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रास्ता भटक कर 2 हजार फीट गहरी खाई में 3 दिन तक फंसा रहा 70 साल का बुजुर्ग, जानें भूख-प्यास, जंगली जानवरों और बारिश में कैसे किया सर्वाइव

भिंड का एक बुजुर्ग बीते कुछ दिन पहले तीर्थ पर गुजरात गए लेकिन वहां ऐसे रास्ता भटके कि वे दो हजार फीट गहरी खाई में पहुंच गए.. तीन दिन बाद उन्हें रेस्क्यू किया गया लेकिन ये तीन दिन उनके जीवन के लिए किसी नरक से कम नहीं थे. इन तीन दिनों में उनके साथ क्या कुछ बीत उस घने जंगल मे वे किन हालातों में रहे, इस बारे में उन्होंने ETV Bharat से खास बातचीत में बताया.

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Published : Jul 21, 2023, 2:45 PM IST

bhind 75 years old man madan mohan
मदन मोहन जैन का सफल रेस्क्यू
मदन मोहन जैन का सफल रेस्क्यू

भिंड। एक बुज़ुर्ग तीर्थ पर एक पहाड़ पर गया, लौटते समय वह रास्ता भटका. न खाना न पानी जब तक अहसास हुआ तब तक वह काफी दूर घने जंगल में पहुंच चुका था. प्यास की तड़प उसे आगे बढ़ने को मजबूर करती गयी और वह झरने की तलाश में बारिश में फिसलता गिरता पड़ता झाड़ियों कांटों के बीच से रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ा. दो दिन बीत गए वो हिम्मत हार चुका था न पानी मिला न रास्ता. हिम्मत ने भी जवाब दे दिया तो वह कटीली झाड़ियों में ही गिर गया. दो दिन बाद एक टीम उस तक पहुंची और उसे रेस्क्यू कर लिया गया..

bhind 75 years old man madan mohan
मदन मोहन जैन का सफल रेस्क्यू

सुनने में ये कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट लगती है लेकिन असल मे हकीकत ही है. ये वो घटना है जो कुछ दिन पहले ही मध्यप्रदेश के भिंड जिले में रहने वाले एक बुजुर्ग के साथ गुजरात में घटी.. फूप कस्बे के रहने वाले 70 वर्षीय मदन मोहन जैन अब सकुशल घर वापस आ चुके हैं. जीवन का एक ऐसा तजुर्बा लेकर जिसने उन्हें जिंदगी के असल मायने सिखा दिए. दो दिनों तक जंगल के बीच दो हजार फीट गहरी खाई में पड़े रहे. बुजुर्ग मदन मोहन के साथ क्या कुछ घटा और कैसे उनके साथ ये परिस्थित बनी इस बारे में उन्होंने ETV भारत के साथ खास चर्चा की.

पूरी कहानी बुजुर्ग मदन मोहन जैन की जुबानी: जुलाई का महीना शुरू हुआ ही था फूप में भी आस पड़ोस और समाज के लोगों का एक 24 सदस्यी दल गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित गिरनार पहाड़ी पर स्थित तीर्थकर भगवन देवादिदेव 1008 नेमिनाथ भगवान की वंदना के लिए रवाना हुआ. जिसमें मैं ( मदन मोहन जैन) भी था. हम चार जुलाई को गिरनार पहुंचे जहां धर्मशाला में रुके. 5 जुलाई की सुबह नहा धो कर अपने बेटे और अन्य लोगों के साथ 10 हजार सीढ़ियां चढ़ कर वंदना करने पहुंचे दर्शन और वंदना बहुत अच्छे स्व हो गयी. इसके बाद हम वापस लौटने लगे, मन में था कि धर्मशाला पहुंच कर कुछ भोजन पानी करना है क्योंकि बस के सफर में भी कुछ खाया पीया नहीं था. जल्दबाजी में बाकी लोग पीछे छूट गए थे. मैं आराम से 8 हजार सीढ़ियां उतर चुका था दो हजार सीढ़ियां बाकी थी लेकिन अचानक जाने क्या हुआ मुझे आगे का रास्ता दिखायी नहीं दिया. लगा जैसे सीढ़ियां खत्म हो गयी हैं आगे एक पगडंडी दिखाई दी. जिस पर सफेद रंग से कुछ चिन्ह बने हुए थे. मैं उसे रास्ता समझ कर वहीं आगे बढ़ गया. लेकिन, काफी चलने पर भी कुछ समझ नहीं आ रहा था रास्ता भी खत्म हो गया तो एक और रास्ता दिखा तो उस ओर बढ़ लिए समझ आया की रास्ता भटक गए हैं.

bhind 75 years old man madan mohan
परिवार के साथ मदन मोहन जैन

झोपड़ी में किया आराम, जंगली सुअर से हुआ सामना: प्यास भी लग रही थी तो रुक कर आराम करने की सोची वहां एक झोपड़ी दिखाई दी जिसमे कुछ बर्तन रखे थे. शायद वहां कोई रहता था सोच जब कोई आएगा तो उसे कुछ पैसे देकर खाने के लिए उसी से कुछ सामग्री ले लूंगा. बारिश भी हो रही थी तो आराम करने के लिए वहीं रुक गया. कुछ देर बाद वहां एक जंगली सुअर अपने कुछ बच्चों के साथ आ गया. जंगली होने के चलते उससे डर लगा लेकिन वह थोड़ी देर में आगे बढ़ गया. धीरे धीरे रात होने लगी थी झोपड़ी में भी कोई नहीं आया तो वहीं आंख लग गयी.

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हिम्मत ने भी दे दिया था जवाब, कटीली झाड़ियों में पड़े रहे: रोजमर्रा आदत होने से सुबह चार बजे अंधेरे में नींद खुल गयी. पीने के लिए पानी नहीं था प्यास लग रही थी लेकिन पास ही झरने जैसी आवाज आ रही थी. पानी की तलाश में आगे बढ़ा तो रास्ता नहीं था ढलान थी जिसमें कटीली झाड़ियां और घने जंगल पेड़ थे किसी तरह उनके बीच से रास्ता बनाते हुए आगे बढ़े. हर तरफ चोट लग रही थी कांटो वाली झाड़ियों की वजह से कपड़े फट गए थे गिरते पड़ते आगे बढ़ता जा रहा था लेकिन कहीं भी झरना नहीं दिखाई दे रहा था. मैं काफी नीचे पहुंच गया था पूरा लहू लुहान हो चुका था. प्यास दर्द और थकान से स्थिति खराब हो चुकी थी घने जंगल मे उस खाई में मैं अकेला था. हिम्मत जवाब दे गई थी. अब एक कदम चलने की भी हिम्मत नहीं थी वहीं कटीली टहनियों के बीच गिर पड़ा दर्द हो रहा था लेकिन शरीर और हिम्मत दोनों कुछ करने नहीं दे रही थी.

bhind 75 years old man madan mohan
पुलिस और रेस्क्यू टीम के साथ मदन मोहन जैन

दिमागी भ्रम ने दिखाए फल, मकान और लोग: सुबह हुई फिर रात हुई बारिश होती रही मैं वही पड़ा रहा फिर अचानक देखा तो पास में झरना बह रहा था उसके उस पार कुछ घर बने थे, जहां मंडी लगी थी उनके पास केले संतरे और कई फल थे. खीरे थे खाने के लिए बहुत कुछ था, मैने उन्हें किसी तरह आवाज दी और कहा कि मुझसे जितने चाहो पैसे ले लो और थोड़े फल और झरने से एक बोतल पानी दे जाओ मेरी हालत नहीं है कि वहां आकर ले सकूं लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. सब अपने काम मे लगे रहे मैं चिल्लाता रहा लेकिन किसी ने ध्यान नही दिया.

देवदूत बनकर बन कर आये, हेलमेट से पिलाया पानी: धीरे धीरे में सो गया तभी ऐसा लग की किसी ने आवाज लगाई.. मदन मोहन.. मैने सुना और जवाब दिया दोबारा आवाज आई 'कहां हो आप'.. मैने कहां यहां हुं मुझे नहीं पता कहां लेकिन यहां पर हूं लेटा हूं आ नहीं सकता, मन में एक आस थी कि कोई ढूंढता हुआ आ गया है. फिर किसी तरह आवाज से अन्दाजा लगते हुए कुछ फौजी जैसे लोग झाड़ियों को काटते हुए रास्ता बनाते हुए मेरे पास आये. उनसे पूछा कि पानी लाये हो तो जवाब मिला कि आपके पानी का इंतज़ाम करने ही तो आये हैं. इसके बाद वो चार लोग थे मुझे झाड़ियों से निकल और रास्ता बनाते हुए नीचे की तरफ आगे बढ़ने लगे हम धीरे धीरे एक झरने के पास पहुचे तो थोड़ी राहत मिली. उनमें से एक नए अपना हेलमेट उतार कर झरने से पानी भरा और मुझे पिलाया. करीब दो से तीन लीटर पानी पिया होगा. उन्होंने पूछा कि अब ठीक है.

रेस्क्यू में लगा 12 घंटे से अधिक का समय: पानी पीने के बाद मुझे एहसास हुआ कि झरने के पास न तो कोई मकान था, न बाजार वह तो एक भ्रम मात्र था. उन लोगों दोबारा रास्ता बनाने शुरू किया. झाड़ियों पेड़ों को काटते हुए आगे बढ़े और 7 जुलाई की सुबह करीब 10 बजे हम वापस उस जगह पहुंच गए जहां से भटके थे. इसके बाद वो रेस्क्यू वाले उन्हें धर्मशाला ले कर गए जहां पहले एक दुकान पर चाय बिस्किट दिया. इसके बाद धर्मशाला छोड़ा. वहां सभी लोग इंतजार कर रहे थे हालात खराब थी खून खचर और चोट लगी थी इसलिए रेस्क्यू टीम के लोग अस्पताल ले गए और मरहम पट्टी कराई वहां से लौट कर अब अपने घर आ गये हैं. (जैसा कि बुजुर्ग मदन मोहन जैन ने चर्चा में बताया)

जाको रखे साईंया, मार सके न कोय.. ये कहावत मदन मोहन जैन पर बिल्कुल सटीक बैठती है. जहां जरा सा गिरने पर इस उम्र में बुज़ुर्गों की हड्डियां टूट जाती हैं वहां तीन दिनों तक अपने दर्द, भूख और प्यास के आगे भी मदन मोहन ने घुटने नही टेके विषम परिस्थियों में भी दो हजार फीट गहरी खाई से जिंदा निकले ये बुजुर्ग आज की पीढ़ी के लिए एक मिसाल बन चुके हैं.

मदन मोहन जैन का सफल रेस्क्यू

भिंड। एक बुज़ुर्ग तीर्थ पर एक पहाड़ पर गया, लौटते समय वह रास्ता भटका. न खाना न पानी जब तक अहसास हुआ तब तक वह काफी दूर घने जंगल में पहुंच चुका था. प्यास की तड़प उसे आगे बढ़ने को मजबूर करती गयी और वह झरने की तलाश में बारिश में फिसलता गिरता पड़ता झाड़ियों कांटों के बीच से रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ा. दो दिन बीत गए वो हिम्मत हार चुका था न पानी मिला न रास्ता. हिम्मत ने भी जवाब दे दिया तो वह कटीली झाड़ियों में ही गिर गया. दो दिन बाद एक टीम उस तक पहुंची और उसे रेस्क्यू कर लिया गया..

bhind 75 years old man madan mohan
मदन मोहन जैन का सफल रेस्क्यू

सुनने में ये कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट लगती है लेकिन असल मे हकीकत ही है. ये वो घटना है जो कुछ दिन पहले ही मध्यप्रदेश के भिंड जिले में रहने वाले एक बुजुर्ग के साथ गुजरात में घटी.. फूप कस्बे के रहने वाले 70 वर्षीय मदन मोहन जैन अब सकुशल घर वापस आ चुके हैं. जीवन का एक ऐसा तजुर्बा लेकर जिसने उन्हें जिंदगी के असल मायने सिखा दिए. दो दिनों तक जंगल के बीच दो हजार फीट गहरी खाई में पड़े रहे. बुजुर्ग मदन मोहन के साथ क्या कुछ घटा और कैसे उनके साथ ये परिस्थित बनी इस बारे में उन्होंने ETV भारत के साथ खास चर्चा की.

पूरी कहानी बुजुर्ग मदन मोहन जैन की जुबानी: जुलाई का महीना शुरू हुआ ही था फूप में भी आस पड़ोस और समाज के लोगों का एक 24 सदस्यी दल गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित गिरनार पहाड़ी पर स्थित तीर्थकर भगवन देवादिदेव 1008 नेमिनाथ भगवान की वंदना के लिए रवाना हुआ. जिसमें मैं ( मदन मोहन जैन) भी था. हम चार जुलाई को गिरनार पहुंचे जहां धर्मशाला में रुके. 5 जुलाई की सुबह नहा धो कर अपने बेटे और अन्य लोगों के साथ 10 हजार सीढ़ियां चढ़ कर वंदना करने पहुंचे दर्शन और वंदना बहुत अच्छे स्व हो गयी. इसके बाद हम वापस लौटने लगे, मन में था कि धर्मशाला पहुंच कर कुछ भोजन पानी करना है क्योंकि बस के सफर में भी कुछ खाया पीया नहीं था. जल्दबाजी में बाकी लोग पीछे छूट गए थे. मैं आराम से 8 हजार सीढ़ियां उतर चुका था दो हजार सीढ़ियां बाकी थी लेकिन अचानक जाने क्या हुआ मुझे आगे का रास्ता दिखायी नहीं दिया. लगा जैसे सीढ़ियां खत्म हो गयी हैं आगे एक पगडंडी दिखाई दी. जिस पर सफेद रंग से कुछ चिन्ह बने हुए थे. मैं उसे रास्ता समझ कर वहीं आगे बढ़ गया. लेकिन, काफी चलने पर भी कुछ समझ नहीं आ रहा था रास्ता भी खत्म हो गया तो एक और रास्ता दिखा तो उस ओर बढ़ लिए समझ आया की रास्ता भटक गए हैं.

bhind 75 years old man madan mohan
परिवार के साथ मदन मोहन जैन

झोपड़ी में किया आराम, जंगली सुअर से हुआ सामना: प्यास भी लग रही थी तो रुक कर आराम करने की सोची वहां एक झोपड़ी दिखाई दी जिसमे कुछ बर्तन रखे थे. शायद वहां कोई रहता था सोच जब कोई आएगा तो उसे कुछ पैसे देकर खाने के लिए उसी से कुछ सामग्री ले लूंगा. बारिश भी हो रही थी तो आराम करने के लिए वहीं रुक गया. कुछ देर बाद वहां एक जंगली सुअर अपने कुछ बच्चों के साथ आ गया. जंगली होने के चलते उससे डर लगा लेकिन वह थोड़ी देर में आगे बढ़ गया. धीरे धीरे रात होने लगी थी झोपड़ी में भी कोई नहीं आया तो वहीं आंख लग गयी.

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हिम्मत ने भी दे दिया था जवाब, कटीली झाड़ियों में पड़े रहे: रोजमर्रा आदत होने से सुबह चार बजे अंधेरे में नींद खुल गयी. पीने के लिए पानी नहीं था प्यास लग रही थी लेकिन पास ही झरने जैसी आवाज आ रही थी. पानी की तलाश में आगे बढ़ा तो रास्ता नहीं था ढलान थी जिसमें कटीली झाड़ियां और घने जंगल पेड़ थे किसी तरह उनके बीच से रास्ता बनाते हुए आगे बढ़े. हर तरफ चोट लग रही थी कांटो वाली झाड़ियों की वजह से कपड़े फट गए थे गिरते पड़ते आगे बढ़ता जा रहा था लेकिन कहीं भी झरना नहीं दिखाई दे रहा था. मैं काफी नीचे पहुंच गया था पूरा लहू लुहान हो चुका था. प्यास दर्द और थकान से स्थिति खराब हो चुकी थी घने जंगल मे उस खाई में मैं अकेला था. हिम्मत जवाब दे गई थी. अब एक कदम चलने की भी हिम्मत नहीं थी वहीं कटीली टहनियों के बीच गिर पड़ा दर्द हो रहा था लेकिन शरीर और हिम्मत दोनों कुछ करने नहीं दे रही थी.

bhind 75 years old man madan mohan
पुलिस और रेस्क्यू टीम के साथ मदन मोहन जैन

दिमागी भ्रम ने दिखाए फल, मकान और लोग: सुबह हुई फिर रात हुई बारिश होती रही मैं वही पड़ा रहा फिर अचानक देखा तो पास में झरना बह रहा था उसके उस पार कुछ घर बने थे, जहां मंडी लगी थी उनके पास केले संतरे और कई फल थे. खीरे थे खाने के लिए बहुत कुछ था, मैने उन्हें किसी तरह आवाज दी और कहा कि मुझसे जितने चाहो पैसे ले लो और थोड़े फल और झरने से एक बोतल पानी दे जाओ मेरी हालत नहीं है कि वहां आकर ले सकूं लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. सब अपने काम मे लगे रहे मैं चिल्लाता रहा लेकिन किसी ने ध्यान नही दिया.

देवदूत बनकर बन कर आये, हेलमेट से पिलाया पानी: धीरे धीरे में सो गया तभी ऐसा लग की किसी ने आवाज लगाई.. मदन मोहन.. मैने सुना और जवाब दिया दोबारा आवाज आई 'कहां हो आप'.. मैने कहां यहां हुं मुझे नहीं पता कहां लेकिन यहां पर हूं लेटा हूं आ नहीं सकता, मन में एक आस थी कि कोई ढूंढता हुआ आ गया है. फिर किसी तरह आवाज से अन्दाजा लगते हुए कुछ फौजी जैसे लोग झाड़ियों को काटते हुए रास्ता बनाते हुए मेरे पास आये. उनसे पूछा कि पानी लाये हो तो जवाब मिला कि आपके पानी का इंतज़ाम करने ही तो आये हैं. इसके बाद वो चार लोग थे मुझे झाड़ियों से निकल और रास्ता बनाते हुए नीचे की तरफ आगे बढ़ने लगे हम धीरे धीरे एक झरने के पास पहुचे तो थोड़ी राहत मिली. उनमें से एक नए अपना हेलमेट उतार कर झरने से पानी भरा और मुझे पिलाया. करीब दो से तीन लीटर पानी पिया होगा. उन्होंने पूछा कि अब ठीक है.

रेस्क्यू में लगा 12 घंटे से अधिक का समय: पानी पीने के बाद मुझे एहसास हुआ कि झरने के पास न तो कोई मकान था, न बाजार वह तो एक भ्रम मात्र था. उन लोगों दोबारा रास्ता बनाने शुरू किया. झाड़ियों पेड़ों को काटते हुए आगे बढ़े और 7 जुलाई की सुबह करीब 10 बजे हम वापस उस जगह पहुंच गए जहां से भटके थे. इसके बाद वो रेस्क्यू वाले उन्हें धर्मशाला ले कर गए जहां पहले एक दुकान पर चाय बिस्किट दिया. इसके बाद धर्मशाला छोड़ा. वहां सभी लोग इंतजार कर रहे थे हालात खराब थी खून खचर और चोट लगी थी इसलिए रेस्क्यू टीम के लोग अस्पताल ले गए और मरहम पट्टी कराई वहां से लौट कर अब अपने घर आ गये हैं. (जैसा कि बुजुर्ग मदन मोहन जैन ने चर्चा में बताया)

जाको रखे साईंया, मार सके न कोय.. ये कहावत मदन मोहन जैन पर बिल्कुल सटीक बैठती है. जहां जरा सा गिरने पर इस उम्र में बुज़ुर्गों की हड्डियां टूट जाती हैं वहां तीन दिनों तक अपने दर्द, भूख और प्यास के आगे भी मदन मोहन ने घुटने नही टेके विषम परिस्थियों में भी दो हजार फीट गहरी खाई से जिंदा निकले ये बुजुर्ग आज की पीढ़ी के लिए एक मिसाल बन चुके हैं.

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