भोपाल। दो साल पहले आज ही के दिन मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभालने वाले सीएम कमलनाथ ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाई थी. कमलनाथ की सरकार को महज 15 महीने बीते थे कि सिंधिया समर्थक विधायकों ने बागी होकर कमलनाथ की सरकार गिरा दी. अब उनके सामने आगामी 5 महीनों के भीतर होने वाले 24 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव को लेकर बड़ी जिम्मेदारी है. साथ ही सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने और कार्यकर्ताओं में जोश भरने की भी चुनौती रहेगी.
सत्ता से बेदखल होने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ उप चुनाव की तैयारियों में दिन रात एक कर रहे हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि एक बार फिर कमलनाथ सत्ता में वापसी करेंगे और मध्य प्रदेश प्रगति के पथ पर दौड़ेगा. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर जहां कमलनाथ की कई उपलब्धियां हैं तो कई ऐसे पहलू भी है,जो निराशाजनक हैं.
जब कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तो कांग्रेस संगठन हताशा और निराशा के दौर से गुजर रहा था. कमलनाथ के सामने चुनौती थी कि कैसे संगठन को खड़ा किया जाए और कैसे निराश हो चुके कार्यकर्ताओं में जोश भरा जाए. इसके लिए कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही भोपाल में डेरा डाला और प्रदेश कांग्रेस संगठन में जान फूटने की कवायद में जुट गए.
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद जनता की नब्ज टटोली
प्रदेश अध्यक्ष बनते ही कमलनाथ रोजाना सुबह 11 बजे मध्य प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंच जाते थे और देर रात तक संगठन को मजबूत करने और 2018 विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे रहते थे. कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सामाजिक, कर्मचारी व्यापारिक, औद्योगिक और तमाम तरह के संगठनों से मुलाकात की. उनकी परेशानियों को समझा और मध्यप्रदेश में वह क्या चाहते हैं, इसके बारे में जाना.
शिवराज सरकार की कमजोरियों को बनाया था मुद्दा
प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को ध्यान रखते हुए उन्होंने विधानसभा वार कई सर्वे कराकर कांग्रेस की चुनावी तैयारियों को अमली जामा पहनाया. उन्होंने अपने घोषणापत्र को वचन पत्र के रूप में पेश किया. मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सरकार की कमजोरियों का आंकलन कर उन वर्गों पर फोकस किया, जो शिवराज सरकार द्वारा अछूते थे. खासकर किसानों की परेशानियों, महिला अपराध, युवाओं की बेरोजगारी जैसे मुद्दे पर उन्होंने फोकस किया. शिवराज सरकार द्वारा की गई हजारों घोषणा के अधूरे रहने को उन्होंने मुद्दा बनाया और जनता के सामने मध्य प्रदेश को विकास के पथ पर ले जाने का रोडमैप पेश किया.
सरकार बनाने में ऐसे हुए थे कामयाब
कमलनाथ ने जाति और वर्ग के आधार पर विधानसभा वार समीकरणों को ध्यान में रखकर वहां की समस्याओं को समझा और कांग्रेस के प्रत्याशी के चयन में भरपूर सावधानी बरती. नतीजा यह हुआ कि मध्य प्रदेश में कांग्रेसी भले ही बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई और महज 2 सीटों से पीछे रह गई, लेकिन कमलनाथ अपनी सरकार बनाने में कामयाब रहे.
मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ का प्रदर्शन
सरकार बनते ही किसानों की कर्ज माफी, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना की राशि 28 हजार बढ़ाकर 51 हजार करने जैसे फैसले लेकर जनता के दिलों में राज किया. मध्यप्रदेश की खस्ता आर्थिक हालत को देखते हुए शुरुआती एक साल में उन्होंने अपनी ब्रांडिंग और प्रचार से दूर रहते हुए खजाने को मजबूत करने की कोशिश की.
अपनों से धोखा खा गए कमलनाथ
मुख्यमंत्री बनते ही कमलनाथ के सामने लोकसभा चुनाव की चुनौती आ गई और काफी निराशाजनक प्रदर्शन के कारण उनके नेतृत्व पर सवाल भी खड़े हुए, लेकिन सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. कमलनाथ ने सरकार को जन हितैषी बनाने और विकास के पद पर दौड़ाने के लिए कई कार्य किए, लेकिन अपने ही साथियों की दगाबाजी के चलते कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा.
अब 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की बड़ी जिम्मेदारी
अब कमलनाथ के सामने 24 विधानसभा उपचुनावों की चुनौती है. कांग्रेस को इन उपचुनाव में ऐसा प्रदर्शन करना होगा कि वह एक बार फिर सत्ता हासिल करने में कामयाब हो. इसके लिए कमलनाथ दोबारा दिन रात मेहनत कर रहे हैं. एक-एक सीट पर संगठन को मजबूत करने के साथ कांग्रेस को एकजुट बनाने और बेहतर प्रत्याशी के चयन में जुटे हुए हैं. उनके नेतृत्व में कांग्रेस को भरोसा है कि उपचुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी.