भोपाल। जिस कोरोना वायरस के आगे पूरी दुनिया घुटनों पर खड़ी है, उसे रोकने के लिए कोरोना वॉरियर्स को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर रहे डॉक्टर पीपीई किट सहित ग्लव्स,मास्क और गॉगल पहनते हैं, जिसके बाद उसे डिस्ट्रॉय किया जाता है, इसके लिए क्या-क्या सावधानियां बरतनी पड़ती हैं. इस लेकर बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट कमेटी बनाई गई है, जो डॉक्टरों द्वारा उतारे गए पीपीई किट, कैसे नष्ट करना है, इसका ध्यान रखती है.
पीपीई किट एक बार उतारने के बाद दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे भी संक्रमण का खतरा होता है. डॉक्टरों द्वारा इस्तेमाल इन किट को भी बड़ी सावधानी से नष्ट किया जाता है. बायो मेडिकल वेस्ट के निष्पादन के लिए अलग से 3 स्तरीय विधि अपनाई जा रही है, ताकि इनसे किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमण ना फैले. भारत सरकार की गाइडलाइन के तहत ही अस्पतालों में इन बायो मेडिकल कचरे को निष्पादित किया जा रहा है.
बायो मेडिकल वेस्ट को नष्ट करने के लिए रखी जाती है सावधानी
एम्स भोपाल में बायो मेडिकल वेस्ट प्रबंधन के लिए बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट कमेटी बनाई गई है. इसके मेंबर सेक्रेट्री डॉक्टर देबाशीष विश्वास ने बताया कि, अस्पताल में पीपीई किट, N95 मास्क और कैप को अलग से एक पीले कलर के 2 लेयर वाले डस्टबिन में रखते हैं.वहीं ग्लव्स को लाल रंग के डस्टबिन में रखा जाता है. इस बैग में कोविड -19 का लेबल लगा दिया जाता है, ताकि इस वेस्ट को लेकर ज्यादा सावधानी रखी जाए. यह पूरा वेस्ट दिन में 2-3 बार पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से आने वाली कचड़ा गाड़ी में ले जाया जाता है. जहां इसे अलग-अलग विधि से खत्म किया जाता है. बता दें कि बायो मेडिकल वेस्ट को 1 हजार डिग्री से भी ज्यादा तापमान में नष्ट किया जाता है.
हमीदिया अस्पताल में पीपीई किट उतारने के लिए बनाई गई अलग जगह
इसी तरह भोपाल के हमीदिया अस्पताल में भी एक पूरी प्रक्रिया के तहत इस बायो मेडिकल वेस्ट का प्रबंधन किया जाता है. इस बारे में हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ.अरुण कुमार ने बताया कि, अस्पताल में हमने एक अलग से ब्लॉक बना रखा है. जहां पीपीई किट के पहनने और उतारने के लिए अलग से व्यवस्था है. वहीं डॉक्टरों और स्टाफ को साफ तौर पर निर्देश दिए गए है कि, पीपीई किट के लिए बनाए गए स्थान में ही उसे इस्तेमाल के बाद रखना है. डॉक्टरों द्वारा पीपीई किट को उतारने के बाद प्लास्टिक के एक मोटे बैग में रखा जाता है. जिसके बाद इसमें डिस इन्फेक्शन के लिए केमिकल का छिड़काव किया जाता है, ताकि किसी भी तरह का संक्रमण बाहरी व्यक्ति तक ना पहुंचे. इस बैग को बहुत ही सावधानी से अलग रखा जाता है और जब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की गाड़ी इसे लेने आती है, तो बहुत ही सावधानी से इसे भेजा जाता है. राजधानी भोपाल के अन्य अस्पतालों में भी बायो मेडिकल वेस्ट के लिए इस समय यही प्रक्रिया अपनाई जा रही है.