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वक्त के थपेड़ों में गुम होता अटेर किला... कब जागेगा पुरातत्व विभाग ?

भिंड का अटेर किला कभी अपनी शानों-शौकत के लिए दूर दूर तक मशहूर था. देवगिरी की पहाड़ी पर बना अटेर किला, आज भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. बेशक आज ये किला अपनी भव्यता खोता जा रहा है. लेकिन इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण में पुरातत्व विभाग फिसड्डी साबित हो रहा है.

Attar fort of Bhadavar kings of Bhind
भिंड के भदावर राजाओं का अटेर किला
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Published : Dec 9, 2019, 9:57 PM IST

भिंड। मध्यप्रदेश के छोर पर बना भिंड का अटेर किला कभी अपनी शानों-शौकत के लिए मशहूर था. देवगिरी की पहाड़ी पर बना अटेर किला आज भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. बेशक आज ये किला वक्त के थपेडों में अपनी भव्यता खोते जा रहा है. लेकिन इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण में पुरातत्व विभाग फिसड्डी साबित हो रहा है.

भदावर राजाओं ने कराया था निर्माण
अटेर के किले का निर्माण भदौरिया राजा बदन सिंह ने 1664 ईसवी में शुरू करवाया था. भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले "बधवार" कहां जाता था. गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित ये किला भिंड जिले से करीब 35 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है. चंबल नदी के किनारे बनाया दुर्ग भदावर राजाओं के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां करता है. भदावर राजाओं के इतिहास में इसका अपना ही महत्व है. ये हिंदू और मुगल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता है.

भिंड के भदावर राजाओं का अटेर किला

देवगिरी के नाम से भी जाना जाता है अटेर किला

अटेर के किले को लेकर सैकड़ों किवदंतियां कई सालों से विद्यमान है. देवगिरी की पहाड़ी पर बने अटेर किले को देवगिरी का किला भी कहा जाता है.

महाभारत काल में है देवगिरी का उल्लेख

अटेर का किला खुद में सैकड़ों किवदंतियां, कई सौ किस्सों और न जाने कितने ही रहस्य को छुपाए हुए आज भी आन बान से खड़ा है. महाभारत में जिस देवगिरी पहाड़ी का उल्लेख आता है ये किला उसी पहाड़ी पर है. इसका मूल नाम देवगिरी दुर्ग है.

किले में मौजूद हैं कई नायाब कलाकृतियां
कई इतिहास संजोए अटेर का किला, आज अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. मरम्मत और देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. अटेर किले में एक के बाद एक महल और कलात्मक चित्रों की श्रृंखला उपेक्षा के चलते अस्तित्व खोते जा रहे हैं. आलम ये है कि जिस प्राचीर पर कभी भदावर वंश की विजय पताका फहराया करती थी वहीं आज खंडहर में तब्दील होता जा रहा है.

खजाने की चाहत ने किले को पहुंचाया नुकसान
चंबल नदी से 2 किलोमीटर दूर उत्तरी किनारे पर स्थित अटेर किले का इतिहास करीब 400 साल पुराना बताया जाता है लेकिन खजाने की चाह में लोगों ने अटेर दुर्ग के तलघर और दीवारों को बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है.

पुरातत्व विभाग की अनदेखी
आज जो दुर्दशा अटेर किले की दिख रही है उसके लिए पुरातत्व विभाग माना जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक अधिकारियों की लगातार अनदेखी और उपेक्षा के चलते किला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है. पहले के मुकाबले ना सिर्फ पर्यटकों की संख्या में कमी आई है बल्कि पूरा का पूरा खंडहर में तब्दील होता जा रहा है.

पुरातत्व विशेषज्ञ और जिला म्यूजियम में पदस्थ जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि अटेर किले के जीर्णोद्धार के लिए लगातार भारतीय पुरातत्व विभाग काम कर रहा है. लेकिन कई बार बजट की समस्या के चलते काम में रुकावट आ जाती है.

उन्होंने बताया कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विभाग ने नया प्रारुप के तहत अटेर किले को पर्यटकों के साथ जोड़ने के लिए, ग्वालियर से आगर तक विकसित किया जाएगा.

भिंड। मध्यप्रदेश के छोर पर बना भिंड का अटेर किला कभी अपनी शानों-शौकत के लिए मशहूर था. देवगिरी की पहाड़ी पर बना अटेर किला आज भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. बेशक आज ये किला वक्त के थपेडों में अपनी भव्यता खोते जा रहा है. लेकिन इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण में पुरातत्व विभाग फिसड्डी साबित हो रहा है.

भदावर राजाओं ने कराया था निर्माण
अटेर के किले का निर्माण भदौरिया राजा बदन सिंह ने 1664 ईसवी में शुरू करवाया था. भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले "बधवार" कहां जाता था. गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित ये किला भिंड जिले से करीब 35 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है. चंबल नदी के किनारे बनाया दुर्ग भदावर राजाओं के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां करता है. भदावर राजाओं के इतिहास में इसका अपना ही महत्व है. ये हिंदू और मुगल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता है.

भिंड के भदावर राजाओं का अटेर किला

देवगिरी के नाम से भी जाना जाता है अटेर किला

अटेर के किले को लेकर सैकड़ों किवदंतियां कई सालों से विद्यमान है. देवगिरी की पहाड़ी पर बने अटेर किले को देवगिरी का किला भी कहा जाता है.

महाभारत काल में है देवगिरी का उल्लेख

अटेर का किला खुद में सैकड़ों किवदंतियां, कई सौ किस्सों और न जाने कितने ही रहस्य को छुपाए हुए आज भी आन बान से खड़ा है. महाभारत में जिस देवगिरी पहाड़ी का उल्लेख आता है ये किला उसी पहाड़ी पर है. इसका मूल नाम देवगिरी दुर्ग है.

किले में मौजूद हैं कई नायाब कलाकृतियां
कई इतिहास संजोए अटेर का किला, आज अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. मरम्मत और देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. अटेर किले में एक के बाद एक महल और कलात्मक चित्रों की श्रृंखला उपेक्षा के चलते अस्तित्व खोते जा रहे हैं. आलम ये है कि जिस प्राचीर पर कभी भदावर वंश की विजय पताका फहराया करती थी वहीं आज खंडहर में तब्दील होता जा रहा है.

खजाने की चाहत ने किले को पहुंचाया नुकसान
चंबल नदी से 2 किलोमीटर दूर उत्तरी किनारे पर स्थित अटेर किले का इतिहास करीब 400 साल पुराना बताया जाता है लेकिन खजाने की चाह में लोगों ने अटेर दुर्ग के तलघर और दीवारों को बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है.

पुरातत्व विभाग की अनदेखी
आज जो दुर्दशा अटेर किले की दिख रही है उसके लिए पुरातत्व विभाग माना जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक अधिकारियों की लगातार अनदेखी और उपेक्षा के चलते किला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है. पहले के मुकाबले ना सिर्फ पर्यटकों की संख्या में कमी आई है बल्कि पूरा का पूरा खंडहर में तब्दील होता जा रहा है.

पुरातत्व विशेषज्ञ और जिला म्यूजियम में पदस्थ जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि अटेर किले के जीर्णोद्धार के लिए लगातार भारतीय पुरातत्व विभाग काम कर रहा है. लेकिन कई बार बजट की समस्या के चलते काम में रुकावट आ जाती है.

उन्होंने बताया कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विभाग ने नया प्रारुप के तहत अटेर किले को पर्यटकों के साथ जोड़ने के लिए, ग्वालियर से आगर तक विकसित किया जाएगा.

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