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भारत भवन के रूपांकर विभाग ने 1982 से सहेजा है मध्यप्रदेश का इतिहास, जानें क्या है खास

भारत भवन भोपाल का रूपांकर विभाग आठ कला दीर्घा में से एक है. इनमें अविभाजित मध्य प्रदेश अर्थात 2002 के पहले और भारत भवन के शुरुआती दिनों में सन 1982 में तब का आदिवासी कलेक्शन है. वही जनजातीय कलेक्शन जिसके कारण मध्यप्रदेश देश में प्रसिद्ध है.

Bharat Bhavan
भारत भवन
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Published : Oct 5, 2020, 3:22 PM IST

भोपाल। भारत भवन भोपाल का रूपांकर विभाग आठ कला दीर्घा में से एक है. इनमें अविभाजित मध्य प्रदेश अर्थात 2002 के पहले और भारत भवन के शुरुआती दिनों में सन 1982 से तब का आदिवासी कलेक्शन है. वह जनजातीय कलेक्शन जिसके कारण मध्यप्रदेश प्रसिद्ध है. इसमें जनजातियों की कला है. वह कला जो जंगलों में पहाड़ों में देखने को मिलती है. चाहे भील कलाकारों की कला हो, गोंड कलाकारों की कला हो, उन सब के काम हमें इस संग्रहालय में देखने को मिलते हैं. विशेषकर चित्र कला, शिल्प कला, मिट्टी के शिल्प लकड़ी और पत्थर के शिल्प भी यहां देखने को मिलते हैं.

भारत भवन
ईटीवी भारत ने भारत भवन के निदेशक प्रेम शंकर शुक्ला से बात की, उन्होंने बताया कि, इस कला वीथिका में अधिकतर ऐसे शिल्प हैं, जो रिचुअल हैं, गांव देहातों में शादी विवाह में जो रिचुअल्स होते हैं. उन सबको इस कला वीथिका में रखा गया है. जगदीश स्वामीनाथन द्वारा जो देश के प्रसिद्ध चित्रकार हैं, साथ ही भारत भवन के संस्थापक सदस्य रहे हैं और रूपांतर गैलरी के भी इस गैलरी को बनाने में उनका बड़ा योगदान है. बहुत ही सुविचारत पर कल्पनाशीलता से रूपांकर कला वीथिका को बनाया गया है और संयोजित किया गया है. इसमें कई लोक कलाकारों को ख्याति मिली है. जैसे जनगण श्याम उनकी कलाकृतियां जो पूरी दुनिया में चर्चित हैं.

ऐसे ही भील कलाकार हैं, भूरी बाई का काम भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. इस तरह के कलाकारों के काम इस गैलरी में हैं और यह सब शुरुआती समय के हैं. हम लोगों ने उस काम को सहेज कर रखा है, हमें खुशी है कि, जो भी कलाप्रेमी हैं. कला रसिक हैं कल को समझने जानने वाले कला से अनुराग करने वाले, यहां गैलरी में लगातार आते हैं और उन कामों को देखते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं. बता दें कि, हमारे देश में जनजाति और लोक कलाओं का पहला संग्रहालय भारत भवन में है.

भोपाल। भारत भवन भोपाल का रूपांकर विभाग आठ कला दीर्घा में से एक है. इनमें अविभाजित मध्य प्रदेश अर्थात 2002 के पहले और भारत भवन के शुरुआती दिनों में सन 1982 से तब का आदिवासी कलेक्शन है. वह जनजातीय कलेक्शन जिसके कारण मध्यप्रदेश प्रसिद्ध है. इसमें जनजातियों की कला है. वह कला जो जंगलों में पहाड़ों में देखने को मिलती है. चाहे भील कलाकारों की कला हो, गोंड कलाकारों की कला हो, उन सब के काम हमें इस संग्रहालय में देखने को मिलते हैं. विशेषकर चित्र कला, शिल्प कला, मिट्टी के शिल्प लकड़ी और पत्थर के शिल्प भी यहां देखने को मिलते हैं.

भारत भवन
ईटीवी भारत ने भारत भवन के निदेशक प्रेम शंकर शुक्ला से बात की, उन्होंने बताया कि, इस कला वीथिका में अधिकतर ऐसे शिल्प हैं, जो रिचुअल हैं, गांव देहातों में शादी विवाह में जो रिचुअल्स होते हैं. उन सबको इस कला वीथिका में रखा गया है. जगदीश स्वामीनाथन द्वारा जो देश के प्रसिद्ध चित्रकार हैं, साथ ही भारत भवन के संस्थापक सदस्य रहे हैं और रूपांतर गैलरी के भी इस गैलरी को बनाने में उनका बड़ा योगदान है. बहुत ही सुविचारत पर कल्पनाशीलता से रूपांकर कला वीथिका को बनाया गया है और संयोजित किया गया है. इसमें कई लोक कलाकारों को ख्याति मिली है. जैसे जनगण श्याम उनकी कलाकृतियां जो पूरी दुनिया में चर्चित हैं.

ऐसे ही भील कलाकार हैं, भूरी बाई का काम भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. इस तरह के कलाकारों के काम इस गैलरी में हैं और यह सब शुरुआती समय के हैं. हम लोगों ने उस काम को सहेज कर रखा है, हमें खुशी है कि, जो भी कलाप्रेमी हैं. कला रसिक हैं कल को समझने जानने वाले कला से अनुराग करने वाले, यहां गैलरी में लगातार आते हैं और उन कामों को देखते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं. बता दें कि, हमारे देश में जनजाति और लोक कलाओं का पहला संग्रहालय भारत भवन में है.

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