भोपाल। केंद्र सरकार की तर्ज पर मध्य प्रदेश में करीबन डेढ़ हजार अनुपयोगी कानून को हटाया जाएगा. राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य विधि आयोग ने साल 1861 से लेकर 2018 तक बनाए गए कानूनों की समीक्षा की. इनमें से अपनी उपयोगिता खो चुके कानूनों को हटाने की सिफारिश की है. आयोग ने इस दौरान साढ़े 3 हजार कानूनों की समीक्षा की. बताया जा रहा है कि, आगामी विधानसभा सत्र में राज्य सरकार आयोग की अनुशंसा के आधार पर इन अनुपयोगी कानूनों को हटाने के लिए निरसन अधिनियम लेकर आएगी.
2 साल में 3500 कानूनों की हुई समीक्षा
राज्य सरकार ने अनुपयोगी हो चुके कानूनों की समीक्षा के लिए 1 जून 2018 को राज्य विधि आयोग की स्थापना की थी. आयोग के अध्यक्ष हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस वेद प्रकाश को अध्यक्ष बनाया गया. पिछले 2 साल के दौरान आयोग ने साढ़े तीन हजार कानूनों की समीक्षा की. आयोग के अध्यक्ष के मुताबिक ऐसे कानूनों की तीन हिस्सों में समीक्षा की गई. पहला 1861 से लेकर 30 अक्टूबर 1956 तक बनाए गए कानूनों को लिया गया, क्योंकि 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश राज्य का गठन किया गया था. इसके बाद 1956 से 31 दिसंबर 1987 और फिर 1988 से 2018 तक के कानूनों की समीक्षा की गई.
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1500 कानून पाए गए अनुपयोगी
विधि आयोग ने तमाम कानूनों की समीक्षा कर अपनी अंतिम रिपोर्ट भी राज्य शासन को सौंप दी है. आयोग ने राज्य शासन से करीब 1500 कानून हटाने की अनुशंसा की है. आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वेद प्रकाश कहते हैं कि, जिन कानूनों को हटाने की अनुशंसा की गई है. वह अपनी उपयोगिता खो चुके हैं, क्योंकि जिन परिस्थितियों में इन कानूनों को बनाया गया था, या तो वो परिस्थितियां अब नहीं बची या फिर केंद्र द्वारा बड़े स्तर पर कानून बना दिया गया.
इन कानूनों को हटाने की सिफारिश
- मध्य प्रदेश खद्दर बिक्री अधिनियम 1953. इस कानून के तहत पहले खद्दर की दुकान पर सिर्फ खद्दर बेचने की ही अनुमति थी. खद्दर के साथ दूसरे सामानों या दूसरे कपड़ों को बेचने पर रोक थी.
- 1989 में लाए गए चेचक टीका अधिनियम को भी हटाने के लिए अनुशंसा की गई है.
- 1979 में बनाए गए विधिक सहायता अधिनियम को भी हटाने की अनुशंसा है, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा विधिक सेवा प्राधिकरण बना दिया गया है. जिसके बाद पुराने कानून की उपयोगिता समाप्त हो गई.
- मध्य प्रदेश एग्रीकल्चरिस्ट लोन एक्ट 1984, नॉर्दन इंडिया तकावी एक्ट 1879 के नियमों में संशोधन कर लाया गया था. इसमें लोन राशि की वसूली का अधिकार सरकार को दिया गया था. वर्तमान में राष्ट्रीय और सहकारी बैंक लोन देते हैं और वही वसूल करते हैं, इसलिए कानून प्रभावी नहीं बचा.
- मध्यप्रदेश कैटल डिसीसेस एक्ट- 1934, मध्य प्रदेश हॉर्स डिसीजन एक्ट 1960, मप्र ग्रामीण ऋण विमुक्ति अधिनियम 1982 को हटाने की अनुशंसा की गई.
- गैस त्रासदी के डर से भोपाल से भागने वालों की संपत्ति बचाने के लिए 1984 में लाए गए. भोपाल गैस त्रासदी (जंगिन संपत्ति के व्यक्तियों को शून्य घोषित करना) अधिनियम 1985 को हटाने की अनुशंसा की गई.