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1933 में बैतूल आये थे गांधी जी, गोठी परिवार ने सहेज कर रखी हैं सभी निशानियां

बैतूल में गांधी जी 1933 में छूआछूत आंदोलन में भाग लेने आए थे. इस दौरान उनका प्रवास गाठी परिवार के निवास पर हुआ था. उनकी याद में गोठी परिवार ने आज भी सारी धरोहर सहेज कर रखी है.

बैतूल में गांधी जी की धरोहर
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Published : Oct 2, 2019, 3:11 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 3:31 PM IST

बैतूल । आज देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मना रहा है.जिले में गांधी जी से जुड़ी हुई यादों को लोगों ने सहेज रखा है. छूआ-छूत के खिलाफ जब पूरे देश में आंदोलन चल रहा था तब गांधी जी एक दिन के लिए शहर में आए थे. जहां उन्होंने ताप्ती नदी के किनारे बारहलिंग मंदिर में पहुंचकर एक जनसभा को संबोधित किया था. इस प्रवास के दौरान गांधी जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व दीपचंद गोठी के यहां रुके थे. गांधी जी की धरोहर को इस परिवार ने आज तक सहेज कर रखा है.

बैतूल में गांधी जी की धरोहर


दरअसल 1933 को गांधी जी ने छुआछूत के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ा था जिसके लिए उन्होंने देश के कोने कोने का भ्रमण कर समाज मे फैली कुरीति को खत्म करने का प्रयास किया था. वह इस आंदोलन में भाग लेने शहर भी पहुंचे थे.गांधी जी ने शहर के प्रवास के दौरान जिस भवन में रात गुजारी थी वह भवन आज भी उनकी यादों में वैसा ही खड़ा हुआ है. गोठी परिवार ने उस पलंग को भी सहेज कर रखा है जिस पर गांधी जी ने रात गुजारी थी.इस दौरान गांधी जी अपने साथ एक चरखा भी लाये थे जो उन्होंने उपहार स्वरूप गोठी परिवार को दिया था । उनकी यह कीमती निशानियां इस परिवार ने आज भी संभाल कर रखी है.


इस प्रवास के दौरान गांधीजी को पता चला कि ताप्ती नदी के किनारे बारहलिंग में एक मंदिर स्थित है जहाँ सर्व समाज को पूजा करने की छूट है . यह बात सुनकर गांधीजी वहां पहुंचे. मंदिर के महंत ने उन्हें बताया कि यहां दलित समाज से लेकर सर्व समाज के लोग पूजा पाठ करते है . यह बात सुनकर वे बहुत खुश हुए और उन्होंने एक जन सभा को संबोधित किया था.

बैतूल । आज देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मना रहा है.जिले में गांधी जी से जुड़ी हुई यादों को लोगों ने सहेज रखा है. छूआ-छूत के खिलाफ जब पूरे देश में आंदोलन चल रहा था तब गांधी जी एक दिन के लिए शहर में आए थे. जहां उन्होंने ताप्ती नदी के किनारे बारहलिंग मंदिर में पहुंचकर एक जनसभा को संबोधित किया था. इस प्रवास के दौरान गांधी जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व दीपचंद गोठी के यहां रुके थे. गांधी जी की धरोहर को इस परिवार ने आज तक सहेज कर रखा है.

बैतूल में गांधी जी की धरोहर


दरअसल 1933 को गांधी जी ने छुआछूत के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ा था जिसके लिए उन्होंने देश के कोने कोने का भ्रमण कर समाज मे फैली कुरीति को खत्म करने का प्रयास किया था. वह इस आंदोलन में भाग लेने शहर भी पहुंचे थे.गांधी जी ने शहर के प्रवास के दौरान जिस भवन में रात गुजारी थी वह भवन आज भी उनकी यादों में वैसा ही खड़ा हुआ है. गोठी परिवार ने उस पलंग को भी सहेज कर रखा है जिस पर गांधी जी ने रात गुजारी थी.इस दौरान गांधी जी अपने साथ एक चरखा भी लाये थे जो उन्होंने उपहार स्वरूप गोठी परिवार को दिया था । उनकी यह कीमती निशानियां इस परिवार ने आज भी संभाल कर रखी है.


इस प्रवास के दौरान गांधीजी को पता चला कि ताप्ती नदी के किनारे बारहलिंग में एक मंदिर स्थित है जहाँ सर्व समाज को पूजा करने की छूट है . यह बात सुनकर गांधीजी वहां पहुंचे. मंदिर के महंत ने उन्हें बताया कि यहां दलित समाज से लेकर सर्व समाज के लोग पूजा पाठ करते है . यह बात सुनकर वे बहुत खुश हुए और उन्होंने एक जन सभा को संबोधित किया था.

Intro:बैतूल ।। आज पूरा देश राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की 150वा जन्मदिवस मना रहा है । बैतूल जिले से भी गांधी जी की यादें जुड़ी हुई है, जब छुवा छूत के खिलाफ पूरे देश मे छेड़ा था तब वे एक दिन के लिए बैतूल जिले में भी रुके थे । जहां उन्होंने ताप्ती नदी के किनारे बारहलिंग पहुचकर कर एक जनसभा को संबोधित किया था । इस प्रवास के दौरान उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी स्व दीपचंद गोठी के यहां रात बिताई थी । गांधीजी की कुछ धरोहरों को आज भी इस परिवार ने सहेज कर रखा है । खास बात यह है कि इस परिवार ने गांधी जी से जुड़ी यादो को आज तक जगजाहिर नही किया ।


Body:दरअसल 1933 गांधी जी ने छुआ छूत के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ा था जिसके लिए उन्होंने देश के कोने कोने का भ्रमण कर समाज मे फैली इस कुरीति को खत्म करने का भरसक प्रयास किया । इस जन आंदोलन के सिलसिले में उनका बैतूल प्रवास हुआ था । गांधी जी ने बैतूल के जिस भवन में रात गुजारी थी वह भवन आज भी उनकी यादों में वैसा ही खड़ा हुआ है । गोठी परिवार ने उस पलंग को भी सहेज कर रखा है जिस पर गांधी जी ने रात गुजारी थी । इस दौरान गांधी जी अपने साथ एक चरखा भी लाये थे जो उन्होंने उपहार स्वरूप गोठी परिवार को दिया था । उनकी यह कीमती निशानियां इस परिवार ने आज भी संभाल कर रखी है ।

बैतूल प्रवास के दौरान गांधीजी को पता चला कि ताप्ती नदी के किनारे बारहलिंग में एक मंदिर स्थित है जहाँ सर्व समाज को पूजा करने की छूट है । यह बात सुनकर गांधीजी वहां पहुचे मंदिर के महंत ने उन्होंने बताया कि यहां दलित समाज से लेकर सर्व समाज के लोग पूजा पाठ करते है । यह बात सुनकर वे बहुत खुश हुए और उन्होंने एक जन सभा को संबोधित किया था ।


Conclusion:बाइट -- अलका गोठी ( सदस्य, गोठी परिवार )
बाइट -- विशाल गोठी ( सदस्य, गोठी परिवार )
बाइट -- रमन गोठी ( सदस्य, गोठी परिवार )
Last Updated : Oct 2, 2019, 3:31 PM IST
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