भोपाल। असली राम भक्त कह सकते हैं आप इन्हें. कोई पेशे से इंजीनियर है कोई हाईकोर्ट में अधिकारी. कोई प्राइवेट नौकरी में है और कोई सरकारी. लेकिन बरस के दस दिन नौकरी से छुट्टी लेकर ये केवल उस चरित्र में होते हैं जो रामलीला में इन्हें सौंपा जाता है. दुर्गा झांकियों में रामलीला का मंचन भी जब बीते जमाने की बात हुई, तब ये जुनूनी हैं जो रामलीला के साथ राम का संदेश जन-जन तक पहुंचा रहे हैं. भोपाल के गोविंदपुरा में रामलीला के मंचन के 58 बरस पूरे हो रहे हैं. इस दौर में पीढ़ियां बदलती गईं लेकिन रामलीला का पर्दा जो उठा तो फिर गिरा नहीं.
58 बरस में पीढ़ियां बदल गईं, रामलीला नहीं रुकी: जब मोबाइल की एक क्लिक पर रामानंद सागर की रामायण के पूरे एपीसोड हैं. तब कौन हैं ये जुनूनी लोग जो महीनों की रिहर्सल के बाद अपना घर शहर छोड़कर रामायण के किरदार और कहानी रामलीला के जरिए लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं. भोपाल के गोविंदपुरा इलाके में 1966 में लकड़ी के पटलों पर शुरु हुई रामलीला अपने 58 बरस पूरे कर रही है. कमाल केवल इतना ही नहीं है. कमाल हैं ये लोग जिन्हें उम्मीद है कि रामलीला का दौर लौटेगा जरुर. कमाल इनका है कि साल की दस से पंद्रह छुट्टियां ये रामलीला के नाम करते हैं.
दूर-दूर से भोपाल आते हैं कलाकार: मेघनाथ का किरदार करने वाले मनोज शर्मा छत्तीसगढ के दुर्ग में रहते हैं. लेकिन नवरात्र के दस दिन पहले से इनका ठिकाना भोपाल हो जाता है, ये बिना नागा होता है. पहले रिहर्सल और फिर मंचन के लिए मनोज शर्मा भोपाल में ही रहते हैं. मनोज शर्मा बताते हैं "मैं जब पहली बार रामलीला में आया था तो दस बारह साल का लड़का था. शुरुआत वानर सेना से हुई, फिर उसके बाद कई सारे चरित्र निभाए, मंदोदरी भी बना यानि महिला पात्र भी निभाए. अब मेघनाथ का चरित्र निभा रहा हूं.''
ग्वालियर हाईकोर्ट से छुट्टी लेकर बने रावण: रामायण में रावण का किरदार निभा रहे रवि मालवीय ग्वालियर हाईकोर्ट में अधिकारी हैं. रावण जैसे महत्वपूर्ण किरदार को निभाने तैयारी भी ज्यादा लगती है. लिहाजा साल भर में जितनी छुट्टी मिलती हैं, सब रामलीला में ही इस्तेमाल करते हैं. रवि पुराने दिनों की याद करते हुए बताते हैं, ''यहां इसी रामलीला के सामने मेरे पिता मूंगफली का ठेला लगाते थे. तब हम अपने पिता के साथ आते थे और सोचा करते थे किसी दिन हम भी रामलीला में भाग लेंगे. अब मैं रावण का चरित्र कर रहा हूं, वैसे मैं नौकरी में हूं. जितनी छुट्टियां मिलती है सब रामलीला के लिए ही इस्तेमाल करता हूं.''
इंजीनियर के छात्र बनें हैं भगवान राम: भगवान राम का किरदार निभा रहे आशुतोष सिंह इंजीनियरिंग के छात्र हैं उनके बाकी के दोस्त भले इस समय गरबा डांडिया में गुम हों. लेकिन आशुतोष अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रामलीला में आ गए. उनके पिता दादा ने भी इसी रामलीला में छोटे बड़े किरदार निभाए हैं. आशुतोष बताते हैं ''मुझे लगता है ये जरुरी है, नहीं तो आप अपनी जड़ों कैसे जुड़ेंगे.'' इन्ही के साथ लक्ष्मण का किरदार निभा रहे आदित्य सिंह प्राइवेट नौकरी में है. ऑफिस से छूटते ही लक्ष्मण की कॉस्ट्यूम पहनकर तैयार हो जाते हैं. अपने रोल की एंट्री का इंतजार करते हैं. आदित्य कहते हैं ''कभी-कभी अफसोस होता है जब मंच के आगे खाली कुर्सियां देखते हैं. लोगों को रामलीला को बचाना चाहिए ये हमारी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा है.''
लकड़ी के पटलों से मंच तक की यात्रा: गोविंदपुरा की रामलीला समिति के प्रमुख सदस्यों में से एक सुभाष पगारे बताते हैं कि ''एक समय था जब लकड़ी के पटले लाकर हम स्टेज बनाते थे और उस पर रामलीला होती थी फिर ये पक्का स्टेज मिला.'' वो बीएचएल को खास तौर पर धन्यवाद देते हुए कहते हैं ''बीएचईएल की बड़ी भूमिका रही इसमें.'' पगारे कहते हैं ''हम जुनून के साथ राम लीला के मंचन में जुटे हैं. 57 साल पूरे हो चुके हमने रामलीला का पर्दा नहीं गिरने दिया. एक दिन रामलीला के दर्शक भी लौटेंगे.''