर कालाबाजारी की जा रही है.

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फेविपिराविर
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Published : Apr 22, 2021, 4:01 PM IST

भोपाल। कोरोना ने लोगों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है. इलाज के लिए मरीजों को ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन और अस्पतालों में बिस्तर तक नहीं मिल पा रहे हैं. ऐसे में कुछ लोग जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी करने में लगे हैं. रेमडेसिविर इंजेक्शन की मारामारी के बीच कुछ ऐसी दवाएं भी मार्केट से गायब हैं, जो कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव में राहत पहुंचाने वाली हैं.

दवाओं की कालाबाजारी से मरीज परेशान.

मरीजों को नहीं मिल रहीं दवाएं
शुरुआती लक्षण दवाओं के जरिए नियंत्रण में किए जा सकते हैं. चिकित्सक भी इस बात को मान रहे हैं और उनके पास आने वाले मरीजों को इन दवाओं का उपयोग करने की सलाह दे रहे हैं. जब मरीज मेडिकल स्टोर्स पर दवा खरीदने पहुंच रहे हैं तो उन्हें यह कहकर लौटाया जा रहा है कि यह दवाएं स्टॉक में नहीं हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जीवन रक्षक दवाइयों की कमी ऐसे समय में क्यों सामने आ रही है.

दवा बाजार में दवाओं के स्टॉक की कमी
ईटीवी भारत ने इस मामले में पड़ताल की तो सामने आया कि दवा बाजार में जीवन रक्षक दवाओं को कुछ केमिस्ट छुपा कर रखे हैं. जानकारी के अनुसार 'फेविपिराविर टैबलेट' ऐसी ही एक दवा का नाम है. इस दवा को कई कंपनियां बनाती हैं. इसी तरह आइबर मेक्टिन, इरिथ्रोमाइसिन जैसी अन्य जीवन रक्षक दवाएं भी बाजार से गायब हैं.

मरीजों की संख्या में हो रही वृद्धि
दवा व्यापारियों का कहना है कि फेविपिराविर टैबलेट जैसी दवाएं कोरोना संक्रमण काल में अधिक मात्रा में उपयोग में लाई जा रही हैं. डॉक्टर्स बुखार आने पर मरीज को इन्हीं दवाओं का सेवन करने की सलाह दे रहे हैं. मरीजों की संख्या में हो रही अनियंत्रित वृद्धि के कारण इन दवाओं की मांग बढ़ गई है. इसके चलते 'फेवी फ्लू' जैसी दवाओं का स्टॉक कम हो गया है. यहां तक कि बाजार में यह दवाएं किसी के पास भी उपलब्ध नहीं है. आर्डर के बावजूद कंपनियां इन दवाओं की पूर्ति नहीं कर पा रही हैं.

कोरोना संक्रमण से बचाव में सहायक है फेवी फ्लू टैबलेट
फेवी फ्लू टैबलेट को शुरुआती दौर में एक से दो दिन के अंदर लक्षण देखने के बाद और डॉक्टरों के हिसाब से 72 घंटे के अंदर अगर इस टैबलेट को दिया जाता है तो डॉक्टरों का ऐसा मानना है कि 90% पेशेंट को हॉस्पिटल नहीं जाना पड़ता. शुरुआती दौर में मरीज घर पर ही सही हो जाते हैं. अभी भोपाल दावा बाजार में कुछ स्टॉकिस्ट ऐसे हैं, जिनके पास दवा पर्याप्त मात्रा में है लेकिन वह रिटेल केमिस्टों को दवाएं उपलब्ध नहीं करा रहे हैं. ऐसे में कालाबाजारी को बढ़ावा मिल रहा है.

मध्य भारत के सबसे बड़े कोविड केयर सेंटर में उपचार शुरू

हरदा में हुई कालाबाजारी पर कार्रवाई
हाल ही में फेवी फ्लू टैबलेट की कालाबाजारी करते हुए मध्य प्रदेश के हरदा में एक मेडिकल संचालक पर कार्रवाई की गई. यह संचालक इस 1224 रुपये की दवा को 2100 रुपये में ब्लैक में बेच रहा था. जिस पर कार्रवाई करते हुए उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. दरअसल, 'फेवी फ्लू-400' नामक दवा कोरोना संक्रमण के दौरान काफी मात्रा में मरीजों द्वारा खरीदी जा रही है.

भोपाल। कोरोना ने लोगों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है. इलाज के लिए मरीजों को ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन और अस्पतालों में बिस्तर तक नहीं मिल पा रहे हैं. ऐसे में कुछ लोग जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी करने में लगे हैं. रेमडेसिविर इंजेक्शन की मारामारी के बीच कुछ ऐसी दवाएं भी मार्केट से गायब हैं, जो कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव में राहत पहुंचाने वाली हैं.

दवाओं की कालाबाजारी से मरीज परेशान.

मरीजों को नहीं मिल रहीं दवाएं
शुरुआती लक्षण दवाओं के जरिए नियंत्रण में किए जा सकते हैं. चिकित्सक भी इस बात को मान रहे हैं और उनके पास आने वाले मरीजों को इन दवाओं का उपयोग करने की सलाह दे रहे हैं. जब मरीज मेडिकल स्टोर्स पर दवा खरीदने पहुंच रहे हैं तो उन्हें यह कहकर लौटाया जा रहा है कि यह दवाएं स्टॉक में नहीं हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जीवन रक्षक दवाइयों की कमी ऐसे समय में क्यों सामने आ रही है.

दवा बाजार में दवाओं के स्टॉक की कमी
ईटीवी भारत ने इस मामले में पड़ताल की तो सामने आया कि दवा बाजार में जीवन रक्षक दवाओं को कुछ केमिस्ट छुपा कर रखे हैं. जानकारी के अनुसार 'फेविपिराविर टैबलेट' ऐसी ही एक दवा का नाम है. इस दवा को कई कंपनियां बनाती हैं. इसी तरह आइबर मेक्टिन, इरिथ्रोमाइसिन जैसी अन्य जीवन रक्षक दवाएं भी बाजार से गायब हैं.

मरीजों की संख्या में हो रही वृद्धि
दवा व्यापारियों का कहना है कि फेविपिराविर टैबलेट जैसी दवाएं कोरोना संक्रमण काल में अधिक मात्रा में उपयोग में लाई जा रही हैं. डॉक्टर्स बुखार आने पर मरीज को इन्हीं दवाओं का सेवन करने की सलाह दे रहे हैं. मरीजों की संख्या में हो रही अनियंत्रित वृद्धि के कारण इन दवाओं की मांग बढ़ गई है. इसके चलते 'फेवी फ्लू' जैसी दवाओं का स्टॉक कम हो गया है. यहां तक कि बाजार में यह दवाएं किसी के पास भी उपलब्ध नहीं है. आर्डर के बावजूद कंपनियां इन दवाओं की पूर्ति नहीं कर पा रही हैं.

कोरोना संक्रमण से बचाव में सहायक है फेवी फ्लू टैबलेट
फेवी फ्लू टैबलेट को शुरुआती दौर में एक से दो दिन के अंदर लक्षण देखने के बाद और डॉक्टरों के हिसाब से 72 घंटे के अंदर अगर इस टैबलेट को दिया जाता है तो डॉक्टरों का ऐसा मानना है कि 90% पेशेंट को हॉस्पिटल नहीं जाना पड़ता. शुरुआती दौर में मरीज घर पर ही सही हो जाते हैं. अभी भोपाल दावा बाजार में कुछ स्टॉकिस्ट ऐसे हैं, जिनके पास दवा पर्याप्त मात्रा में है लेकिन वह रिटेल केमिस्टों को दवाएं उपलब्ध नहीं करा रहे हैं. ऐसे में कालाबाजारी को बढ़ावा मिल रहा है.

मध्य भारत के सबसे बड़े कोविड केयर सेंटर में उपचार शुरू

हरदा में हुई कालाबाजारी पर कार्रवाई
हाल ही में फेवी फ्लू टैबलेट की कालाबाजारी करते हुए मध्य प्रदेश के हरदा में एक मेडिकल संचालक पर कार्रवाई की गई. यह संचालक इस 1224 रुपये की दवा को 2100 रुपये में ब्लैक में बेच रहा था. जिस पर कार्रवाई करते हुए उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. दरअसल, 'फेवी फ्लू-400' नामक दवा कोरोना संक्रमण के दौरान काफी मात्रा में मरीजों द्वारा खरीदी जा रही है.

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