भोपाल। मध्य प्रदेश के करीब 13 जिलों में उत्पादित होने वाले बासमती चावल को GI टैग (Geographical Indication Tag) मिलने की संभावनाएं बढ़ती नजर आ रही हैं. APEDA (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority) ने मध्य प्रदेश के बासमती चावल को लेकर लगाई आपत्ति वापस ले ली है. APEDA ने आपत्ति लगाई थी कि मध्य प्रदेश में बासमती चावल उत्पादित ही नहीं होता है. आपत्ति वापस लेने के बाद प्रदेश की एक बाधा तो खत्म हो गई है, लेकिन अब भी प्रदेश सरकार को दो और बाधाएं पार करना है. ये मामला फिलहाल SC और भारत सरकार के सामने लंबित है. आपत्ति हटने के बाद कृषि मंत्री कमल पटेल ने बधाई दी है.
लंबे समय से चल रही है लड़ाई
मध्य प्रदेश में उत्पादित होने वाले बासमती चावल को जीआई टैग देने के लिए लंबे समय से लड़ाई चल रही है. इस मामले में APEDA ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जहां मध्य प्रदेश सरकार का पक्ष खारिज कर दिया गया था. APEDA के अलावा जीआई रजिस्ट्री में भी मध्य प्रदेश सरकार के पक्ष को खारिज कर दिया गया था. दोनों का तर्क था कि बासमती चावल के लिए जीआई टैग गंगा के मैदानी क्षेत्र वाले खास हिस्से को दिया जाता है. मध्य प्रदेश इस इलाके में नहीं आता है.
2016 में मध्य प्रदेश के खिलाफ दिया आदेश
मध्य प्रदेश को जीआई टैग देने के मामले में APEDA 12 साल से आपत्ति करता आ रहा था. प्रदेश ने इस मामले में भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्रार (जीआई टैग) के यहां अपील की थी, जिसने दिसंबर 2013 में भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्रार ( जीआई ) ने मप्र के पक्ष में निर्णय दिया था, लेकिन पंजाब ने बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) चेन्नई में आपत्ति दर्ज करा दी थी. इस पर बोर्ड ने फरवरी 2016 में मध्य प्रदेश के खिलाफ आदेश दिया था, इसके बाद मप्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
जब प्रदेश सरकार ने पेश किए ब्रिटिश गजेटियर
बासमती राइस पर मध्य प्रदेश ने जीआई टैग पाने के लिए कई जतन किए हैं. इतना ही नहीं 1908 और 1913 के ब्रिटिश गजेटियर भी एमपी ने पेश किए थे, जिसमें बताया था कि गंगा और यमुना के इलाकों के अलावा मध्य प्रदेश के कुछ जगहों में भी बासमती पैदा होती रही है. APEDA ने इसके खिलाफ IBP में अपील की थी और कहा था कि जम्मू एंड कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के अलावा कहीं भी बासमती चावल का उत्पादन नहीं होता.
MP सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका
मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार ने मई 2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. अपनी याचिका में मध्य प्रदेश सरकार न कहा था कि मध्य प्रदेश में पैदा होने वाले बासमती चावल की गुणवत्ता हरियाणा, पंजाब या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उत्पादित होने वाले चावल से बेहतर है. मध्य प्रदेश में लंबे समय से बासमती चावल का निर्यात होता रहा है, लेकिन आज तक कोई शिकायत नहीं आई है.
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MP के 4 लाख किसान करते हैं बासमती का उत्पादन
मध्य प्रदेश के 13 जिलों में बासमती धान की खेती की जाती है. लेकिन GI टैग नहीं होने के कारण मध्य प्रदेश के बासमती चावल के उत्पादक किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलता है. प्रदेश के करीब चार लाख किसान बासमती चावल के उत्पादन से जुड़े हुए हैं. प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाके में भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, श्योपुर के अलावा विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में भी बासमती धान की खेती की जाती है.
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कृषि मंत्री ने जताया APEDA का आभार
कृषि मंत्री कमल पटेल ने बताया कि मध्य प्रदेश के चेतन सिंह APEDA के डायरेक्टर हैं. APEDA की हाल ही में बैठक हुई थी. उन्होंने उस बैठक में मध्य प्रदेश का पक्ष रखा है. मैं उनको और उनकी पूरी टीम को बधाई देता हूं कि उन्होंने मध्य प्रदेश का हक दिलाने में सहयोग किया है. APEDA ने आपत्ति जताई थी कि मध्यप्रदेश में बासमती धान नहीं होती है. अब उन्होंने अपनी आपत्ति वापस ले ली है. इससे बासमती चावल को GI टैग मिलने का रास्ता खुल गया है.
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उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है. मैं दिल्ली जा रहा हूं. कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री से मिलूंगा. मध्य प्रदेश के बासमती चावल को GI टैग दिलाने का निवेदन करूंगा. जैसे ही बासमती को GI टैग मिलेगा, तो जो औने-पौने भाव पर पंजाब और दूसरे राज्यों के लोग मध्य प्रदेश का चावल खरीद कर तीन गुना दामों पर बेचते थे, वो दाम अब मध्य प्रदेश के किसानों को मिलेंगे. यह मध्य प्रदेश के किसानों के हित में बहुत बड़ा निर्णय हुआ है. यह स्वागत योग्य कदम है.
पंजाब CM अमरिंदर सिंह ने जताई थी आपत्ति
मध्य प्रदेश के बासमती चावल को GI टैग न देने की मांग करते हुए पंजाब CM अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था. पत्र में कहा गया था कि एमपी को बासमती चावल की GI टैगिंग मिलने से पाकिस्तान को फायदा होगा. पंजाब सीएम के इस पत्र का मध्य प्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि, 'मैं पंजाब की कांग्रेस सरकार द्वारा मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैगिंग देने के मामले में प्रधानमंत्री को लिखे पत्र की निंदा करता हूं और इसे राजनीति से प्रेरित मानता हूं'.
शिवराज सरकार का दावा
इस मामले शिवराज सरकार का दावा है कि मध्य प्रदेश के कई इलाकों में परंपरागत तरीके से बासमती धान की खेती होती है. इसी आधार पर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में भौगोलिक संकेतक के लिए चेन्नई स्थित GI रजिस्ट्री में प्रदेश का आवेदन कराया था और सालों पुराने प्रमाणित दस्तावेज भी जुटाकर दिए थे. लेकिन,APEDA (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेवलमेंट अथॉरिटी) के विरोध के कारण इसे मान्यता नहीं मिल सकी, जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और इसी को लेकर मध्यप्रदेश से लेकर पंजाब तक सियासी बलाव मचा हुआ है.
क्या होता है GI टैग?
जीआई का पूरा नाम जियोग्राफिकल इंडिकेशन है, ये एक क्षेत्र विशेष में वस्तु या उत्पाद के उत्पादन को कानूनी मान्यता गुणवत्ता और लक्षणों के आधार पर खास पहचान दिलाता है. बासमती राइस के मामले में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश तथा जम्मू एंड कश्मीर को बासमती का जीआई टैग मिल चुका है. वहीं कड़कनाथ मुर्गे को मध्य प्रदेश का जीआई टैग मिल चुका. इसके लिए पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ से काफी लंबी लड़ाई लड़ी थी.