भिंड। भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण के अटूट प्रेम को सभी जानते हैं. जहां भी राम हों वहां लक्ष्मण भी पूजे जाते हैं. राम के साथ वनवास काटने वाले लक्ष्मण का एक कनेक्शन भिंड जिले में भी है, क्योंकि भिंड के गोहद में मौजूद है वह लक्षमण मंदिर, जहां राम जानकी नहीं बलक्ज लक्षमण और उनकी पत्नी उर्मिला देवी की प्रतिमाएं पूजी जाती है. इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व और मान्यता जानने के लिए ETV भारत की इस रिपोर्ट पर एक नजर जरूर डालें.
राम लक्ष्मण को देख मुग्ध हुए राजा जनक: पूरा देश आज राम नवमी मना रहा है. अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के घर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन हुआ था. उन्हीं का जन्मोत्सव प्रतिवर्ष अयोध्या समेत पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. ये परमपरा हजारों सालों से चली आ रही है. राम के अलावा राजा दशरथ की तीसरी संतान थे लक्ष्मण. लक्ष्मण कहने को तो राम के छोटे भाई थे, लेकिन वे अपने बड़े भाई राम से अथाह प्रेम करते थे. उनकी परछाईं की तरह थे. रामायण में भी उल्लेख है कि जब राम और लक्ष्मण माता सीता के स्वयंवर में अपने गुरु वशिष्ठ के साथ पहुंचे थे, तब उन्हें देख कर सीता के पिता राजा जनक ने दोनों भाईयों के तेज से मुग्ध होकर उत्सुकता वश गुरु वशिष्ट से उनके बारे में पूछा था. जिसके जवाब में मुनि ने कहा था.
"राम लखनु दोउ बंधुवर रूप सील बलधाम, मख राखेउ सबु साखि जगु जीते असुर संग्राम. जिसका भावार्थ था कि 'ये राम और लक्ष्मण दोनों श्रेष्ठ भाई रूप, सील और बल के धाम हैं और सारा जगत इस बात का साक्षी है कि इन दोनों भाइयों ने असुरों को हराकर मेरे यज्ञ की रक्षा की है.
इन पंक्तियों के भाव लक्ष्मण के जीवन में उस समय प्रत्यक्ष हुआ, जब राम वनवास गए और लक्ष्मण भी उनके साथ परिवार और राजसुख त्याग कर राम सेवक बन वनवासी पथ पर चल दिये. यही कारण हैं कि जहां भी भगवान और माता जानकी की पूजा होती है. वहां उनके साथ लक्ष्मण जी की भी प्रतिमा देखने को मिलती है.
विष्णु नहीं सिर्फ लक्षमण- उर्मिला की प्रतिमाएं: आज देश और विदेशों में भी भगवान राम के मंदिर हैं. प्रतिमाओं की पूजा होती है, लेकिन बहुत कम मंदिर हैं, जहां मुख्य रूप से भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण की पूजा होती है. मध्यप्रदेश के खजुराहो में विश्व प्रसिद्ध लक्षमण मन्दिर हैं, लेकिन यहां लक्ष्मण जी नहीं बल्कि भगवान विष्णु की पूजा होती है. कुछ अन्य प्रदेशों में भी लक्ष्मण मंदिर हैं. प्रथम पूज्यनीय भी लक्ष्मण जी हैं, लेकिन वहां उनके साथ भगवान राम और पूरा परिवार मौजूद है, लेकिन शायद ही ज्यादा किसी को पता होगा कि एक ऐतिहासिक लक्ष्मण मंदिर भिंड जिले के गोहद में भी मौजूद है. जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित घोषित किया है.
गोहद के राजा रानी ने कराया था निर्माण: जिले के गोहद नगर में ऐतिहासिक किले के नीचे तालाब के बीचों बीच स्थित है. भगवान लक्ष्मण का ऐसा एकमात्र मंदिर जहां भगवान लक्षमण और उनकी पत्नी देवी उर्मिला माता विराजमान हैं. इस मंदिर के इतिहास पर अलग अलग अवधारणाएं हैं. मंदिर के पुजारी के मुताबिक यह मंदिर करीब 400 से अधिक वर्ष पुराना बताया गया है, जबकि पुरातत्व विभाग इस मंदिर का निर्माण 1762ई में होना मानता है. मंदिर में बीते एक दशक से ज्यादा समय से भगवान लक्ष्मण और माता देवी उर्मिला की सेवा कर रहे पुजारी लक्षमण बाथम कहते हैं कि यह भारतवर्ष के एक मात्र मंदिर हैं, जहां सिर्फ भगवान लक्ष्मण और उनकी पत्नी उर्मिला की पूजा होती है. इस मंदिर का निर्माण गोहद के राजा छत्र सिंह राणा और उनकी पत्नी रानी के द्वारा कराया गया था. उस वक्त यह मंदिर तालाब के बीचों बीच हुआ करता था जो नाव के जरिए प्रतिदिन यहां पूजा करने आती थीं.
स्वप्न में दिया था रक्षा करने का आशीर्वाद: मान्यता है कि जब इस मंदिर की स्थापना हुई, उस समय लक्ष्मण जी ने उन्हें स्वप्न दिया था कि जब भी उन पर विपत्ति आएगी तो वे पहले ही आगाह करेंगे. ऐसा ही जब दुश्मनों ने उन्हें निशाना बनाया तो तोप के गोले किले तक नहीं पहुंच सके और मंदिर के गुम्बत पर ही आघात जा सका. कहा जाता है कि इस हमले से गोहद के राजा को लक्ष्मण जी ने समय रहते चेता दिया. इसके बाद राजा अपनी रानी और बच्चों के साथ समय रहते चले गए थे.
23 साल पूर्व पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया: आज ये ऐतिहासिक संपदा संरक्षित इमारतों में से एक है. वर्ष 1999 में पुरातत्व विभाग ने इसे राज्य संरक्षित धरोहर घोषित कर दिया है. पुरातत्व विभाग मानता है कि इस मंदिर का निर्माण 1762 ई में हुआ है. साथ ही यहां राम लक्ष्मण की प्रतिमाएं भी मंदिर के अंदर से मिली थी. जो 18वी शताब्दी की बताई जाती हैं, मन जाता है कि जिस समय गोहद के किले का निर्माण हुआ. उसके तुरंत बाद यह मंदिर यहां स्थापित कराया गया था.
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देखरेख का अभाव, पर्यटकों ने बनाई दूरी: इतने वर्षों बाद आज यह मंदिर वीरान नजर आता है. पुरातत्व संरक्षित और पर्यटन के लिहाज से एक ऐतिहासिक धरोहर पर्यटकों का अभाव झेल रही है. शतकों पुराने मंदिर की दीवारें जर्जर हो रही हैं, लेकिन न कोई मरम्मत न देखभाल. मंदिर के पुजारी ने बताया कि पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को लावारिस छोड़ दिया है. यहां मंदिर के जीर्णोद्धार का काम कुछ वर्ष पहले शुरू हुआ था, लेकिन कोरोना की वजह से काम रुक गया, इसके बाद से ही कभी कोई इसकी सुध लेने आया ही नहीं. पहले थोड़े पर्यटक आते भी थे लेकिन अब सैलानी इस मंदिर में अपनी रुचि नहीं दिखाते हैं.
अब भी बदल सकती है तस्वीर: गोहद की एक धरोहर जो अपने आप में एक इतिहास को समेटे हुए है आज जर्जर है. अपनी पहचान खोती जा रही है. जिस लक्ष्मण मंदिर को मध्यप्रदेश पर्यटन के अवसर में बदल सकता था. वह महज एक भूला दिया गया पूजा घर बनकर रह गया है. यदि अब भी यहां सुविधाओं के साथ जीर्णोंद्धार का प्रयास किया जाए तो यह मंदिर पर्यटन और आस्था दोनों का ही केंद्र बन सकता है और पहले से खूबसूरत गोहद किले की तरह जिले का नाम ऊंचा कर सकता है.