ETV Bharat / state

शिवराज के 14 मंत्रियों के पास नहीं है विधानसभा की सदस्यता, जानिए ये कितना सही और कितना गलत

author img

By

Published : Jul 2, 2020, 11:02 PM IST

मध्यप्रदेश में शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया है. कुल 28 विधायकों ने मंत्रीपद की शपथ ली, 20 विधायकों को मंत्री बनाया गया है, जबकि 8 विधायकों को राज्यमंत्री बनाया गया है. मध्यप्रदेश में 14 ऐसे लोगों को मंत्री बनाया गया है, जो मौजूदा स्थिति में विधानसभा के सदस्य नहीं हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इसे संविधान के साथ खिलवाड़ बताया तो वहीं संविधान के अनुसार ये गलत नहीं है. पढ़िए पूरी खबर...

Shivraj cabinet expansion
शिवराज मंत्रिमंडल

भोपाल। मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के 100 दिन बाद आखिरकार शिवराज की नई टीम यानि मंत्रिमंडल का विस्तार आज हो गया है. मंत्रिमंडल विस्तार के लिए 100 दिन तक चले सियासी ड्रामे को अच्छे-अच्छे राजनीतिक पंडित भी नहीं आंक पाए. हालांकि आज हुए शिवराज सरकार के कैबिनेट विस्तार के दौरान 14 विधायकों ने बिना विधानसभा की सदस्यता के चलते मंत्रिपद की शपथ ली. मध्यप्रदेश के इतिहास में ये पहली घटना है, जब एक साथ 14 ऐसे लोगों को मंत्री बनाया गया है, जो मौजूदा स्थिति में विधानसभा के सदस्य नहीं हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इसे संविधान के साथ खिलवाड़ बताया तो वहीं संविधान के अनुसार ये गलत नहीं है.

14 मंत्रियों के पास नहीं है विधानसभा की सदस्यता

संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति 6 महीने तक बिना विधायक या सांसद रहे मंत्री बन सकता है, लेकिन 6 महीने के अंदर उसे चुनाव लड़ना होता है और चुनाव हारने की स्थिति में फिर वह मंत्री नहीं रह सकता. संविधान के अनुसार इन 14 लोगों का मंत्री बनना तो गलत नहीं है, लेकिन जब राजनीति में नैतिकता की बात आती है तो नैतिकता के तकाजे के नाते सवाल खड़े होते हैं. वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी कहते हैं कि तकनीकी रूप से देखा जाए, तो इसमें कुछ गलत नहीं है. यह इसलिए गलत नहीं है, क्योंकि प्रदेश में जब दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार आई थी, तो मुख्यमंत्री कमलनाथ बने थे, जो खुद विधानसभा के सदस्य नहीं थे.

क्या कहते हैं दीपक तिवारी

दीपक तिवारी ने कहा कि कमलनाथ को तब 6 महीने के अंदर चुनकर आना था और वह चुनकर आए, लेकिन सामान्य रूप से माना जाता है कि राजनीति तकनीकी मापदंड की बात नहीं है. महात्मा गांधी कहते थे कि बिना सिद्धांत और नैतिकता के राजनीति नहीं होती है. राजनीति में नैतिकता का तकाजा एक बड़ा मापदंड होता है, तो मध्य प्रदेश में भाजपा के पास 107 चुने हुए विधायक हैं, उनमें से मंत्री बनाए जा सकते थे, लेकिन सभी जानते हैं कि बहुत सारी मजबूरियां इस मंत्रिमंडल को बनाने में रही हैं, शिवराज सिंह ने खुद कहा कि वह विष पी रहे हैं तो इन परिस्थितियों में राजनीतिक मजबूरियों के चलते इतने सारे लोगों को मंत्री बनाना पड़ा, जो विधानसभा के सदस्य नहीं हैं. वह लोग कम से कम 6 महीने तो रह सकते हैं.

कानून के तहत सही

वहीं इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता शांतनु सक्सेना कहते हैं कि जहां तक कानून का सवाल है, तो इनको मंत्री बनाया जा सकता था और उनको बनाया गया है. लेकिन जब नैतिकता की बात करते हैं, तो यह है लोकतंत्र के उसूलों के अनुरूप नहीं हैं. खास तौर पर इसलिए क्योंकि यह वह 14 लोग हैं, जो कि अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं. तो इससे साफ होता है कि यह खुद जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करना चाहते हैं. यदि कोई विधायक इस्तीफा दे चुका है, तो यह माना जाएगा कि यह जनता का प्रतिनिधि नहीं रहना चाहता है तो उसको मंत्री पद देना एक तरीके से यह कहना है कि हमें जनता के प्रतिनिधियों की आवश्यकता नहीं है, जो व्यक्ति जनता द्वारा चुना गया था, एक राजनीतिक दल के टिकट पर चुनाव जीत कर आया था, वह जनता का प्रतिनिधित्व कर रहा था, जिसके पास पर्याप्त अनुभव भी है.

'मंत्री पद देना नैतिकता के आधार पर गलत'

वरिष्ठ अधिवक्ता शांतनु सक्सेना ने कहा कि ऐसे लोगों के होते हुए इन लोगों को मंत्री पद देना नैतिकता के आधार पर गलत है. इसमें एक चीज और जुड़ जाती है कि अगर आप इनको केवल मंत्री पद दे रहे हैं, इनका चुना जाना भी मंत्री पद से जुड़ा हुआ है. आज की तारीख में जो इन्होंने अपनी सीट छोड़ी और अपनी सीट छोड़कर दूसरे दल की सदस्यता ली. जब हम इस पूरे घटनाक्रम को एक रूप में देखते हैं, तो साफ दिखता है कि क्यों उन्होंने जनता के प्रतिनिधि के पद से इस्तीफा दिया, क्यों इन लोगों ने दल छोड़ा और कैसे इसके एवज में उन्हें मंत्री पद दिया गया.

6 महीने के भीतर लड़ना होगा चुनाव

जिन 14 नेताओं को मंत्री बनाया गया है वे सभी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे और बाद में कोई मंत्री पद ना दिए जाने के कारण तो कोई सिंधिया खेमे के होने के कारण कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में चले गए. इन सभी लोगों को 6 महीने के अंदर चुनाव मैदान में उतरना होगा और चुनाव जीतने पर ही यह मंत्री बने रह सकेंगे.

ये हैं वो 14 मंत्री

इन 14 मंत्रियों में गोविंद सिंह राजपूत, तुलसीराम सिलावट, बिसाहूलाल सिंह, एदल सिंह कंसाना, इमरती देवी, प्रभु राम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, हरदीप सिंह डंग,राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, बृजेंद्र सिंह यादव,गिरिराज दंडोतिया, सुरेश धाकड़ और ओ पी एस भदौरिया के नाम शामिल हैं.

भोपाल। मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के 100 दिन बाद आखिरकार शिवराज की नई टीम यानि मंत्रिमंडल का विस्तार आज हो गया है. मंत्रिमंडल विस्तार के लिए 100 दिन तक चले सियासी ड्रामे को अच्छे-अच्छे राजनीतिक पंडित भी नहीं आंक पाए. हालांकि आज हुए शिवराज सरकार के कैबिनेट विस्तार के दौरान 14 विधायकों ने बिना विधानसभा की सदस्यता के चलते मंत्रिपद की शपथ ली. मध्यप्रदेश के इतिहास में ये पहली घटना है, जब एक साथ 14 ऐसे लोगों को मंत्री बनाया गया है, जो मौजूदा स्थिति में विधानसभा के सदस्य नहीं हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इसे संविधान के साथ खिलवाड़ बताया तो वहीं संविधान के अनुसार ये गलत नहीं है.

14 मंत्रियों के पास नहीं है विधानसभा की सदस्यता

संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति 6 महीने तक बिना विधायक या सांसद रहे मंत्री बन सकता है, लेकिन 6 महीने के अंदर उसे चुनाव लड़ना होता है और चुनाव हारने की स्थिति में फिर वह मंत्री नहीं रह सकता. संविधान के अनुसार इन 14 लोगों का मंत्री बनना तो गलत नहीं है, लेकिन जब राजनीति में नैतिकता की बात आती है तो नैतिकता के तकाजे के नाते सवाल खड़े होते हैं. वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी कहते हैं कि तकनीकी रूप से देखा जाए, तो इसमें कुछ गलत नहीं है. यह इसलिए गलत नहीं है, क्योंकि प्रदेश में जब दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार आई थी, तो मुख्यमंत्री कमलनाथ बने थे, जो खुद विधानसभा के सदस्य नहीं थे.

क्या कहते हैं दीपक तिवारी

दीपक तिवारी ने कहा कि कमलनाथ को तब 6 महीने के अंदर चुनकर आना था और वह चुनकर आए, लेकिन सामान्य रूप से माना जाता है कि राजनीति तकनीकी मापदंड की बात नहीं है. महात्मा गांधी कहते थे कि बिना सिद्धांत और नैतिकता के राजनीति नहीं होती है. राजनीति में नैतिकता का तकाजा एक बड़ा मापदंड होता है, तो मध्य प्रदेश में भाजपा के पास 107 चुने हुए विधायक हैं, उनमें से मंत्री बनाए जा सकते थे, लेकिन सभी जानते हैं कि बहुत सारी मजबूरियां इस मंत्रिमंडल को बनाने में रही हैं, शिवराज सिंह ने खुद कहा कि वह विष पी रहे हैं तो इन परिस्थितियों में राजनीतिक मजबूरियों के चलते इतने सारे लोगों को मंत्री बनाना पड़ा, जो विधानसभा के सदस्य नहीं हैं. वह लोग कम से कम 6 महीने तो रह सकते हैं.

कानून के तहत सही

वहीं इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता शांतनु सक्सेना कहते हैं कि जहां तक कानून का सवाल है, तो इनको मंत्री बनाया जा सकता था और उनको बनाया गया है. लेकिन जब नैतिकता की बात करते हैं, तो यह है लोकतंत्र के उसूलों के अनुरूप नहीं हैं. खास तौर पर इसलिए क्योंकि यह वह 14 लोग हैं, जो कि अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं. तो इससे साफ होता है कि यह खुद जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करना चाहते हैं. यदि कोई विधायक इस्तीफा दे चुका है, तो यह माना जाएगा कि यह जनता का प्रतिनिधि नहीं रहना चाहता है तो उसको मंत्री पद देना एक तरीके से यह कहना है कि हमें जनता के प्रतिनिधियों की आवश्यकता नहीं है, जो व्यक्ति जनता द्वारा चुना गया था, एक राजनीतिक दल के टिकट पर चुनाव जीत कर आया था, वह जनता का प्रतिनिधित्व कर रहा था, जिसके पास पर्याप्त अनुभव भी है.

'मंत्री पद देना नैतिकता के आधार पर गलत'

वरिष्ठ अधिवक्ता शांतनु सक्सेना ने कहा कि ऐसे लोगों के होते हुए इन लोगों को मंत्री पद देना नैतिकता के आधार पर गलत है. इसमें एक चीज और जुड़ जाती है कि अगर आप इनको केवल मंत्री पद दे रहे हैं, इनका चुना जाना भी मंत्री पद से जुड़ा हुआ है. आज की तारीख में जो इन्होंने अपनी सीट छोड़ी और अपनी सीट छोड़कर दूसरे दल की सदस्यता ली. जब हम इस पूरे घटनाक्रम को एक रूप में देखते हैं, तो साफ दिखता है कि क्यों उन्होंने जनता के प्रतिनिधि के पद से इस्तीफा दिया, क्यों इन लोगों ने दल छोड़ा और कैसे इसके एवज में उन्हें मंत्री पद दिया गया.

6 महीने के भीतर लड़ना होगा चुनाव

जिन 14 नेताओं को मंत्री बनाया गया है वे सभी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे और बाद में कोई मंत्री पद ना दिए जाने के कारण तो कोई सिंधिया खेमे के होने के कारण कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में चले गए. इन सभी लोगों को 6 महीने के अंदर चुनाव मैदान में उतरना होगा और चुनाव जीतने पर ही यह मंत्री बने रह सकेंगे.

ये हैं वो 14 मंत्री

इन 14 मंत्रियों में गोविंद सिंह राजपूत, तुलसीराम सिलावट, बिसाहूलाल सिंह, एदल सिंह कंसाना, इमरती देवी, प्रभु राम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, हरदीप सिंह डंग,राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, बृजेंद्र सिंह यादव,गिरिराज दंडोतिया, सुरेश धाकड़ और ओ पी एस भदौरिया के नाम शामिल हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.