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UP चुनाव में BSP से छिटका दलित वोट बैंक MP में किसकी किस्मत चमकाएगा, पढ़ें .. पूरा विश्लेषण

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Published : Apr 20, 2022, 12:41 PM IST

Updated : Apr 20, 2022, 1:27 PM IST

मायावती के वोट बैंक को हथियाने के लिए मध्यप्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है. प्रदेश की 69 सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस का गणित बिगाड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी के वोट शेयर पर अब सियासी दलों की नजर है. उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों में बसपा के हाथों से खिसके वोट शेयर को हथियाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस जोर लगाती हुए नजर आ रही हैं. (Plan of BJP for Dalit vote bank) (Plan of Congress for Dalit vote bank)(Dalit vote bank in Madhya Pradesh)

Plan of BJP for Dalit vote bank
दलित वोट बैंक पर बीजेपी की नजर

भोपाल। मध्यप्रदेश में मायावती के वोट बैंक पर बीजेपी और कांग्रेस की नजर है. हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक उसके हाथों से खिसक गया और बीजेपी के साथ ही सपा को इसका फायदा पहुंचा. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने वाली बीएसपी की उत्तर प्रदेश में हालत खराब होने के बाद अब प्रदेश में मायावती के वोट बैंक पर बीजेपी और कांग्रेस ने नजरें गड़ा दी हैं. बसपा के परंपरागत वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है. यही कारण है कि पहले जनजाति गौरव दिवस का आयोजन कर बीजेपी ने आदिवासियों को रिझाने के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में दलित और आदिवासियों का एक बड़ा कार्यक्रम करने की तैयारी कर ली है.

तेंदूपत्ता संग्राहक में दलित और आदिवासी शामिल होंगे : 22 अप्रैल को भोपाल में होने वाले तेंदूपत्ता संग्राहकों के बोनस वितरण कार्यक्रम में पार्टी एक लाख से ज्यादा तेंदूपत्ता संग्राहक की भीड़ जुटाने की तैयारी में है. तेंदूपत्ता संग्राहक में दलित और आदिवासी शामिल होंगे और इनकी मौजूदगी में अमित शाह 2023 के चुनाव में एक बड़े वोट बैंक को पार्टी के पक्ष में लाने की कोशिश करेंगे. प्रदेश के मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के परंपरागत वोटर ने मायावती पर भरोसा ना करते हुए बीजेपी के पक्ष में फैसला सुनाया है और उसका असर अब एमपी के विधानसभा चुनाव में भी नजर आएगा. सरकार के विकास की योजनाओं से दलित और आदिवासी भाजपा के पक्ष में खड़ा नजर आएगा.

कांग्रेस भी दलितों और आदिवासियों को रिझाने में जुटी : कांग्रेस भी दलित और आदिवासियों में अपनी पैठ को मजबूत बनाने की कोशिश में है. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दलित और आदिवासियों का अच्छा वोट हासिल हुआ था, जिसके कारण सबसे ज्यादा आदिवासी सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी और ऐसे में कमलनाथ अब दलित और आदिवासियों को साधने के लिए रणनीति बनाने का काम कर रहे हैं. पार्टी ने चुनाव के पहले बूथ बूथ स्तर तक पहुंच कर एक बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में करने का प्लान तैयार किया है. कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने कहा कि 2018 के चुनावों में बीजेपी के झूठ को जनता ने पहचान लिया और कांग्रेस को बहुमत दिलाया. अब फिर 2023 में बीजेपी के झूठ का जवाब जनता देगी.

10 फीसदी वोट बैंक बढ़ाने की मशक्कत : उत्तर प्रदेश से लगी एमपी के ग्वालियर चंबल विंध्य और बुंदेलखंड की विधानसभा सीटें पर बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव है. बीजेपी ने अपना वोट शेयर बढ़ाने बढ़ाते हुए इसे 50 फीसदी के पार ले जाने का लक्ष्य तय किया है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीजेपी की नजर दलित वोटरों पर है. 2018 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 5.1 फीसदी वोट हासिल हुए थे और अब बीएसपी के इसी वोट को अपने खाते में लाने के लिए बीजेपी बड़े कार्यक्रमों के सहारे खुद को मजबूत बनाने की तैयारी में लगी है तो वहीं कांग्रेस भी बीएसपी के परंपरागत वोट बैंक पर कब्जा जमाने के लिए दम लगा रही है. ऐसे में यूपी चुनाव के बाद अब एमपी में बसपा का परंपरा का वोट किसके खाते में जाता है, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन यह तय है कि मायावती का वोट जिस पार्टी के खाते में जाएगा 2023 के चुनाव में उस पार्टी का सत्ता में आना तय है.

गृह मंत्री अमित शाह के भोपाल दौरा कार्यक्रम में अचानक परिवर्तन, बीजेपी मुख्यालय में दो घंटे रुकेंगे

गत विधानसभा चुनाव में बीएसपी को मिली थीं 15 सीटें : पिछले चुनाव में बसपा को 15 सीटों पर निर्णायक वोट मिले थे. इनमें से दो सीटों पर बसपा प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि 13 सीटें ऐसी थीं, जहां बसपा प्रत्याशियों को 15 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट मिले थे. बसपा ने 2018 में ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों पर निर्णायक वोट हासिल किए थे. बीते छह विधानसभा चुनावों में जिन 24 सीटों पर बसपा जीती है. उनमें 10 इसी इलाके की सीटें रहीं. विंध्य के सात जिलों में कुल 30 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 17 बीजेपी, 11 कांग्रेस और 2 बीएसपी के पास हैं. इस इलाके को जातियों की आबादी के नज़रिए से देखा जाए तो यहां 29% सवर्ण, 14% ओबीसी, 33% एससी/एसटी और 24% अन्य की हिस्सेदारी है. 2003 के चुनाव के बाद से बसपा ने मध्यप्रदेश में 13 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की है. इनमें से नौ गैर-आरक्षित सीटें हैं. यानी उम्मीदवार न तो दलित था और न ही आदिवासी.

अनुसूचित जाति का वोट बैंक भी अहम : अनुसूचित जाति की 47 सीटों में से वर्तमान में 30 पर कांग्रेस का कब्जा है तो 17 पर बीजेपी है. भाजपा इस गणित को बदलकर अपने पक्ष में करने में जुटी है. बीते सात महीने में अमित शाह का एमपी का ये दूसरा दौरा है. 2019 के आम चुनावों से पहले पार्टी के समर्थन आधार को मजबूत करने और विस्तार करने के लिए भाजपा प्रमुख के 110 दिवसीय राष्ट्रव्यापी दौरे में भोपाल भी पहुंचे थे. अमित शाह ने 2018 में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने के साथ ही भेल दशहरा मैदान पर करीब 6500 पदाधिकारियों की क्लास भी ली थी. (Plan of BJP for Dalit vote bank) (Plan of Congress for Dalit vote bank)( Dalit vote bank in Madhya Pradesh)

भोपाल। मध्यप्रदेश में मायावती के वोट बैंक पर बीजेपी और कांग्रेस की नजर है. हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक उसके हाथों से खिसक गया और बीजेपी के साथ ही सपा को इसका फायदा पहुंचा. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने वाली बीएसपी की उत्तर प्रदेश में हालत खराब होने के बाद अब प्रदेश में मायावती के वोट बैंक पर बीजेपी और कांग्रेस ने नजरें गड़ा दी हैं. बसपा के परंपरागत वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है. यही कारण है कि पहले जनजाति गौरव दिवस का आयोजन कर बीजेपी ने आदिवासियों को रिझाने के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में दलित और आदिवासियों का एक बड़ा कार्यक्रम करने की तैयारी कर ली है.

तेंदूपत्ता संग्राहक में दलित और आदिवासी शामिल होंगे : 22 अप्रैल को भोपाल में होने वाले तेंदूपत्ता संग्राहकों के बोनस वितरण कार्यक्रम में पार्टी एक लाख से ज्यादा तेंदूपत्ता संग्राहक की भीड़ जुटाने की तैयारी में है. तेंदूपत्ता संग्राहक में दलित और आदिवासी शामिल होंगे और इनकी मौजूदगी में अमित शाह 2023 के चुनाव में एक बड़े वोट बैंक को पार्टी के पक्ष में लाने की कोशिश करेंगे. प्रदेश के मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के परंपरागत वोटर ने मायावती पर भरोसा ना करते हुए बीजेपी के पक्ष में फैसला सुनाया है और उसका असर अब एमपी के विधानसभा चुनाव में भी नजर आएगा. सरकार के विकास की योजनाओं से दलित और आदिवासी भाजपा के पक्ष में खड़ा नजर आएगा.

कांग्रेस भी दलितों और आदिवासियों को रिझाने में जुटी : कांग्रेस भी दलित और आदिवासियों में अपनी पैठ को मजबूत बनाने की कोशिश में है. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दलित और आदिवासियों का अच्छा वोट हासिल हुआ था, जिसके कारण सबसे ज्यादा आदिवासी सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी और ऐसे में कमलनाथ अब दलित और आदिवासियों को साधने के लिए रणनीति बनाने का काम कर रहे हैं. पार्टी ने चुनाव के पहले बूथ बूथ स्तर तक पहुंच कर एक बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में करने का प्लान तैयार किया है. कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने कहा कि 2018 के चुनावों में बीजेपी के झूठ को जनता ने पहचान लिया और कांग्रेस को बहुमत दिलाया. अब फिर 2023 में बीजेपी के झूठ का जवाब जनता देगी.

10 फीसदी वोट बैंक बढ़ाने की मशक्कत : उत्तर प्रदेश से लगी एमपी के ग्वालियर चंबल विंध्य और बुंदेलखंड की विधानसभा सीटें पर बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव है. बीजेपी ने अपना वोट शेयर बढ़ाने बढ़ाते हुए इसे 50 फीसदी के पार ले जाने का लक्ष्य तय किया है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीजेपी की नजर दलित वोटरों पर है. 2018 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 5.1 फीसदी वोट हासिल हुए थे और अब बीएसपी के इसी वोट को अपने खाते में लाने के लिए बीजेपी बड़े कार्यक्रमों के सहारे खुद को मजबूत बनाने की तैयारी में लगी है तो वहीं कांग्रेस भी बीएसपी के परंपरागत वोट बैंक पर कब्जा जमाने के लिए दम लगा रही है. ऐसे में यूपी चुनाव के बाद अब एमपी में बसपा का परंपरा का वोट किसके खाते में जाता है, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन यह तय है कि मायावती का वोट जिस पार्टी के खाते में जाएगा 2023 के चुनाव में उस पार्टी का सत्ता में आना तय है.

गृह मंत्री अमित शाह के भोपाल दौरा कार्यक्रम में अचानक परिवर्तन, बीजेपी मुख्यालय में दो घंटे रुकेंगे

गत विधानसभा चुनाव में बीएसपी को मिली थीं 15 सीटें : पिछले चुनाव में बसपा को 15 सीटों पर निर्णायक वोट मिले थे. इनमें से दो सीटों पर बसपा प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि 13 सीटें ऐसी थीं, जहां बसपा प्रत्याशियों को 15 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट मिले थे. बसपा ने 2018 में ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों पर निर्णायक वोट हासिल किए थे. बीते छह विधानसभा चुनावों में जिन 24 सीटों पर बसपा जीती है. उनमें 10 इसी इलाके की सीटें रहीं. विंध्य के सात जिलों में कुल 30 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 17 बीजेपी, 11 कांग्रेस और 2 बीएसपी के पास हैं. इस इलाके को जातियों की आबादी के नज़रिए से देखा जाए तो यहां 29% सवर्ण, 14% ओबीसी, 33% एससी/एसटी और 24% अन्य की हिस्सेदारी है. 2003 के चुनाव के बाद से बसपा ने मध्यप्रदेश में 13 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की है. इनमें से नौ गैर-आरक्षित सीटें हैं. यानी उम्मीदवार न तो दलित था और न ही आदिवासी.

अनुसूचित जाति का वोट बैंक भी अहम : अनुसूचित जाति की 47 सीटों में से वर्तमान में 30 पर कांग्रेस का कब्जा है तो 17 पर बीजेपी है. भाजपा इस गणित को बदलकर अपने पक्ष में करने में जुटी है. बीते सात महीने में अमित शाह का एमपी का ये दूसरा दौरा है. 2019 के आम चुनावों से पहले पार्टी के समर्थन आधार को मजबूत करने और विस्तार करने के लिए भाजपा प्रमुख के 110 दिवसीय राष्ट्रव्यापी दौरे में भोपाल भी पहुंचे थे. अमित शाह ने 2018 में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने के साथ ही भेल दशहरा मैदान पर करीब 6500 पदाधिकारियों की क्लास भी ली थी. (Plan of BJP for Dalit vote bank) (Plan of Congress for Dalit vote bank)( Dalit vote bank in Madhya Pradesh)

Last Updated : Apr 20, 2022, 1:27 PM IST
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