ETV Bharat / state

गुमनामी के स्याह अंधेरे में गुम हो रहा 11वीं सदी में बना देवेश्वर महादेव मंदिर

author img

By

Published : Feb 8, 2020, 11:42 AM IST

Updated : Feb 8, 2020, 3:23 PM IST

भिंड में पांडवकालीन एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जिसे आज भी उस मसीहा का इंतजार है, जो उसकी पहचान को नई उड़ान दे सके क्योंकि 11वीं सदी में बना देवेश्वर महादेव मंदिर गुमनामी के अंधेरे में गुम होता जा रहा है.

shivling is becoming anonymous
गुम होती पहचान

भिंड। पांडवों के अज्ञातवास की तरह पांडरी गांव में मौजूद ये धरोहर भी गुमनामी के अंधेरे में गुम होता जा रहा है, इसी गांव में पांडवों ने अज्ञातवास के दिन काटे थे, उसी दौरान भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी, जहां बाद में मंदिर तामीर कर दिया गया, जो देवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है, लेकिन वक्त के साथ इसकी पहचान खत्म होती जा रही है. भिंड जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पांडरी गांव. इस गांव का नाम पांडरी इसलिए पड़ा क्योंकि महाभारत काल में पांडव अज्ञातवास के दौरान यहीं ठहरे थे. यही वजह है कि पांडू नगरी अब पांडरी के नाम से प्रचलित है.

गुम होती पहचान

आम तौर पर शिवलिंग का आकार गोल होता है, लेकिन पांडरी में स्थापित शिवलिंग का आकार अष्टकोणीय है, जो अपने आप में अद्भुत है. ग्रामीण बताते हैं कि पुरातत्व विभाग ने शिवलिंग के आकार का पता लगाने का प्रयास भी किया था, लेकिन आज तक इसका पता नहीं लग सका कि शिवलिंग की लंबाई कितनी है. मुगलों ने भी इस शिवलिंग को ले जाने के अनगिनत प्रयास किए, लेकिन सफल नहीं हो पाए. जिससे नाराज मुगलों ने मंदिर की कलाकृतियों और मूर्तियों को खंडित कर दिया था.

ग्रामीणों का कहना है कि ये मंदिर देवेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है, जो पांडरी गांव में स्थित है. ऐसा मानना है कि महाभारत काल में पांडवों ने यहां पूजा-अर्चना की थी और भीम ने विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी. इस ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण तब हुआ, जब पांडव एक साल के लिए अज्ञातवास पर यहां आए थे, लेकिन ये पुरानी धरोहर आज भी अपनी पहचान को तरस रहा है और उस मसीहा का इंतजार कर रहा है, जो उसकी पहचान को नई उड़ान दे सके.

पुरातत्व विशेषज्ञ वीरेंद्र पांडेय का कहना है कि ग्वालियर से कई बार पुरातत्व अधिकारी यहां का निरीक्षण किए हैं, लेकिन अभी तक संरक्षित नहीं हो पाया है. मंदिर के आसपास कई अवशेष मिले थे, जिससे पता चलता है कि वह 11वीं शताब्दी में निर्मित हुआ है. ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने चक्र नगरी से ऋषिकेश मैदान तक का अज्ञातवास का सफर तय किया था. पांडरी गांव से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चक्रनगर उत्तर प्रदेश में स्थित है. अज्ञातवास के दौरान भीम ने 'कीचक' को मारा था, जिसके बाद से ही इस जगह का नाम चक्रनगर पड़ा था.

भिंड। पांडवों के अज्ञातवास की तरह पांडरी गांव में मौजूद ये धरोहर भी गुमनामी के अंधेरे में गुम होता जा रहा है, इसी गांव में पांडवों ने अज्ञातवास के दिन काटे थे, उसी दौरान भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी, जहां बाद में मंदिर तामीर कर दिया गया, जो देवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है, लेकिन वक्त के साथ इसकी पहचान खत्म होती जा रही है. भिंड जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पांडरी गांव. इस गांव का नाम पांडरी इसलिए पड़ा क्योंकि महाभारत काल में पांडव अज्ञातवास के दौरान यहीं ठहरे थे. यही वजह है कि पांडू नगरी अब पांडरी के नाम से प्रचलित है.

गुम होती पहचान

आम तौर पर शिवलिंग का आकार गोल होता है, लेकिन पांडरी में स्थापित शिवलिंग का आकार अष्टकोणीय है, जो अपने आप में अद्भुत है. ग्रामीण बताते हैं कि पुरातत्व विभाग ने शिवलिंग के आकार का पता लगाने का प्रयास भी किया था, लेकिन आज तक इसका पता नहीं लग सका कि शिवलिंग की लंबाई कितनी है. मुगलों ने भी इस शिवलिंग को ले जाने के अनगिनत प्रयास किए, लेकिन सफल नहीं हो पाए. जिससे नाराज मुगलों ने मंदिर की कलाकृतियों और मूर्तियों को खंडित कर दिया था.

ग्रामीणों का कहना है कि ये मंदिर देवेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है, जो पांडरी गांव में स्थित है. ऐसा मानना है कि महाभारत काल में पांडवों ने यहां पूजा-अर्चना की थी और भीम ने विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी. इस ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण तब हुआ, जब पांडव एक साल के लिए अज्ञातवास पर यहां आए थे, लेकिन ये पुरानी धरोहर आज भी अपनी पहचान को तरस रहा है और उस मसीहा का इंतजार कर रहा है, जो उसकी पहचान को नई उड़ान दे सके.

पुरातत्व विशेषज्ञ वीरेंद्र पांडेय का कहना है कि ग्वालियर से कई बार पुरातत्व अधिकारी यहां का निरीक्षण किए हैं, लेकिन अभी तक संरक्षित नहीं हो पाया है. मंदिर के आसपास कई अवशेष मिले थे, जिससे पता चलता है कि वह 11वीं शताब्दी में निर्मित हुआ है. ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने चक्र नगरी से ऋषिकेश मैदान तक का अज्ञातवास का सफर तय किया था. पांडरी गांव से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चक्रनगर उत्तर प्रदेश में स्थित है. अज्ञातवास के दौरान भीम ने 'कीचक' को मारा था, जिसके बाद से ही इस जगह का नाम चक्रनगर पड़ा था.

Intro:पीयूष श्रीवास्तव, रिपोर्टर, भिंड

द्वापर युग का एक ऐसा प्राचीन मंदिर जो आज गुमनामी में खोया हुआ है महाभारत काल से भोलेनाथ का यह मंदिर भिंड के पांडरी गांव में स्थित है किवदंति है कि इसकी स्थापना खुद पांच पांडवों में से एक महाबली भीम के द्वारा करवाई गई थी और तब से आज तक यह शिवलिंग उसी जगह स्थित है और देवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।


Body:भिंड जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पांडरी गांव इस गांव का नाम पांडरी इसलिए पड़ा क्योंकि किवदंती है कि इससे पहले पांडू नगरी के नाम से जाना जाता था महाभारत युद्ध से पहले जब पांडवों द्वारा अज्ञातवास काटा जा रहा था उस वक्त पांडव इस जगह पर आकर रुके थे क्योंकि वे शिव भक्त थे इसलिए पांडू नगरी में उन्होंने एक शिव मंदिर का निर्माण किया और महाबली भीम ने खुद इस शिवलिंग का निर्माण कराया जिसे आज देवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है

अमूमन विश्व में बनी हर शिवलिंग का आकार गोल है लेकिन पांडू नगरी में स्थापित देवेश्वर भोलेनाथ शिवलिंग का आकार अष्टकोणीय है जो अपने आप में एक अद्भुत कला प्रदर्शित करती है यहां रहने वाले लोग बताते हैं कि पुरातत्व विभाग द्वारा काफी समय पहले इस शिवलिंग की गहराई का पता लगाने का प्रयास भी किया गया था लेकिन आज तक इस बात का कोई पता नहीं लगा सका है कि शिव लिंग की लंबाई कितनी है पांडरी गांव के लोग बताते हैं कि अंग्रेजों ने भी अपने जमाने में इस शिवलिंग को ले जाने की कोशिश की थी लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए तो इस मंदिर की कई अद्भुत कलाएं प्राचीन कलाओं और मूर्तियों को खंडित कर गए

स्थानीय लोग बताते हैं कि कि जब पांडवों ने अपना अज्ञातवास शुरू किया तो चक्र नगरी से ऋषिकेश मैदान तक उन्होंने अज्ञातवास का सफर तय किया था पांडू नगरी से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चकरनगर उत्तर प्रदेश में पड़ता है द्वापर युग में अपने अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने चकरनगर में एक राक्षस जिसे कीचक नाम से जाना जाता था उसे मारा था तब से ही उस जगह का नाम चकरनगर पड़ा।




Conclusion:इस मंदिर के आसपास भी कई अवशेष मिले हैं कई छोटे-छोटे शिवलिंग मिले हैं जो हजार साल से भी पुराने हैं लेकिन उनके संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी पुरातत्व विभाग द्वारा उनको अपने संरक्षण में लेने की कोशिश तो की गई लेकिन जब स्थानीय लोगों द्वारा मामले का विरोध किया गया तो इस पुरातत्व संपदा को इस गांव में ही रहने के लिए कहा गया जिसके बाद पुरातत्व विभाग ने दोबारा उस जगह पर मुड़कर भी नहीं देखा और ना ही शिवलिंग को संरक्षण दिया विभाग के अधिकारी यह तो मानते हैं कि उस जगह पर द्वापर युग के अवशेष मिलते हैं लेकिन संरक्षण के अभाव में उस जगह को पर्यटन स्थल में नहीं बदला जा सका है।

ओपनिंग पीटीसी-
121- स्थानीय लोग
बाइट- ग्रामीण
बाइट- वीरेंद्र पांडेय, पुरातत्व विशेषज्ञ
क्लोजिंग पीटीसी- पीयूष श्रीवास्तव, संवाददाता
Last Updated : Feb 8, 2020, 3:23 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.