भोपाल। मध्यप्रदेश में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में शिकस्त खाने के बाद सत्ता से बाहर हुई बीजेपी ज्योतिरादित्य सिंधिया के बलबूते सरकार बना पाई. सिंधिया का कद बीजेपी में लगातार बढ़ा लेकिन नगरीय निकाय चुनाव में बाजी पलटती दिख रही है. नगरीय निकाय चुनाव से पहले तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी से जो मांगा, सो मिला. मंत्रिमंडल में उनके खास समर्थकों को मनचाही जगह मिली. समर्थकों को निगम- मंडलों में एडजस्ट कराया, लेकिन अब नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी खुद का वर्चस्व दिखाना चाहती है और यही वजह है कि 16 नगर निगमों में सिंधिया के करीबी में से किसी को भी महापौर प्रत्याशी नहीं बनाया गया. हालांकि ग्वालियर -चंबल में सिंधिया अपना दबदबा कायम रखना चाहते थे, इसी वजह से उन्होंने पहले माया सिंह का नाम सामने रखा. फिर पार्टी का क्राइटेरिया आड़े आया तो उन्होंने समीक्षा गुप्ता का नाम रख दिया, लेकिन पार्टी ने उसे भी नकार दिया.
ग्वालियर में भी तोमर की चली : ग्वालियर महापौर उम्मीदवार के लिए तोमर के करीबी को टिकट दिया गया. सुमन शर्मा के नाम पर ज्योतिरादित्य सिंधिया सहमत नहीं थे, लेकिन पार्टी के बाकी दिग्गज एक साथ तोमर के समर्थन में खड़े हो गए और बाजी नरेंद्र सिंह तोमर ले गए. सिंधिया को मनाने के लिए केंद्रीय संगठन को आगे आना पड़ा और उनकी भी सहमति लेकर सुमन शर्मा को ग्वालियर महापौर के लिए प्रत्याशी बनाया गया. ग्वालियर महापौर प्रत्याशी का एलान चार दिन की मशक्कत के बाद हो पाया. बीजेपी का तर्क रहा कि जिस तरह से भोपाल इंदौर और सागर में स्थानीय विधायकों की सहमति से नाम तय किया, उसी रणनीति के तहत ग्वालियर में भी काम किया गया.
पवैया ने दिया तोमर का साथ : वहीं सिंधिया के धुर विरोधी रहे जय भान सिंह पवैया ने भी तोमर का समर्थन किया. वहीं विवेक शेजवलकर भी नरेंद्र सिंह तोमर के साथ दिखे. हालांकि सिंधिया के साथ उनके स्थानीय नेता और बेहद करीबी प्रद्युम्न सिंह तोमर रहे. इन सब समीकरणों पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा कहते हैं कि हमारे यहां पर संगठन सर्वोपरि होता है. कोई एक व्यक्ति फैसला नहीं लेता. सामूहिक फैसले से सहमति बनती है. बीजेपी कहती है कि गुटबाजी कांग्रेस में चलती है हमारे या नहीं.
कांग्रेस ने कसा तंज : वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता केके मिश्रा ने तंज करते हुए हंसते हुए कहा कि टाइगर को उसके कोर एरिया में ही घेर लिया दहाड़ खत्म हुई. भोपाल से दिल्ली तक मिमिया रहे हैं. मध्यप्रदेश के 16 इलाकों में टाइगर का आतंक पूरी तरह से समाप्त हो गया है. बता दें कि मुरैना, इंदौर, सागर में सिंधिया और उनके समर्थकों के समीकरण थे. मुरैना में मीना जाटव को तोमर की सिफारिश पर टिकट मिला. सागर में सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह राजपूत ने मंत्री भूपेंद्र सिंह के नाम को समर्थन देकर समीकरण बदल दिए तो इंदौर में सिंधिया के खास तुलसी सिलावट बाकी बीजेपी के बड़े दिग्गजों के सामने चुप ही रहे.
रतलाम का टिकट आखिर में फाइनल :
रतलाम नगर निगम को लेकर भी प्रत्याशी पर पेंच फंसा रहा. दरअसल, बीजेपी से पैनल में अशोक पोरवाल प्रवीण सोनी प्रह्लाद पटेल का नाम भेजा गया लेकिन विधायक चेतन कश्यप प्रहलाद पटेल का नाम सामने रखकर उनकी राह आसान कर दी हालांकि यहां पर स्थानीय स्तर पर कोर कमेटी और संभागीय समिति की बैठक नहीं होने से पहले ही टिकट कर दिया गया और इसी वजह से प्रत्याशी के नाम का ऐलान होल्ड कर दिया गया. वहीं सांसद सुधीर गुप्ता का भी समर्थन प्रह्लाद को मिल गया, जिससे रतलाम के लिए प्रह्लाद पटेल महापौर प्रत्याशी चुने गए.
स्थानीय विधायकों का पलड़ा भारी रहा : महापौर प्रत्याशियों के जहां तक टिकट का सवाल है तो सबसे ज्यादा स्थानीय विधायकों का पलड़ा भारी रहा. महापौर प्रत्याशी का टिकट फाइनल करने में उनकी ही चली, इंदौर में क्षत्रपों के बीच संघ ने अपने कोटे से नाम दिया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डॉ. निशांत खरे का नाम आगे किया लेकिन विधायकों का विरोध रहा. डॉक्टर पुष्यमित्र भार्गव गुवाहाटी में पूर्णकालिक प्रचारक रहे 16 नगर निगम महापौर प्रत्याशियों में संघ की तरफ से सबसे ज्यादा नाम आए हैं. दूसरे नंबर पर स्थानीय विधायक और सांसदों की चली. (All veteran leaders united blow to Scindia) (Scindia not get a single supporter ticket)