बैतूल। साधारण सा दिखने वाला बैतूल का बाचा गांव दुनिया के नक्शे पर अब चमक रहा है. आधुनिक गांवों की कतार में सबसे आगे खड़े इस गांव में चूल्हा तो जलता है, लेकिन धुआं नहीं उठता, यहां के लोगों को न घरेलू गैस की जरूरत पड़ती है, और न ही जंगल से लकड़ी काटने की. क्योंकि यहां हर घर में सोलर चूल्हा जलता है. महिलाएं भी खुश हैं कि अब न तो लकड़ी लाने के लिए जंगल जाना पड़ता है और न ही गैस या किरोसिन खत्म होने की चिंता सताती है.
बैतूल जिले का बाचा गांव विश्व का पहला गांव बन गया है, जहां हर घर में सौर ऊर्जा चलित चूल्हों पर खाना पकता है. ये पहल भारत भारती शिक्षा समिति के सौजन्य से की गई है, जिसमें आईआईटी मुंबई की मदद से खास तरह का चूल्हा बनाया गया है, जिस पर महिलाएं दोनों टाइम का खाना आदि बनाती हैं. एक घर में लगे इस सोलर पैनल का खर्च 80 हजार रुपए आया है, गांव के कुल 74 घरों में सोलर चूल्हे से अब खाना पकाया जा रहा है.
सितंबर 2017 में प्रोजेक्ट के तहत गांव में सौर ऊर्जा लगाने का काम शुरू हुआ था, जिसे हाल ही में पूरा कर लिया गया. इतना ही नहीं ये गांव साफ-सफाई, जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण में भी अलग मुकाम हासिल कर चुका है, जिसके लिए कई बार अवार्ड भी मिले हैं. सौर ऊर्जा का उपयोग कर पर्यावरण संरक्षण करने की इस गांव की पहल इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगी.
दुनिया के पहले धुआंरहित आदर्श गांव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन सपनों को उड़ान दिया है, जिसमें उन्होंने सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करने की बात कही थी, सरकार सोलर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी भी दे रही है, ताकि बिजली, रसोई गैस, डीजल-पेट्रोल की निर्भरता कम हो और सौर ऊर्जा के उपयोग से पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा.