भोपाल। यूं तो प्रदेश में विधानसभा चुनाव (MP Election 2023) होने के लिए अभी दो साल बाकी हैं, लेकिन भाजपा ने धरातल पर तैयारी करना शुरू कर दी हैं. भाजपा इस बार 2018 में हुए विधानसभा चुनाव की तरह मात नहीं खाना चाहती है. प्रदेश की 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर काबिज आदिवासी समुदाय (MP Tribal Group) को लुभाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Union Minister Amit Shah) शनिवार को जबलपुर दौरे पर हैं. उनके इस दौरे को लेकर कई मायने निकाले जा रहे हैं. राज्य में 43 समूहों वाले आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है. यह आबादी चुनावी गणित को बिगाड़ने और बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाती है.
आदिवासियों को जोड़ने की कोशिश करेंगे शाह
पिछले विधानसभा चुनाव में हुए नुकसान के बाद भाजपा अब वोट बैंक की राजनीति (Vote Bank Politics) पर काम शुरू कर रही है. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव शिव प्रकाश ने हाल ही में हुई प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के दौरान नेताओं को दलित के साथ ही आदिवासी सीटों (Tribal Seats in legislative Assembaly) पर फोकस करने के लिए कहा था. कयास लगाए जा रहे हैं कि अमित शाह अपने इस दौरे से आदिवासियों को पार्टी से जोड़ने के अभियान में जान फूंकने की कोशिश करेंगे.
क्यों महत्वपूर्ण हैं आदिवासी वोटर ?
प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 40 से ज्यादा सीटें आदिवासियों (Adivasi Vote Bank) के लिए रिजर्व हैं. इसके बाद सामान्य वर्ग की करीब 30 सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी वोट किसी को भी जिता सकता है. आदिवासी वोट बैंक परंपरागत रूप से कांग्रेस का माना जाता रहा है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से बीजेपी इसमें सेंध लगाने की कोशिश कर रही है.
विधानसभा चुनाव 2023 पर निशाना
चुनाव (Vidhan Sabha Assembly Election 2023 ) की आहट के बीच पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस, आदिवासी वोटरों (Adivasi Vote Bank) को रिझाने के लिए हाथ पैर मारने लगी है. अगस्त में डेढ़ दिन चले विधानसभा सत्र के दौरान भी विश्व आदिवासी दिवस के मुद्दे को कांग्रेस ने जमकर विधानसभा में उठाया. 6 सितंबर से बड़वानी में कांग्रेस ने आदिवासी अधिकार यात्रा (Adivasi Adhikar Yayta) की भी शुरुआत की. इसके बहाने कांग्रेस बड़वानी और उससे लगे आधा दर्जन से ज्यादा जिलों को अपनी ओर करने की कोशिश में लगी हुई है.
बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे शाह
बता दें कि महाकौशल इलाके में आदिवासियों की अच्छी आबादी है. मुख्य तौर पर डिंडौरी, अनूपपुर और छिंदवाड़ा में. सूत्रों के मुताबिक, गृहमंत्री अमित शाह इन्हीं इलाकों पर अधिक फोकस करेंगे और भाजपा से नाराज आदिवासियों को लुभाने का प्रयत्न करेंगे. गृहमंत्री आज जबलपुर में गोंडवाना साम्राज्य (Gondwana Samrajya) के अमर शहीद राजा शंकर शाह (Martyr king shankar Shah) और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह (Martyr Raghunath Shah) के बलिदान दिवस पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में भी शामिल होंगे. यहां से शाह जनजातीय अभियान (JanJatiya Abhiyan) की शुरुआत करेंगे.
कौन हैं शंकर शाह और रघुनाथ शाह
अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले शंकर शाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा थे. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन (Shankar Shah Movement Against Britishers) करने के चलते 18 सितंबर 1858 को शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह को अंग्रेजों ने तोप से बांधकर मार दिया था. ऐसे में अमित शाह का दौरा शहीद शंकर शाह और शहीद रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस के माध्यम से आदिवासियों को रिझाने से जोड़कर देखा जा रहा है. भाजपा मानकर चल रही है कि 2023 में सत्ता में फिर वापसी आदिवासियों को खुश किए बिना बहुत मुश्किल है.
शहीद शंकर शाह-रघुनाथ शाह की कहानी! जिन्हें डिगा भी नहीं पाई 'अंग्रेजी तोप'
शिवराज भी कर सकते हैं कई ऐलान
कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Cm Shivraj Singh Chouhan) गोंड राजा रघुनाथ शाह-शंकर शाह के शहीदी दिवस पर जबलपुर में होने वाले कार्यक्रम में आदिवासियों के लिए कई ऐलान कर सकते हैं. आदिवासी गौरव दिवस पर 66 दिन के कार्यक्रम आयोजित करने का रोडमैप तैयार किया जा रहा है. इसकी शुरुआत आज जबलपुर से की जाएगी.
आदिवासी वोटों के लिए भाजपा कर रही मेहनत
84 विधानसभा क्षेत्र आदिवासी इलाके में आते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 84 में से 34 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी. 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ. जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं, वहां सिर्फ भाजपा को 16 सीटों पर ही जीत मिली है. यह 2013 की तुलना में 18 सीट कम है.
एक नजर में देखें आदिवासी बहुल्य सीटों के चुनावी समीकरण
- 2003 विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से भाजपा ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था. चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी.
- 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई. इस चुनाव में भाजपा ने 29 सीटें जीती, जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की.
- 2013 के चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आईं थीं.
- 2018 के इलेक्शन में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 16 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 30 सीटें जीत लीं. एक सीट निर्दलीय के खाते में गई.
आदिवासियों के खिलाफ देश में सबसे ज्यादा अपराध
देश भर में आदिवासियों के उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते हैं, लेकिन यह जानकर हैरानी होगी कि इस लिस्ट में मध्य प्रदेश अव्वल है. हाल ही में पुलिस थाने में आदिवासी युवक की मौत हो गई. इसे लेकर खूब राजनीति हुई. एमपी में आदिवासी का मसीहा कौन है, यह खुद आदिवासी भी नहीं जानते हैं. इससे पहले भी काफी मामले दर्ज हुए हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 2020 में इस वर्ग के उत्पीड़न के 2401 प्रकरण दर्ज हुए हैं, जो वर्ष 2019 में दर्ज 1922 प्रकरण की तुलना में 20% ज्यादा हैं. इस वर्ग के 59 लोगों की हत्या हुई है और महिलाओं पर हमले के 297 प्रकरण दर्ज हुए हैं. बच्चों के मामले में भी प्रदेश सुरक्षित नहीं है. यहां रोज लगभग 46 बच्चों का अपहरण, दुष्कर्म और हत्या हुई है.
मध्य प्रदेश की जनजातियां
2011 जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या प्रदेश की कुल आबादी की 20 फीसदी है. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में आदिवासी समुदाय के डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग निवास करते हैं. मध्य प्रदेश में 43 प्रकार के आदिवासी समूह निवास करते हैं. मध्य प्रदेश में भील भिलाला आदिवासी समूह की जनसंख्या 60 लाख से ज्यादा है, वहीं गोंड समुदाय के आदिवासियों की जनसंख्या भी 60 लाख से ज्यादा है. भील-भिलाला, गोंड के अलावा मध्य प्रदेश में कोलस कोरकू सहरिया आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं