बड़वानी। चैत्र शुक्लपक्ष की नवरात्रि शुरू होते ही पश्चिम निमाड़ के महा लोकपर्व गणगौर को लेकर लोगों में उत्साह देखा जा रहा है. इस दौरान ज्वारे के रूप में बाड़ी से माता को घर लाकर 9 दिन तक विधि विधान से पूजन कर विदाई देने की मान्यता है.
भगवान शिव और माता गौरी के प्रतीक के रूप में धणीयर राजा और रणुबाई के रूप में पूजे जाने का पर्व जिसमें गण यानी शिव और गौर यानी गौरी को गणगौर के रूप में घर लाकर आवभगत कर विदाई दी जाती है. गणगौर में महिलाएं भगवान शिव के रूप में दूल्हा और गौरी के रूप में दुल्हन बन कर बगीचे में जाकर फूल पाती खेलती है और झालरियां गाकर नाचती हैं.
चैत्र सुदी शुक्लपक्ष की तृतीया को माता को ज्वारे के रूप में जहा बाड़ी में बोए जाते हैं, वहां से धणीयर राजा और रणुबाई के रूप में बनाए रथ में लाकर धूमधाम से घर लाते हैं और तीन दिन बाद विदा करते हैं.
प्राचीन लोककथा के अनुसार एक बार माता गौरी भगवान शिव से रूठकर अपने मायके आ जाती हैं तब भगवान शिव उनको मनाने के लिए ससुराल आते हैं और ससुराल में उनकी खूब सेवा सत्कार होता है फिर खुशी-खुशी दोनों को विदाई दी जाती है. उसी प्रतीक के रूप में गणगौर पर्व मनाया जाता है.