भोपाल। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में कई पार्टियां राजनीतिक दल का पंजीयन कराकर समाज के सेवा करे के बजाए अपना उल्लू सीधा करने में लगी हैं. पंजीयन कराने के बाद इन राजनीतिक दलों को टैक्स में छूट मिल जाती है, जिसके चलते यह दल काले धन को सफेद करते हैं. पंजीयन की यह प्रवृत्ति पिछले दस सालों में काफी बढ़ गई है.
कई राजनीतिक पार्टियां ऐसी हैं जिसे राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेने के बाद भी चुनाव आयोग द्वारा उनका पंजीयन कराया गया है. ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया है कि कई ऐसे दल हैं जो राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत तो लेकिन चुनाव नहीं लड़ते. वह कर छूट का फायदा उठाकर काले धन को सफेद करने का काम करते हैं. क्योंकि पंजीकृत राजनीतिक दलों को कई तरह की छूट मिलती है. वहीं चुनाव आयोग इस मामले में लाचार नजर आता है, क्योंकि चुनाव आयोग को इन दलों के पंजीकरण का काम तो करने का अधिकार तो है. लेकिन इनके पंजीयन को निरस्त करने या रद्द करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं है.
देश में 2 हजार दो सौ राजनातिक दल हैं पंजीकृत
जहां तक देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की बात करें, तो करीब 2 हजार 2 सौ राजनीतिक दल पंजीकृत हैं. देखा जाए तो 2010 के मुकाबले यह संख्या पिछले 9 साल में दोगुनी हो गई है. भारत निर्वाचन आयोग की जानकारी के अनुसार 2014 के आम चुनाव में सिर्फ 464 राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था. जो मौजूदा स्थिति में पंजीकृत राजनीतिक दलों का 20 फीसदी है. दरअसल इस व्यवस्था के अनुसार अगर कोई राजनीतिक दल 20 हजार तक चंदा इकट्ठा करता है, तो उसे कोई टैक्स नहीं लगता है.ऐसे में राजनीतिक दल व्यवस्थाओं का फायदा उठाकर काले धन को सफेद करने का काम करते हैं.
राजनीतिक पार्टियां नहीं देती हैं ब्यौरा
इन गतिविधियों के मामले में मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव कहा कहना है कि फिलहाल भारत निर्वाचन आयोग 2 हजार दो सौ राजनीतिक दल पंजीकृत हैं. इन सभी राजनीतिक दलों का जब पंजीकरण होता है तो उनके साथ निर्वाचन आयोग शर्त रखता है कि वह क्या गतिविधियां करते हैं. उनका क्या बजट है, कितना पैसा वह लोगों से इकट्ठा करते हैं और कितना खर्च कर रहे हैं. यह ब्योरा उनको भारत निर्वाचन आयोग को देना होता है. लेकिन देखने में आया है कि ज्यादातर पार्टियां इसका ब्यौरा नहीं देती हैं. इसका मतलब यह है कि चुनाव आयोग को पता नहीं चलता है कि वह क्या कर रहे हैं.