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भगवान शिव दामाद और मां गौरी को बेटी के रूप में पूज कर मनाया जाता है ये खास पर्व - बड़वानी

गणगौर लोक संस्कृति का ऐसा पर्व है जिसमें महिलाओं का उत्साह चरम पर होता है. जिसकी तैयारी 8 दिन पहले से शुरू हो जाती है. पाती खेलते हुए झालरिया गाती महिलाओ की टोली गांव से शहर तक देखी जा सकती हैं.

धूमधाम से मनाया गया महा लोकपर्व गणगौर
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Published : Apr 6, 2019, 6:50 PM IST

बड़वानी। चैत्र शुक्लपक्ष की नवरात्रि शुरू होते ही पश्चिम निमाड़ के महा लोकपर्व गणगौर को लेकर लोगों में उत्साह देखा जा रहा है. इस दौरान ज्वारे के रूप में बाड़ी से माता को घर लाकर 9 दिन तक विधि विधान से पूजन कर विदाई देने की मान्यता है.

धूमधाम से मनाया गया महा लोकपर्व गणगौर

भगवान शिव और माता गौरी के प्रतीक के रूप में धणीयर राजा और रणुबाई के रूप में पूजे जाने का पर्व जिसमें गण यानी शिव और गौर यानी गौरी को गणगौर के रूप में घर लाकर आवभगत कर विदाई दी जाती है. गणगौर में महिलाएं भगवान शिव के रूप में दूल्हा और गौरी के रूप में दुल्हन बन कर बगीचे में जाकर फूल पाती खेलती है और झालरियां गाकर नाचती हैं.

चैत्र सुदी शुक्लपक्ष की तृतीया को माता को ज्वारे के रूप में जहा बाड़ी में बोए जाते हैं, वहां से धणीयर राजा और रणुबाई के रूप में बनाए रथ में लाकर धूमधाम से घर लाते हैं और तीन दिन बाद विदा करते हैं.

lokparva gangaur,enthusiasm
उत्साह में नाचती महिलाएं

प्राचीन लोककथा के अनुसार एक बार माता गौरी भगवान शिव से रूठकर अपने मायके आ जाती हैं तब भगवान शिव उनको मनाने के लिए ससुराल आते हैं और ससुराल में उनकी खूब सेवा सत्कार होता है फिर खुशी-खुशी दोनों को विदाई दी जाती है. उसी प्रतीक के रूप में गणगौर पर्व मनाया जाता है.

बड़वानी। चैत्र शुक्लपक्ष की नवरात्रि शुरू होते ही पश्चिम निमाड़ के महा लोकपर्व गणगौर को लेकर लोगों में उत्साह देखा जा रहा है. इस दौरान ज्वारे के रूप में बाड़ी से माता को घर लाकर 9 दिन तक विधि विधान से पूजन कर विदाई देने की मान्यता है.

धूमधाम से मनाया गया महा लोकपर्व गणगौर

भगवान शिव और माता गौरी के प्रतीक के रूप में धणीयर राजा और रणुबाई के रूप में पूजे जाने का पर्व जिसमें गण यानी शिव और गौर यानी गौरी को गणगौर के रूप में घर लाकर आवभगत कर विदाई दी जाती है. गणगौर में महिलाएं भगवान शिव के रूप में दूल्हा और गौरी के रूप में दुल्हन बन कर बगीचे में जाकर फूल पाती खेलती है और झालरियां गाकर नाचती हैं.

चैत्र सुदी शुक्लपक्ष की तृतीया को माता को ज्वारे के रूप में जहा बाड़ी में बोए जाते हैं, वहां से धणीयर राजा और रणुबाई के रूप में बनाए रथ में लाकर धूमधाम से घर लाते हैं और तीन दिन बाद विदा करते हैं.

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उत्साह में नाचती महिलाएं

प्राचीन लोककथा के अनुसार एक बार माता गौरी भगवान शिव से रूठकर अपने मायके आ जाती हैं तब भगवान शिव उनको मनाने के लिए ससुराल आते हैं और ससुराल में उनकी खूब सेवा सत्कार होता है फिर खुशी-खुशी दोनों को विदाई दी जाती है. उसी प्रतीक के रूप में गणगौर पर्व मनाया जाता है.

Intro:स्पेशल।बड़वानी।
चैत्र शुक्लपक्ष की नवरात्रि शुरू होते ही समूचे पश्चिम निमाड़ का महा लोकपर्व गणगौर जिसको लेकर गांव से लेकर शहर तक कि महिलाओं में खासा उत्साह नजर आ रहा है। ज्वारे के रूप में बाड़ी से माता को घर लाकर 9 दिन तक विधि विधान से पूजन कर विदाई देने का लोकपर्व गणगौर जिसमे महिलाए भगवान शिव के रूप में दूल्हा और गौरी के रूप में दुल्हन बन कर बगीचे में जाकर फूल पाती खेलती है और झालरिया गाकर नाचती है।


Body:भगवान शिव और माता गौरी के प्रतीक के रूप में धणीयर राजा और रणुबाई के रूप में पूजे जाने का पर्व जिसमे गण अर्थात शिव और गौर यानी गौरी को गणगौर के रूप में घर लाकर आवभगत कर विदाई दी जाती है। सजधज कर अपनी सखियों के साथ हंसी ठिठोली करती महिलाएं आज भी पुरानी परम्परा को जीवित रखे हुए है। जमाना भले ही बदल गया हो लेकिन गांव से लेकर शहर तक सांस्कृतिक मूल्य अब भी कायम है। चैत्र सुदी शुक्लपक्ष की तृतीया को माता को ज्वारे के रूप में जहा बाड़ी में बोए जाते है वहा से धणीयर राजा और रणुबाई के रूप में बनाए रथ में लाकर धूमधाम से घर लाते है और तीन दिन बाद विदा करते है। सम्भवतः निमाड़ की एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ भगवान शिव को दामाद और गौरी को बेटी के रूप में पूजा जाता है और बेटी की तरह बिदाई दी जाती है । प्राचीन लोककथा के अनुसार एक बार माता गौरी भगवान शिव से रूठकर अपने मायके आ जाती है तब भगवान शिव उनको मनाने के लिए ससुराल आते है तब ससुराल में उनकी खूब सेवा सत्कार होता है और खुशी खुशी दोनो को बिदाई देते है उसी प्रतीक के रूप में गणगौर पर्व मनाया आता जा रहा है। इससे पहले बगीचे में भगवान शिव की आगवानी करते हुए महिलाएं फूल पाती खेलती है , झालरिया गाती है और दूल्हा दुल्हन के रूप में घर आते है।


Conclusion:लोक संस्कृति का ऐसा पर्व जिसमे महिलाओं का उत्साह चरम पर होता है जिसकी तैयारी गणगौर मनाने के 8 दिन पहले से शुरू हो जाती है। गणगौर के रूप में भगवान शिव और माता गौरी को सम्मान से घर लाने और सत्कार के बाद उनकी विदाई और फूल पाती खेलते हुए झालरिया गाती महिलाओ की टोली गांव से शहर तक देखी जा सकती है।
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