भिंड। मध्यप्रदेश का ग्वालियर-चंबल अंचल बंदूक और राजनीति दोनों ही चीज़ों के लिए हमेशा चर्चा में रहता है. हो भी क्यों ना, दशकों तक यह क्षेत्र दस्यु समस्या से घिरा रहा है. दबंगई और गन कल्चर तो जैसे यहां हर आदमी की रगों में बहता है. दस्यु तो आत्मसमर्पण कर चुके हैं लेकिन बंदूक आज भी यहां वर्चस्व की निशानी है. इसीलिये यहां के लोग चुनाव में विकास से ज्यादा उम्मीद अपने विधायक से बंदूक के लाइसेंस की रखते हैं. इस चुनाव में खुलकर प्रत्याशियों से आर्म लाइसेंस की मांग की जा रही है.
युवाओं की चाहत आर्म लाइसेंस : भिंड विधानसभा क्षेत्र के युवा वोटर रमेश उपाध्याय कहते हैं कि बनने वाले विधायक से इस बार कई उम्मीदें हैं. ख़ासकर बेरोज़गारी की समस्या सबसे बड़ी है. क्षेत्र का पढ़ा लिखा युवा नौकरी के अभाव में घूम रहा है. सरकारी नौकरियां तो हैं ही नहीं या फिर 15 लाख लाओ तब नौकरी पाओ तो इतना पैसा भी नहीं है. इसलिए विधायक ऐसा हो जो बेरोज़गारी और युवाओं के लिए काम करे, नहीं तो कम से कम बन्दूक का लाइसेंस तो बनवा दे, जिससे कहीं सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर परिवार पाल सकें. क्योंकि बिना नेतानगरी आर्म लाइसेंस बनवाना आसान नहीं है.
प्रत्याशी भी दे रहे भरोसा : एक अन्य युवा हरेंद्र का भी ऐसा ही कहना है. उन्हें भिंड के होने वाले विधायक से उम्मीद इतनी है कि कम से कम वह बंदूक का लाइसेंस तो बनवा ही दें, क्योंकि प्राइवेटाइज़ेशन की वजह से नौकरी नहीं बची हैं. बंदूक़ का लाइसेंस होगा तो सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर सकते हैं, जिससे 20 हजार रुपए महीना कमा सकेंगे. इस मामले में विधानसभा चुनाव लड़ रहे जनप्रतिनिधि भी पीछे नहीं हैं. चुनाव मैदान में उतरे पूर्व विधायक और भिंड विधानसभा सीट से बीजेपी के प्रत्याशी नरेंद्र सिंह कुशवाह से लेकर बसपा प्रत्याशी रक्षपाल सिंह तक क्षेत्र में बन्दूक को युवाओं के रोज़गार का सहारा मानते हुए हामी भर रहे हैं. विधायक बने तो हथियार लाइसेंस बनवाने का हरसंभव प्रयास करेंगे.
कांग्रेस प्रत्याशी बोले- पहले भी बनवाए लाइसेंस : कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मंत्री चौ. राकेश सिंह चतुर्वेदी ने तो आर्म लाइसेंस को लेकर प्रदेश की बीजेपी सरकार तक को घेरा है. उनका कहना है कि बीते 18 महीने से हथियार लाइसेंस बने नहीं हैं. जबकि ये आर्म लाइसेंस क्षेत्र के युवाओं के लिए रोजगार का साधन बनते हैं. भिंड जिले के कई युवा अहमदबाद, मुंबई, दिल्ली जैसे बड़े महानगरों में जाते हैं और उन्हें वहां 30-30 हजार रुपए की नौकरी मिल जाती है. उन्होंने बताया कि विधायक रहते उन्होंने दो महीने में 1 हजार बन्दूकों के लाइसेंस बनवाये थे. 100 रिवाल्वर लाइसेंस करवा दिए थे. अपने समय में और इस बात पर फ़ख्र महसूस होता क्योंकि उनमें से 50 फीसदी युवा आज नौकरी कर रहे हैं और जब उनसे कोई मिलता है तब कहता है कि ये लाइसेंस आपने बनवाया था.
ये खबरें भी पढ़ें... |
सिफारिशों के लिए लगेगी लाइन : भले ही आज ज़िले में 23500 लाइसेंसी हथियार हैं लेकिन इस बार चंबल के चुनाव में बंदूक का लाइसेंस भी उन वादों में शामिल है, जो विधायक बनने की सीढ़ी बन रहा है, विधायक कौन बनेगा ये तो चुनाव मतदान के नतीजे बतायेंगे, लेकिन ये निश्चित है कि चुनाव के बाद विधायक के पास इस अनोखी डिमांड के कई आवेदन आएंगे. प्रत्याशियों द्वारा युवाओं को दिए जा रहे आश्वासन से ये बात साफ हो रही है कि यहां विकास से ज्यादा बंदूक का क्रेज है.