भिंड। एक के ऊपर एक 7 पत्थर रख सितौलिया बनाकर दूर से उन पर निशाना लगाना, फिर गेंद पकड़कर एक दूसरे को उससे निशाना बनाकर आउट करने की कोशिश, या फिर गली में डंडे से ज़ोर की चोट मारकर गिल्ली को दूर उछालना, या काँच के कंचों का खेल खेलना. इनके बारे में सोचते ही बचपन की यादें ताज़ा हो जाती हैं. ये वो पारंपरिक खेल हैं जिन्हें दो दशक पहले तक गली कूंचों में बच्चों को खेलते देखा जा सकता था. आज भी गांव खरंजों में कहीं कहीं ये खेल खेलते बच्चे शायद नजर आ जायें, लेकिन लगभग एक दशक में खेलों के मायने बदल गए हैं. खेलों के नाम पर पहले कंप्यूटर, फिर वीडियो गेम्स आ गए और आज एक छोटे से मोबाइल फोन से लोग अपने अंगूठों का व्यायाम करते नहीं थकते. कुल मिला कर सिथौलिया, हूल, कंचे, गिल्ली डंडा जैसे खेल हमारे जीवन से गौरैया पक्षी की तरह विलुप्त हो चुके हैं.
ETV Bharat से चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि ऐसे कई खेल हैं चाहे वह सितौलिया हो, खो-खो हो या कबड्डी कई गेम्स हैं जिन्होंने हमारे देश की माटी से जन्म लिया और इन्हें खेल कर हम बड़े हुए. (how to play road side sports bjp to teach) लेकिन, आज ये खेल कहीं भी देखने को नहीं मिल रहे हैं. ऐसे क़रीब 10 से 20 खेल हैं जो अलग अलग इलाक़ों में अलग अलग नामों से जाने जाते हैं इन खेलों को दोबारा प्रचलन में लाने और उन्हें एक बार फिर लोगों से जोड़ने का काम भाजयुमो कर रहा है. आने वाले समय में पूरा देश इस बात की मिसाल देगा कि मध्यप्रदेश में किस तरह क्रिकेट बैडमिंटन टेनिस जैसे गेम्स के परे पारंपरिक खेलों को बढ़ावा दिया जा रहा है.
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टैलेंटेड खिलाड़ियों को प्लेटफार्म उपलब्ध कराएगी सरकार: ‘खेलेगा खिलता कमल और खेलेगा मध्यप्रदेश’ कैंपेन के तहत अगले महीने से पूरे मध्यप्रदेश में पारंपरिक आउटडोर गेम्स का अगाज होगा, इसकी ज़िम्मेदारी संगठन और सरकार ने भाजयुमो को सौंपी है ये गेम्स पूरे जनवरी 2023 तक प्रदेश के प्रत्येक शहर नगर की गली गली में आयोजित होंगे जिनमें से इन खेलों के टैलेंटेड खिलाड़ियों को आगे लाया जाएगा, इसके बाद इन खिलाड़ियों को सरकार पहचान देने में अपनी भूमिका अदा करेगी जिसके लिए राजधानी भोपाल में एक बड़े आयोजन के साथ फाइनल मुकाबले होंगे. साथ ही विजेताओं को पुरस्कार वितरण भी किए जाएँगे.