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देश में अब तक कुल दो हजार से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों का हो चुका है पंजीकरण, जानें क्या है इसके पीछे का खेल

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में कई पार्टियां राजनीतिक दल का पंजीयन कराकर समाज के सेवा करे के बजाए अपना उल्लू सीधा करने में लगी हैं. पंजीयन कराने के बाद इन राजनीतिक दलों को टैक्स में छूट मिल जाती है, जिसके चलते यह दल काले धन को सफेद करते हैं

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Published : Mar 25, 2019, 11:20 PM IST

भोपाल। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में कई पार्टियां राजनीतिक दल का पंजीयन कराकर समाज के सेवा करे के बजाए अपना उल्लू सीधा करने में लगी हैं. पंजीयन कराने के बाद इन राजनीतिक दलों को टैक्स में छूट मिल जाती है, जिसके चलते यह दल काले धन को सफेद करते हैं. पंजीयन की यह प्रवृत्ति पिछले दस सालों में काफी बढ़ गई है.


कई राजनीतिक पार्टियां ऐसी हैं जिसे राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेने के बाद भी चुनाव आयोग द्वारा उनका पंजीयन कराया गया है. ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया है कि कई ऐसे दल हैं जो राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत तो लेकिन चुनाव नहीं लड़ते. वह कर छूट का फायदा उठाकर काले धन को सफेद करने का काम करते हैं. क्योंकि पंजीकृत राजनीतिक दलों को कई तरह की छूट मिलती है. वहीं चुनाव आयोग इस मामले में लाचार नजर आता है, क्योंकि चुनाव आयोग को इन दलों के पंजीकरण का काम तो करने का अधिकार तो है. लेकिन इनके पंजीयन को निरस्त करने या रद्द करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं है.

देश में 2 हजार दो सौ राजनातिक दल हैं पंजीकृत
जहां तक देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की बात करें, तो करीब 2 हजार 2 सौ राजनीतिक दल पंजीकृत हैं. देखा जाए तो 2010 के मुकाबले यह संख्या पिछले 9 साल में दोगुनी हो गई है. भारत निर्वाचन आयोग की जानकारी के अनुसार 2014 के आम चुनाव में सिर्फ 464 राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था. जो मौजूदा स्थिति में पंजीकृत राजनीतिक दलों का 20 फीसदी है. दरअसल इस व्यवस्था के अनुसार अगर कोई राजनीतिक दल 20 हजार तक चंदा इकट्ठा करता है, तो उसे कोई टैक्स नहीं लगता है.ऐसे में राजनीतिक दल व्यवस्थाओं का फायदा उठाकर काले धन को सफेद करने का काम करते हैं.

राजनीतिक पार्टियां नहीं देती हैं ब्यौरा
इन गतिविधियों के मामले में मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव कहा कहना है कि फिलहाल भारत निर्वाचन आयोग 2 हजार दो सौ राजनीतिक दल पंजीकृत हैं. इन सभी राजनीतिक दलों का जब पंजीकरण होता है तो उनके साथ निर्वाचन आयोग शर्त रखता है कि वह क्या गतिविधियां करते हैं. उनका क्या बजट है, कितना पैसा वह लोगों से इकट्ठा करते हैं और कितना खर्च कर रहे हैं. यह ब्योरा उनको भारत निर्वाचन आयोग को देना होता है. लेकिन देखने में आया है कि ज्यादातर पार्टियां इसका ब्यौरा नहीं देती हैं. इसका मतलब यह है कि चुनाव आयोग को पता नहीं चलता है कि वह क्या कर रहे हैं.

भोपाल। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में कई पार्टियां राजनीतिक दल का पंजीयन कराकर समाज के सेवा करे के बजाए अपना उल्लू सीधा करने में लगी हैं. पंजीयन कराने के बाद इन राजनीतिक दलों को टैक्स में छूट मिल जाती है, जिसके चलते यह दल काले धन को सफेद करते हैं. पंजीयन की यह प्रवृत्ति पिछले दस सालों में काफी बढ़ गई है.


कई राजनीतिक पार्टियां ऐसी हैं जिसे राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेने के बाद भी चुनाव आयोग द्वारा उनका पंजीयन कराया गया है. ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया है कि कई ऐसे दल हैं जो राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत तो लेकिन चुनाव नहीं लड़ते. वह कर छूट का फायदा उठाकर काले धन को सफेद करने का काम करते हैं. क्योंकि पंजीकृत राजनीतिक दलों को कई तरह की छूट मिलती है. वहीं चुनाव आयोग इस मामले में लाचार नजर आता है, क्योंकि चुनाव आयोग को इन दलों के पंजीकरण का काम तो करने का अधिकार तो है. लेकिन इनके पंजीयन को निरस्त करने या रद्द करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं है.

देश में 2 हजार दो सौ राजनातिक दल हैं पंजीकृत
जहां तक देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की बात करें, तो करीब 2 हजार 2 सौ राजनीतिक दल पंजीकृत हैं. देखा जाए तो 2010 के मुकाबले यह संख्या पिछले 9 साल में दोगुनी हो गई है. भारत निर्वाचन आयोग की जानकारी के अनुसार 2014 के आम चुनाव में सिर्फ 464 राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था. जो मौजूदा स्थिति में पंजीकृत राजनीतिक दलों का 20 फीसदी है. दरअसल इस व्यवस्था के अनुसार अगर कोई राजनीतिक दल 20 हजार तक चंदा इकट्ठा करता है, तो उसे कोई टैक्स नहीं लगता है.ऐसे में राजनीतिक दल व्यवस्थाओं का फायदा उठाकर काले धन को सफेद करने का काम करते हैं.

राजनीतिक पार्टियां नहीं देती हैं ब्यौरा
इन गतिविधियों के मामले में मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव कहा कहना है कि फिलहाल भारत निर्वाचन आयोग 2 हजार दो सौ राजनीतिक दल पंजीकृत हैं. इन सभी राजनीतिक दलों का जब पंजीकरण होता है तो उनके साथ निर्वाचन आयोग शर्त रखता है कि वह क्या गतिविधियां करते हैं. उनका क्या बजट है, कितना पैसा वह लोगों से इकट्ठा करते हैं और कितना खर्च कर रहे हैं. यह ब्योरा उनको भारत निर्वाचन आयोग को देना होता है. लेकिन देखने में आया है कि ज्यादातर पार्टियां इसका ब्यौरा नहीं देती हैं. इसका मतलब यह है कि चुनाव आयोग को पता नहीं चलता है कि वह क्या कर रहे हैं.

Intro:भोपाल। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीतिक दल का पंजीयन कराकर कर में मिलने वाली छूट का फायदा लेकर अवांछित आर्थिक गतिविधियां संचालित करने की प्रवृत्ति पिछले 10 सालों में काफी ज्यादा बढ़ गई है। खासकर राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को टैक्स छूट के दायरे के अंदर उपयोग कर काले धन को सफेद करने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।हालत यह है की चुनाव प्रक्रिया में राजनीतिक दल के रूप में रजिस्टर्ड पार्टियां सिर्फ 20 फीसदी हिस्सा लेती हैं। सवाल यह खड़ा होता है कि अगर इन दलों को राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेना है, तो चुनाव आयोग में पंजीयन क्यों कराया गया है। ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया है कि ज्यादातर ऐसे दल जो राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत हैं और चुनाव नहीं लड़ते हैं। वह कर छूट का फायदा उठाकर काले धन को सफेद करने का काम करते हैं। क्योंकि पंजीकृत राजनीतिक दलों को कई तरह की छूट मिलती है। वहीं चुनाव आयोग इस मामले में लाचार नजर आता है।क्योंकि चुनाव आयोग को इन दलों के पंजीकरण का काम तो करना है, लेकिन इनके पंजीयन को निरस्त करने या रद्द करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं है।


Body:जहां तक भारत देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की बात करें, तो करीब 2200 राजनैतिक दल पंजीकृत हैं। अगर देखा जाए तो 2010 के मुकाबले यह संख्या पिछले 9 साल में दोगुनी हो गई है। भारत निर्वाचन आयोग की जानकारी के अनुसार 2014 के आम चुनाव में सिर्फ 464 राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था, जो मौजूदा स्थिति में पंजीकृत राजनीतिक दलों का 20 फीसदी है। सवाल खड़ा यह होता है कि राजनीतिक दल अगर चुनाव नहीं लड़ते, तो क्या गतिविधियां करते हैं। वहीं दूसरी तरफ इन दलों का पंजीयन करने वाले चुनाव आयोग के पास इन दलों की अवांछित गतिविधियों को लेकर कार्रवाई का अधिकार क्यों नहीं है। क्योंकि चुनाव आयोग इन का पंजीकरण तो करता है, लेकिन इनका पंजीयन रद्द या निरस्त करने का अधिकार उसके पास नही है।इस व्यवस्था के चलते राजनीतिक दल राजनीतिक गतिविधियों से ज्यादा पैसों के लेन-देन में सक्रिय रहते हैं और राजनीतिक दलों को मिलने वाली कर छूट का फायदा उठाते हैं। दरअसल इस व्यवस्था के अनुसार अगर कोई राजनीतिक दल 20 हजार तक चंदा इकट्ठा करता है, तो उसे कोई टैक्स नहीं लगता है। ऐसे में राजनीतिक दल व्यवस्थाओं का फायदा उठाकर काले धन को सफेद करने का काम करते हैं।


Conclusion:इन गतिविधियों के मामले में मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव कहते हैं कि यह बहुत अच्छा सवाल है। फिलहाल भारत निर्वाचन आयोग 2200 राजनीतिक दल पंजीकृत हैं। इन सभी राजनीतिक दलों का जब पंजीकरण होता है तो उनके साथ निर्वाचन आयोग शर्त रखता है कि वह क्या गतिविधियां करते हैं, उनका क्या बजट है, कितना पैसा वह लोगों से इकट्ठा करते हैं और कितना खर्च कर रहे हैं, यह ब्योरा उनको भारत निर्वाचन आयोग को देना होता है। लेकिन देखने में आया है कि ज्यादातर पार्टियां इसका ब्यौरा नहीं देती हैं। इसका मतलब यह है कि चुनाव आयोग को पता नहीं चलता है कि वह क्या कर रहे हैं। इस बारे में चुनाव आयोग कोई फैसला लेता है या कार्यवाही करता है, तो हम आपको जानकारी जरूर देंगे।
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