बैतूल। मध्य प्रदेश के लिए कुपोषण आज भी एक कलंक बना हुआ है. प्रदेश की मौजूदा सरकार कुपोषण दूर करने के लिए अभियान चलाने का दावा कर रही है, लेकिन बैतूल जिले में जमीनी हालात बिल्कुल इसके उलट है. जिले के 16 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार है. जबकि एक प्रतिशत बच्चें अति कुपोषित है.
ऐसा इसलिए कि जरा इन आंकड़ों पर भी नजर दौड़ाए. बैतूल जिले में 0 से पांच वर्ष के कुल 86 हजार 347 बच्चे हैं. जिनमें 12 हजार 852 बच्चें कुपोषित हैं. तो 1 हजार 164 बच्चें अति कुपोषित. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले में 16 प्रतिशत कुपोषित बच्चे कुपोषण का शिकार है. तो एक प्रतिशत बच्चें अतिकुपोषित हैं.
वो भी तब जिले में स्वास्थ्य विभाग के पूरे अमले के साथ-साथ जिले में 2 हजार 271 आंगनबाड़ी केंद्र, 76 मिनी आंगनबाड़ी केंद्र हैं. जिनकी निगरानी के लिए 90 सुपरवाइजर और 10 सीडीपीओ है. जिनके उपर कुपोषण को खत्म करने की जिम्मेदारी है. बावजूद इसके जिले के एनआरसी केंद्रों में कुपोषित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
बैतूल जिले के ग्रामीण क्षेत्रो की जानकरीं रखने वाले आयुष डॉक्टर योगेश चौकिकर ने बताया कि कुपोषित बच्चों को नियमित रूप से पोषण आहार दिया जाना चाहिए. आंगनवाड़ी केंद्रों में जो भी पोषण आहार दिए जाते हैं वो कुपोषित बच्चों के लिए फायदेमंद है. कुपोषण के मामले शहरी क्षेत्रों की स्थिति ठीक है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति ठीक नहीं है.
महिला एवं बाल विकास विभाग के मुताबिक जिले में कुपोषण को लेकर जागरूकता अभियान नियमित रूप से चलाए जा रहे हैं. पिछले महीने ही कुपोषण माह अभियान जिले भर में चलाया गया. कुपोषण के प्रति जिले की स्थिति संतोषजनक है. अधिकारी के मुताबिक बच्चों में कुपोषण के पीछे कई कारण हैं. जिनमें कम उम्र में शादी होना, बच्चों के बीच मे अंतराल होना, गर्भवती होने के बाद नियमित रूप से डॉक्टर की सलाह पर आहार लेना जरूरी है.
कुपोषण को खत्म करने के लिए चलाए जाने वाले इतने अभियानों और पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी अगर जिले की स्थिति में सुधार नहीं आता. तो इससे ज्यादा दयनीय स्थिति और क्या हो सकती है. ऐसे में जरुरत है सरकारी योजनाओं का लाभ जरुरतमंद लोगों तक पहुंचे तभी बैतूल जिले की कुपोषण की स्थिति में सुधार हो सकता है.