भोपाल। गैस त्रासदी (bhopal gas tragedy) को 37 साल हो चुके हैं. कई सरकारें आई और गईं. हालत ये है कि अभी भी गैस पीड़ित अपने मुआवजे और इलाज के लिए भटक रहे हैं. गैस पीड़ितों की माने तो उनका विश्वास सरकारों पर से उठ गया है, चाहे बीजेपी सरकार हो या फिर कांग्रेस सरकार. दोनों ने ही गैस त्रासदी झेल (bhopal gas tragedy victims) रहे लोगों के लिए कुछ नहीं किया है. पीड़ितों को सिर्फ वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया गया है.
सरकार से उठा पीड़ितों का विश्वास
आज से ठीक 37 साल पहले 2-3 दिसंबर (bhopal gas tragedy date) की दरमियानी रात के भयावह मंजर से पूरा देश कांप उठा था. हजारों लोग मौत की नींद सो गए. सरकार ने मौतों पर मुआवजे का मरहम लगा दिया, लेकिन 37 साल बाद आज भी गैस पीड़ित संगठन संघर्ष की लड़ाई लड़ रहे हैं. गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ रहे संगठनों का विश्वास भी सरकार से उठ गया है. संगठन का कहना है कि दोनों सरकारों ने गैस पीड़ितों के हक को नहीं दिलाया. एक तरफ जहां कांग्रेस सरकार ने एंडरसन को इस देश से भगाया तो वहीं बीजेपी सरकार ने एंडरसन को गले लगाया. रचना ढींगरा का कहना है कि डाऊ केमीकल के सीईओ को पीएम मोदी ने गले लगाया.
गंभीर बीमारी से जूझ रहे पीड़ित
इस त्रासदी के लोग गंभीर बीमारियों के चलते खत्म हो गए, उनके बच्चें मिथाइल आइसोसाइनेट केमिकल (bhopal gas tragedy gas name) के चलते अनुवांशिक बीमारी से जूझ रहे हैं. पीड़ित कहते हैं कि सरकारों ने खुद का स्वार्थ देखा है. वहीं गैस राहत मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि कांग्रेस सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह ने एंडरसन (who is waren anderson) को भगाया. राजीव गांधी ने मदद आगे बढ़ाते हुए उन्हें विदेश जाने का मौका दिया. विश्वास का कहना है कि कांग्रेस सरकार ने तो गैस पीड़ित विधवाओं को मिलने वाली पेंशन बंद कर दी थी, लेकिन जैसे ही शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बने उन्होंने पेंशन देना शुरू कर दिया.
एक दूसरे पर आरोप लगा रहे राजनीतिक दल
हालांकि कांग्रेस पर लगे आरोपों पर प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि बीजेपी सरकार सालों से सत्ता में है, लेकिन बीजेपी ने डाउ केमिकल से नाता जोड़ लिया है. यही कारण है कि बीजेपी सरकार ने गैस पीड़ितों के लिए सिर्फ बातें की, लेकिन वादे नहीं निभाए. कांग्रेस ने उनकी लड़ाई लड़ी, मुआवजा दिया और उनके इलाज के लिए अस्पताल भी खुलवाए.
भयावह था उस वक्त का मंजर
इस त्रासदी की घटना के बाद जिन बच्चों ने वहां जन्म लिया, उसमें से कई विकलांग पैदा हुए और अन्य बीमारियों के साथ इस दुनिया मे आए. आज भी प्रभावित इलाकों में कई बच्चे असाध्य बीमारियों और डिफार्मिटी के साथ जन्म ले रहे हैं.
भोपाल गैस त्रासदी के 37 साल: चंद घंटों में चली गई हजारों लोगों की जान, आज भी नहीं भरे जख्म
दूसरी तरफ इस घटना को लेकर 7 जून 2010 को स्थानीय कोर्ट ने फैसला भी सुनाया, लेकिन आरोपियों को सिर्फ दो-दो साल की सजा कोर्ट की तरफ से सुनाई गई थी. बाद में सभी आरोपी जमानत पर रिहा कर दिए गए. जबकि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (union carbide india limited) के तत्कालीन चीफ और इस त्रासदी के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन (bhopal gas tragedy main accused) की भी मौत 29 सिंतबर 2014 को हो गयी. हाल ही में जो रिपोर्ट प्रकाशित की गई. उसमें ये बताया गया कि यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे का असर आसपास की 42 कालोनियों पर पड़ा है और यहां के भूजल में घातक कैमिकल की पुष्टि की गई है.