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आस्था या अंधविश्वास! यहां लगता है भूतों का मेला

बैतूल के मलाजपुर गांव में स्थित गुरु साहब बाबा की समाधि स्थल पर पिछले 400 सालों से भूतों का मेला लगता आ रहा है. यहां मान्यता है कि जो प्रेत बाधा से पीड़ित होते हैं और जिनका कहीं इलाज नहीं हो पाता उन्हें यहां आकर आराम जरूर मिलता है.

A fair of ghosts is organized at the tomb of Guru Sahib
गुरु साहब बाबा की समाधि पर लगता है भूतों का मेला
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Published : Jan 12, 2020, 3:03 PM IST

Updated : Jan 12, 2020, 8:20 PM IST

बैतूल। विज्ञान के इस आधुनिक युग में भूत प्रेतों का मायावी संसार आज भी रहस्य का विषय बना हुआ है. आज भी लोग आत्मा, भूत-प्रेतों के अस्तित्व को मानते हैं. इन सबके बीच बैतूल जिले में एक ऐसी जगह है, जहां हजारों की तादाद में लोग प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए पहुंचते हैं. कहते हैं लातों के भूत बातों से नहीं मानते, यह कहावत सोलह आने सच साबित होती है, बैतूल जिले से 40 किलोमीटर दूर मलाजपुर गांव में स्थित गुरु साहब बाबा के समाधि स्थल पर, जहां पिछले 400 सालों से भूतों का मेला लगता आ रहा है.

बैतूल में गुरु साहब बाबा की समाधि स्थल पर लगता है भूतों का मेला

गुरु साहब बाबा की समाधि स्थल पर हर साल पूष माह की पूर्णिमा से 1 महीने के लिए मेला शुरू होता है. जिसे भूतों का मेला कहा जाता है और इस मेले में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं, जो प्रेत बाधा से पीड़ित होते हैं और जिनका कहीं इलाज नहीं हो पाता. मान्यता है कि यहां आकर उन्हें आराम जरूर मिलता है.

यहां तरह-तरह के भूत आते हैं और लातों के भूत वहां खाते हैं मार. ऐसी मार जिसे देखने वाले दहल जाते हैं, वहीं मार खाने वाले भूतों को सर पर पैर रखकर भागने को मजबूर होना पड़ता है. भूतों की पिटाई की जाती है और फिर भगाने और ना लौटने की कसमें दिलाई जाती हैं.

मान्यता है की प्रेतबाधा से ग्रस्त व्यक्ति यहां पहुंचते ही असामान्य हरकत शुरू कर देता है. चीखते-चिल्लाते हुए लोग इसी का हिस्सा हैं. यहां असामान्य महिला पुरुष समाधि की उल्टी परिक्रमा लगाता है. शाम को आरती के बाद यहां शुरू होता है भूतों से सवाल-जवाब का सिलसिला.

श्रद्धालु बताते हैं कि गुरु साहब बाबा की महिमा है और यहां आने के बाद भूत प्रेत से छुटकारा मिल जाता है. यहां प्रसाद के रूप में गुड़ चढ़ाया जाता है जो कभी खराब नहीं होता. यही नही इस गुड़ के पास मक्खियां या कीड़े मकोड़े भी दिखाई नहीं देते हैं.

बुजुर्ग बताते हैं कि इस तिथि को गुरु साहब बाबा ने यहां प्राणायाम की मुद्रा में जीवित समाधि ली थी. उनकी समाधि लेने के बाद से लोग यहां मन्नतें लेकर पहुंचते रहे हैं.
चार सौ सालों से यहां इसी तरह भूत प्रेत से मुक्ति दिलाने का कारनामा होता है. जिसे मेडिकल साइंस अंधविश्वास मानता है. लेकिन लोग आस्था के कारण यहां आते हैं

बैतूल। विज्ञान के इस आधुनिक युग में भूत प्रेतों का मायावी संसार आज भी रहस्य का विषय बना हुआ है. आज भी लोग आत्मा, भूत-प्रेतों के अस्तित्व को मानते हैं. इन सबके बीच बैतूल जिले में एक ऐसी जगह है, जहां हजारों की तादाद में लोग प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए पहुंचते हैं. कहते हैं लातों के भूत बातों से नहीं मानते, यह कहावत सोलह आने सच साबित होती है, बैतूल जिले से 40 किलोमीटर दूर मलाजपुर गांव में स्थित गुरु साहब बाबा के समाधि स्थल पर, जहां पिछले 400 सालों से भूतों का मेला लगता आ रहा है.

बैतूल में गुरु साहब बाबा की समाधि स्थल पर लगता है भूतों का मेला

गुरु साहब बाबा की समाधि स्थल पर हर साल पूष माह की पूर्णिमा से 1 महीने के लिए मेला शुरू होता है. जिसे भूतों का मेला कहा जाता है और इस मेले में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं, जो प्रेत बाधा से पीड़ित होते हैं और जिनका कहीं इलाज नहीं हो पाता. मान्यता है कि यहां आकर उन्हें आराम जरूर मिलता है.

यहां तरह-तरह के भूत आते हैं और लातों के भूत वहां खाते हैं मार. ऐसी मार जिसे देखने वाले दहल जाते हैं, वहीं मार खाने वाले भूतों को सर पर पैर रखकर भागने को मजबूर होना पड़ता है. भूतों की पिटाई की जाती है और फिर भगाने और ना लौटने की कसमें दिलाई जाती हैं.

मान्यता है की प्रेतबाधा से ग्रस्त व्यक्ति यहां पहुंचते ही असामान्य हरकत शुरू कर देता है. चीखते-चिल्लाते हुए लोग इसी का हिस्सा हैं. यहां असामान्य महिला पुरुष समाधि की उल्टी परिक्रमा लगाता है. शाम को आरती के बाद यहां शुरू होता है भूतों से सवाल-जवाब का सिलसिला.

श्रद्धालु बताते हैं कि गुरु साहब बाबा की महिमा है और यहां आने के बाद भूत प्रेत से छुटकारा मिल जाता है. यहां प्रसाद के रूप में गुड़ चढ़ाया जाता है जो कभी खराब नहीं होता. यही नही इस गुड़ के पास मक्खियां या कीड़े मकोड़े भी दिखाई नहीं देते हैं.

बुजुर्ग बताते हैं कि इस तिथि को गुरु साहब बाबा ने यहां प्राणायाम की मुद्रा में जीवित समाधि ली थी. उनकी समाधि लेने के बाद से लोग यहां मन्नतें लेकर पहुंचते रहे हैं.
चार सौ सालों से यहां इसी तरह भूत प्रेत से मुक्ति दिलाने का कारनामा होता है. जिसे मेडिकल साइंस अंधविश्वास मानता है. लेकिन लोग आस्था के कारण यहां आते हैं

Intro:बैतूल ।। विज्ञान के इस आधुनिक युग में भूत प्रेतों का मायावी संसार आज भी रहस्य का विषय बना हुआ है। आज भी लोग आत्मा, भूत-प्रेतों के अस्तित्व को लेकर सकारात्मक सोच रखते हैं तो वही ऐसा मानने वालों की तादाद भी कम नहीं है जो इसे कोरी कपोल कल्पना मानते हैं। इन सबके बीच बैतूल जिले में एक ऐसी जगह है जहां हजारों की तादाद में लोग प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए पहुंचते हैं। कहते हैं लातों के भूत बातों से नहीं मानते यह कहावत सोलह आने सच साबित होती है बैतूल के गांव मलाजपुर में जहां पिछले 400 सालों से भूतों का मेला लगता आ रहा है। जहां तरह-तरह के भूत आते हैं और लातों के भूत वहां खाते हैं मार ऐसी मार जिसे देखने वाले दहल जाते हैं तो मार खाने वाले भूतों को सर पर पैर रखकर भागने को मजबूर होना पड़ता है। भूतों की पिटाई की जाती है और फिर भगाने और ना लौटने की कसमें उन्हें यहां दिलाई दिलाई जाती है।


Body:दरअसल बैतूल से 40 किलोमीटर दूर स्थित गुरु साहब बाबा की समाधि स्थल पर मलाजपुर में प्रति वर्ष पूष माह की पूर्णिमा से 1 माह के लिए मेला शुरू होता है जिसे भूतों का मेला कहा जाता है और इस मेले में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं जो प्रेत बाधा से पीड़ित होते हैं और उनका कहीं इलाज नहीं हो पाता लेकिन यहां आकर उन्हें आराम जरूर मिलता है।

प्रेत बाधा के अलावा यहां सर्पदंश से मुक्ति भी मिलती है यही नहीं यहां निसंतान दंपत्ति संतान की इच्छा के लिए आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी कर वापस जाते है। श्रद्धालु बताते हैं कि गुरु साहब बाबा की महिमा है और यहां आने के बाद भूत प्रेत से छुटकारा मिल जाता है। यहां प्रसाद के रूप में गुड़ चढ़ाया जाता है जो कभी खराब नही होता यही नही इस गुड़ के पास मक्खियां या कीड़े मकोड़े भी दिखाई नही देते है।

यहां देश के कई प्रदेशों से लोग पहुंचते हैं विक्रम संवत 1757 श्रवण चौथ से लग रहे इस मेले की हकीकत के बारे में बुजुर्ग बताते हैं कि इस तिथि को गुरु साहब बाबा ने यहां प्राणायाम की मुद्रा में जीवित समाधि ली थी। उदयपुर के कुशवाहा वंश के बंजारा परिवार में 1727 को जन्मे देव जी का रहन-सहन खाने-पीने का ढंग बचपन से ही अजीब गरीब था। मवेशी चराते देवजी साथी चरवाहों बालको को रेत से शक्कर और पत्थर से मिठाई बनाकर खिलाया करते थे। अपने नेत्रहीन गुरु की आंखों की रोशनी वापस लाने के बाद देव जी को उनके गुरु ने गुरु साहब यानी गुरु से बड़े की संज्ञा देते हुए गुरु साहब कहकर बुलाया था। तब से वे गुरु साहब बाबा कहलाने लगे।

उनके समाधि लेने के बाद से लोग यहां मन्नते लेकर पहुचते रहे है। मान्यता है की प्रेतबाधा से ग्रस्त व्यक्ति यहां पहुंचते ही असामान्य हरकत शुरू कर देता है चीखते चिल्लाते हुए लोग इसी का हिस्सा है। यहां असामान्य महिला पुरुष समाधि की उल्टी परिक्रमा लगाता है । शाम को आरती के बाद यहां शुरू होता है भूतों से सवाल-जवाब का सिलसिला।





Conclusion:चार सौ सालों से यहां इसी तरह बहुत प्रेत से मुक्ति दिलाने का कारनामा होता है जिसे मेडिकल साइंस अंधविश्वास मानता है लेकिन आस्था के आगे झुक जाता है।

बाइट -- नीलेश पठारे ( पीड़ित युवक )
बाइट -- विजय आर्य ( जानकार )
बाइट -- कमलेश सोनी ( डॉक्टर )
बाइट -- भिखारी लाल यादव ( पुजारी )

Last Updated : Jan 12, 2020, 8:20 PM IST
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