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आत्मनिर्भर होती नारी! महामारी से माहवारी तक महिलाओं की 'संगिनी'

भिंड में महामारी से सुरक्षा के लिए बाजार से मास्क गायब थे. ऐसे में संगिनी स्वसहायता समूह की सचिव रेखा शुक्ला ने जिम्मा सम्भाला था और स्वास्थ्य विभाग से लेकर आम जन तो को मास्क तैयार कर उपलब्ध कराए. आज रेखा शुक्ला, संगिनी स्वसहयता समूह और उससे जुड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है.

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आत्मनिर्भरता
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Published : Mar 22, 2021, 7:46 PM IST

Updated : Mar 23, 2021, 6:56 AM IST

भिंड। समाज में कुछ कर गुजरने की चाह और आत्मनिर्भर बनने की लगन ने भिंड की संगिनी स्वसहयता समूह से जुड़ी महिलाओं को पहचान का एक नया आयाम दिया है. लॉकडाउन को एक साल पूरा हो गया है, कोरोना काल में जब पूरा विश्व लॉकडाउन में था. भारत में भी कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगाया गया था, तब हमारे देश में मध्यप्रदेश के जिला भिंड में बचाव के लिए हर सम्भव प्रयास किए जा रहे थे. महामारी से सुरक्षा के लिए बाज़ार से मास्क गायब थे. ऐसे में संगिनी स्वसहायता समूह की सचिव रेखा शुक्ला ने जिम्मा सम्भाला था और स्वास्थ्य विभाग से लेकर आम जन तो को मास्क तैयार कर उपलब्ध कराए थे. आज रेखा शुक्ला, संगिनी स्वसहयता समूह और उससे जुड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है. रोजगार उपलब्ध करवा रही है. बल्कि महिलाओं को होने वाली माहवारी यानी पीरियड की समस्या को लेकर भी जागरूक कर रही हैं

Steps towards self-reliance
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम

कोरोना काल में बनी मिसाल

कोरोना महामारी जिस समय चरम पर थी. इस दौरान बाजार से मास्क गायब हो चुके थे, यहां तक की स्वास्थ्य विभाग भी इनकी कमी से जूझ रहा था. इस दौरान तत्कालीन कलेक्टर द्वारा बुलायी गयी विशेष बैठक में संगिनी स्वसहयता समूह की सचिव रेखा शुक्ला ने अपने समूह द्वारा मास्क बनाकर उपलब्ध कराने की पेशकश की थी. जिस पर सभी विभागों ने उन्हें ऑर्डर दिए और मामूली कीमतों में कपड़े के बने रीयूजबल डबल और ट्रिपल लेयर मास्क, हेड कैप, सप्लाई किए 25 हजार से ज़्यादा मास्क उन्होंने तैयार कर उपलब्ध कराए थे. आज भी कई लोग वही मास्क उपयोग कर रहे हैं.

विश्व जल दिवस: बूंद-बूंद बचाकर शहडोल के जल पुरुष बने खड़ग सिंह

माहवारी के प्रति जागरूक करने का उठाया बीड़ा

कोरोना काल में मिली सफलता ने इस संगिनी समूह के हौसलों को बल दिया और उनके कदम यही नहीं रुके, रेखा शुक्ला ने अपनी टीम के साथ मिलकर समाज के लिए कुछ बेहतर करने की ठानी और शुरू की जंग माहवारी को लेकर फैली भ्रांतियों के खिलाफ, संगिनी स्वसहयता समूह ने ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सैनिटेरी पैड निर्माण कर कम कीमतों में उपलब्ध कराने का फैसला लिया.

आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ती नारी

सेनेटरी नैप्किन बनाम देसी कपड़ा

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी की वजह से महिलायें पीरिऐड्स के दौरान होने वाली ब्लीडिंग के लिए कपड़ा का इस्तेमाल करती हैं. जिसकी वजह से कई बार वे इन्फेक्शन और गम्भीर बीमारियों का शिकार हो जाती हैं, जबकि सेनेटरी नैप्किन का उपयोग सुरक्षित होता है. इसलिए उनका समूह और उससे जुड़ी महिलायें समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में कैम्प लगाकर जागरूकता अभियान भी चलाती हैं.

Steps towards self-reliance
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
कम कीमत में तैयार कर रही सेनेटरी पैड्स

सिर्फ जागरूकता अभियान से बदलाव आए यह पूरी तरह कारगर नहीं होता. इसलिए महिलाओं को सेनेटरी पैड्स उपलब्ध कराना उद्देश्य बना और लेकिन बहुतायत में पैड्स का निर्माण करने और वितरण करना चुनौती बना तो संगिनी स्वसहयता समूह ने ग्रामीण महिलाओं से सम्पर्क कर उन्हें रोज़गार दिया, साथ ही निर्माण के लिए 3 लाख की कीमत से घर में सेनेटरी पैड बनाने की मशीनें मंगाई और निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया. बाजार में उपलब्ध बड़े और प्रचलित ब्रांड को ध्यान में रखते हुए उन्होंने रीसर्च की और कम लागत से ब्रांडेड कम्पनियों से बेहतर क्वालिटी के पैड तैयार किए साथ ही कीमत भी कम रखी. जिससे गरीब से गरीब महिलायें भी उन्हें खरीद कर उपयोग कर सके अपने स्वदेशी पैड्स को नाम दिया ‘आजीविका’ जिसकी क़ीमत महज 25 रुपये रखी गयी. इसके एक पैक में 6 पैड मिलते है, हाल की ग्रामीण अंचल की महिलाओं को तो यह पैकेट महज 20 रुपय की मामूली क़ीमत पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं. जिसके लिए वर्तमान में 106 महिलाएँ कार्यरत हैं.

इस तरह तैयार होते हैं सेनेटरी नैप्किन

सेनेटरी नैप्किन बनाने के लिए रेखा शुक्ला के घर में प्लांट लगाया गया है जहां इनका निर्माण किया जाता है. पैड्स के निर्माण के लिए 3 लाख की लागत से मशीनें मंगायी गयी, पैड निर्माण प्रक्रिया 4 स्टेज में पूरी होती है. सबसे पहले डिसपोजेबल फैब्रिक की लेयर रखी जाती है. इसमें दूसरी लेयर में ‘बूटपल्प’ जो एक तरह का मटीरीयल है जो पिरिएडस के दौरान निकलने वाले ब्लड को सोखने का काम करता है. यह मैटेरियल गीला होने पर जैल में बदलता जाता है का इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद एक बार फिर डिसपोज़ेबल फ़ैब्रिक बूटपल्प के ऊपर रखा जाता है और आखिर में एक पतली कागज नुमा कपड़े की शीट लगायी जाती है और सीलिंग मशीन में बने खांचे में रख कर प्रेस किया जाता है. इससे पैड अपने आकर में आ जाता है, दूसरे चरण में पैड को एक अन्य मशीन में रख कर प्रेस किया जाता है. जिससे वह दबकर पतले पैकिंग के लिए तैयार हो जाते है. तीसरी स्टेज में इन तैयार सेनेटरी पैड को यूवी मशीन में रखा जाता है क्योंकि इनका इस्तेमाल हाईजीन को ध्यान में रखते हुए किया जाना होता है. इसलिए बैक्टेरिया या किसी भी तरह के सूक्ष्म कीटाणु से सुरक्षित किया जा सके. अंतिम स्टेज में ब्रांड के नाम वाले पैकेट में डाला जाता है और हीट मशीन के ज़रिए सील कर पैकेट भेजने के लिए तैयार हो जाता है.

Steps towards self-reliance
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता मुख्य उद्देश्य

संगिनी स्वसहयता समूह की अध्यक्ष ममता शर्मा कहती है कि वे रेखा शुक्ला की इस पहल में सहयोग कर रही हैं. उनका उद्देश्य बिजनेस या पैसा कमाना नहीं है. वे चाहती है की महिलाओं में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी के दौरान कपड़े का उपयोग करने से महिलाओं में गर्भाशय सम्बन्धी बीमारियां बढ़ रही है. ऐसे में उन्हें जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है. जिससे वे सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करें. इसके लिए यह पैड के पैकेट सभी ग्राम पंचायतों में घर घर तक पहुंचाये जा रहे हैं. इसके साथ ही शासकीय कार्यक्रमों में अस्पतालों के बाहर भी स्टॉल लगवाए जाते हैं. जिससे महिलाओं में जागरूकता आए और हर घर में महिलाएं इनका उपयोग करें.

महिलाओं के लिए प्रेरणा

आज रेखा शुक्ला और उनके सहयोगी ना सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को जागरूक कर कम कीमत में सेनेटरी नेप्किन उपलब्ध करवा रही हैं. बल्कि महिला बाल विकास विभाग द्वारा भी उनके प्रयास की सराहना की जा रही है. खुद भिंड जिले में महिला बाल विकास विभाग द्वारा सेनेटरी नैप्किन के लिए ऑर्डर संगिनी स्वसहयता समूह को ही दिया जाता है. इस समूह और उनसे जुड़ी महिलाओं ने साबित किया है कि वे किसी से पीछे नहीं है. खुद की आजीविका और आत्मनिर्भरता की मिसाल तो पेश कर हो रही है. बल्कि अपने प्रयास से समाज को भी सही राह दिखा रही हैं.

भिंड। समाज में कुछ कर गुजरने की चाह और आत्मनिर्भर बनने की लगन ने भिंड की संगिनी स्वसहयता समूह से जुड़ी महिलाओं को पहचान का एक नया आयाम दिया है. लॉकडाउन को एक साल पूरा हो गया है, कोरोना काल में जब पूरा विश्व लॉकडाउन में था. भारत में भी कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगाया गया था, तब हमारे देश में मध्यप्रदेश के जिला भिंड में बचाव के लिए हर सम्भव प्रयास किए जा रहे थे. महामारी से सुरक्षा के लिए बाज़ार से मास्क गायब थे. ऐसे में संगिनी स्वसहायता समूह की सचिव रेखा शुक्ला ने जिम्मा सम्भाला था और स्वास्थ्य विभाग से लेकर आम जन तो को मास्क तैयार कर उपलब्ध कराए थे. आज रेखा शुक्ला, संगिनी स्वसहयता समूह और उससे जुड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है. रोजगार उपलब्ध करवा रही है. बल्कि महिलाओं को होने वाली माहवारी यानी पीरियड की समस्या को लेकर भी जागरूक कर रही हैं

Steps towards self-reliance
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम

कोरोना काल में बनी मिसाल

कोरोना महामारी जिस समय चरम पर थी. इस दौरान बाजार से मास्क गायब हो चुके थे, यहां तक की स्वास्थ्य विभाग भी इनकी कमी से जूझ रहा था. इस दौरान तत्कालीन कलेक्टर द्वारा बुलायी गयी विशेष बैठक में संगिनी स्वसहयता समूह की सचिव रेखा शुक्ला ने अपने समूह द्वारा मास्क बनाकर उपलब्ध कराने की पेशकश की थी. जिस पर सभी विभागों ने उन्हें ऑर्डर दिए और मामूली कीमतों में कपड़े के बने रीयूजबल डबल और ट्रिपल लेयर मास्क, हेड कैप, सप्लाई किए 25 हजार से ज़्यादा मास्क उन्होंने तैयार कर उपलब्ध कराए थे. आज भी कई लोग वही मास्क उपयोग कर रहे हैं.

विश्व जल दिवस: बूंद-बूंद बचाकर शहडोल के जल पुरुष बने खड़ग सिंह

माहवारी के प्रति जागरूक करने का उठाया बीड़ा

कोरोना काल में मिली सफलता ने इस संगिनी समूह के हौसलों को बल दिया और उनके कदम यही नहीं रुके, रेखा शुक्ला ने अपनी टीम के साथ मिलकर समाज के लिए कुछ बेहतर करने की ठानी और शुरू की जंग माहवारी को लेकर फैली भ्रांतियों के खिलाफ, संगिनी स्वसहयता समूह ने ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सैनिटेरी पैड निर्माण कर कम कीमतों में उपलब्ध कराने का फैसला लिया.

आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ती नारी

सेनेटरी नैप्किन बनाम देसी कपड़ा

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी की वजह से महिलायें पीरिऐड्स के दौरान होने वाली ब्लीडिंग के लिए कपड़ा का इस्तेमाल करती हैं. जिसकी वजह से कई बार वे इन्फेक्शन और गम्भीर बीमारियों का शिकार हो जाती हैं, जबकि सेनेटरी नैप्किन का उपयोग सुरक्षित होता है. इसलिए उनका समूह और उससे जुड़ी महिलायें समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में कैम्प लगाकर जागरूकता अभियान भी चलाती हैं.

Steps towards self-reliance
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
कम कीमत में तैयार कर रही सेनेटरी पैड्स

सिर्फ जागरूकता अभियान से बदलाव आए यह पूरी तरह कारगर नहीं होता. इसलिए महिलाओं को सेनेटरी पैड्स उपलब्ध कराना उद्देश्य बना और लेकिन बहुतायत में पैड्स का निर्माण करने और वितरण करना चुनौती बना तो संगिनी स्वसहयता समूह ने ग्रामीण महिलाओं से सम्पर्क कर उन्हें रोज़गार दिया, साथ ही निर्माण के लिए 3 लाख की कीमत से घर में सेनेटरी पैड बनाने की मशीनें मंगाई और निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया. बाजार में उपलब्ध बड़े और प्रचलित ब्रांड को ध्यान में रखते हुए उन्होंने रीसर्च की और कम लागत से ब्रांडेड कम्पनियों से बेहतर क्वालिटी के पैड तैयार किए साथ ही कीमत भी कम रखी. जिससे गरीब से गरीब महिलायें भी उन्हें खरीद कर उपयोग कर सके अपने स्वदेशी पैड्स को नाम दिया ‘आजीविका’ जिसकी क़ीमत महज 25 रुपये रखी गयी. इसके एक पैक में 6 पैड मिलते है, हाल की ग्रामीण अंचल की महिलाओं को तो यह पैकेट महज 20 रुपय की मामूली क़ीमत पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं. जिसके लिए वर्तमान में 106 महिलाएँ कार्यरत हैं.

इस तरह तैयार होते हैं सेनेटरी नैप्किन

सेनेटरी नैप्किन बनाने के लिए रेखा शुक्ला के घर में प्लांट लगाया गया है जहां इनका निर्माण किया जाता है. पैड्स के निर्माण के लिए 3 लाख की लागत से मशीनें मंगायी गयी, पैड निर्माण प्रक्रिया 4 स्टेज में पूरी होती है. सबसे पहले डिसपोजेबल फैब्रिक की लेयर रखी जाती है. इसमें दूसरी लेयर में ‘बूटपल्प’ जो एक तरह का मटीरीयल है जो पिरिएडस के दौरान निकलने वाले ब्लड को सोखने का काम करता है. यह मैटेरियल गीला होने पर जैल में बदलता जाता है का इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद एक बार फिर डिसपोज़ेबल फ़ैब्रिक बूटपल्प के ऊपर रखा जाता है और आखिर में एक पतली कागज नुमा कपड़े की शीट लगायी जाती है और सीलिंग मशीन में बने खांचे में रख कर प्रेस किया जाता है. इससे पैड अपने आकर में आ जाता है, दूसरे चरण में पैड को एक अन्य मशीन में रख कर प्रेस किया जाता है. जिससे वह दबकर पतले पैकिंग के लिए तैयार हो जाते है. तीसरी स्टेज में इन तैयार सेनेटरी पैड को यूवी मशीन में रखा जाता है क्योंकि इनका इस्तेमाल हाईजीन को ध्यान में रखते हुए किया जाना होता है. इसलिए बैक्टेरिया या किसी भी तरह के सूक्ष्म कीटाणु से सुरक्षित किया जा सके. अंतिम स्टेज में ब्रांड के नाम वाले पैकेट में डाला जाता है और हीट मशीन के ज़रिए सील कर पैकेट भेजने के लिए तैयार हो जाता है.

Steps towards self-reliance
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता मुख्य उद्देश्य

संगिनी स्वसहयता समूह की अध्यक्ष ममता शर्मा कहती है कि वे रेखा शुक्ला की इस पहल में सहयोग कर रही हैं. उनका उद्देश्य बिजनेस या पैसा कमाना नहीं है. वे चाहती है की महिलाओं में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी के दौरान कपड़े का उपयोग करने से महिलाओं में गर्भाशय सम्बन्धी बीमारियां बढ़ रही है. ऐसे में उन्हें जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है. जिससे वे सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करें. इसके लिए यह पैड के पैकेट सभी ग्राम पंचायतों में घर घर तक पहुंचाये जा रहे हैं. इसके साथ ही शासकीय कार्यक्रमों में अस्पतालों के बाहर भी स्टॉल लगवाए जाते हैं. जिससे महिलाओं में जागरूकता आए और हर घर में महिलाएं इनका उपयोग करें.

महिलाओं के लिए प्रेरणा

आज रेखा शुक्ला और उनके सहयोगी ना सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को जागरूक कर कम कीमत में सेनेटरी नेप्किन उपलब्ध करवा रही हैं. बल्कि महिला बाल विकास विभाग द्वारा भी उनके प्रयास की सराहना की जा रही है. खुद भिंड जिले में महिला बाल विकास विभाग द्वारा सेनेटरी नैप्किन के लिए ऑर्डर संगिनी स्वसहयता समूह को ही दिया जाता है. इस समूह और उनसे जुड़ी महिलाओं ने साबित किया है कि वे किसी से पीछे नहीं है. खुद की आजीविका और आत्मनिर्भरता की मिसाल तो पेश कर हो रही है. बल्कि अपने प्रयास से समाज को भी सही राह दिखा रही हैं.

Last Updated : Mar 23, 2021, 6:56 AM IST
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