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एचआईवी पॉजिटिव मरीजों के लिए सहारा बना ये आईसीटीसी सेंटर, लॉकडाउन में भी उपलब्ध कराई दवाई

लॉकडाउन में बैतूल का आईसीटीसी सेंटर एचआईवी संक्रमित मरीजों के लिए सहारा बना. प्रदेश समेत दूसरे राज्यों के मरीज भी जिले में लॉकडाउन के चलते फंस गए थे. जिन्हें जिला अस्पताल के आईसीटीसी सेंटर ने समय पर दवाएं उपलब्ध कराने का काम किया. इसमें सबसे मुख्य भूमिका टेक्नीशियन अलका और काउंसलर अनीता ने निभाई.

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एचआईवी पॉजिटिव मरीजों का इलाज
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Published : Jun 6, 2020, 4:38 PM IST

बैतूल। एचआईवी संक्रमित मरीजों को अगर समय पर दवा न मिल पाए तो उनके लिए ये मुसीबत बन सकता है. जिसके चलते उनके स्वास्थ्य पर खराब असर तो होता ही है, इसके अलावा उनकी जिंदगी भी खतरे में पड़ सकती है. कोराना के चलते हुए लॉकडाउन में ऐसे मरीजों के सामने समय पर दवाएं मिलने और उनकी देख-रेख का संकट खड़ा हो गया था. ऐसे में बैतूल जिला अस्पताल के आईसीटीसी सेंटर में पदस्थ दो महिलाएं जिनमें लैब टेक्नीशियन अलका गलफट और काउंसलर अनीता इन मरीजों के लिए भगवान बनकर आईं. इन दोनों स्वास्थ्यकर्मियों ने लॉकडाउन के दौरान एचआईवी पीड़ितों को न केवल समय पर दवाएं उपलब्ध कराई, बल्कि उनकी काउंसलिंग भी की.

आईसीटीसी सेंटर

सबसे खास बात ये है कि लॉकडाउन में जो मरीज आईसीटीसी सेंटर नहीं जा पा रहे थे, उन्हें टीआई प्रोग्राम के हेल्थ वर्कर और अहाना प्रोजेक्ट के जरिए उनके घर दवाई भेजी गईं. इस काम में ये भी ध्यान रखा गया कि एचआईवी मरीज की गोपनीयता बरकरार रहे. इन तमाम जिम्मेदारियों को टेक्नीशियन अलका गलफट और काउंसलर अनीता ने बखूबी निभाया.

इतना ही नहीं पूरे लॉकडाउन में 23 मार्च से 31 मई तक एचआईवी टेस्टिंग का काम भी नहीं रूका. इन्होंने इस दौरान 860 टेस्ट किए. टोटल 605 मरीजों को दवाइयां उपलब्ध कराई गईं. जिनमें जिले के 202 मरीज शामिल हैं. इसके अलावा जिले में फंसे दूसरे राज्यों के 190 मरीजों को भी दवाइयां उपलब्ध कराई गईं. 213 मरीज ऐसे भी थे जो भोपाल और दूसरे जिलों में रजिस्टर्ड हैं और उन्हें दवाई वहां से मिलती थीं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से वहां पर जा नहीं पा रहे थे ,ऐसी स्थिति में उन्हें यहां से दवाएं देने की व्यवस्था कराई गई.

बता दें एचआईवी वायरस पूरी तरह से खत्म नहीं होता है, लेकिन दवा खाने के बाद नियंत्रित हो जाता है. कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं. इसलिए जब तक व्यक्ति खून की जांच नहीं करवाएगा, तब तक उसे बीमारी के बारे में पता नहीं चलता है. एक बार संक्रमण होने के बाद ताउम्र दवा खाना पड़ती है.

बैतूल। एचआईवी संक्रमित मरीजों को अगर समय पर दवा न मिल पाए तो उनके लिए ये मुसीबत बन सकता है. जिसके चलते उनके स्वास्थ्य पर खराब असर तो होता ही है, इसके अलावा उनकी जिंदगी भी खतरे में पड़ सकती है. कोराना के चलते हुए लॉकडाउन में ऐसे मरीजों के सामने समय पर दवाएं मिलने और उनकी देख-रेख का संकट खड़ा हो गया था. ऐसे में बैतूल जिला अस्पताल के आईसीटीसी सेंटर में पदस्थ दो महिलाएं जिनमें लैब टेक्नीशियन अलका गलफट और काउंसलर अनीता इन मरीजों के लिए भगवान बनकर आईं. इन दोनों स्वास्थ्यकर्मियों ने लॉकडाउन के दौरान एचआईवी पीड़ितों को न केवल समय पर दवाएं उपलब्ध कराई, बल्कि उनकी काउंसलिंग भी की.

आईसीटीसी सेंटर

सबसे खास बात ये है कि लॉकडाउन में जो मरीज आईसीटीसी सेंटर नहीं जा पा रहे थे, उन्हें टीआई प्रोग्राम के हेल्थ वर्कर और अहाना प्रोजेक्ट के जरिए उनके घर दवाई भेजी गईं. इस काम में ये भी ध्यान रखा गया कि एचआईवी मरीज की गोपनीयता बरकरार रहे. इन तमाम जिम्मेदारियों को टेक्नीशियन अलका गलफट और काउंसलर अनीता ने बखूबी निभाया.

इतना ही नहीं पूरे लॉकडाउन में 23 मार्च से 31 मई तक एचआईवी टेस्टिंग का काम भी नहीं रूका. इन्होंने इस दौरान 860 टेस्ट किए. टोटल 605 मरीजों को दवाइयां उपलब्ध कराई गईं. जिनमें जिले के 202 मरीज शामिल हैं. इसके अलावा जिले में फंसे दूसरे राज्यों के 190 मरीजों को भी दवाइयां उपलब्ध कराई गईं. 213 मरीज ऐसे भी थे जो भोपाल और दूसरे जिलों में रजिस्टर्ड हैं और उन्हें दवाई वहां से मिलती थीं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से वहां पर जा नहीं पा रहे थे ,ऐसी स्थिति में उन्हें यहां से दवाएं देने की व्यवस्था कराई गई.

बता दें एचआईवी वायरस पूरी तरह से खत्म नहीं होता है, लेकिन दवा खाने के बाद नियंत्रित हो जाता है. कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं. इसलिए जब तक व्यक्ति खून की जांच नहीं करवाएगा, तब तक उसे बीमारी के बारे में पता नहीं चलता है. एक बार संक्रमण होने के बाद ताउम्र दवा खाना पड़ती है.

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