बड़वानी। एमपी गठन के बाद 1957 में यानी 66 साल पहले यह सेंधवा सीट बनी. उस समय जब कांग्रेस का बोलबाला था, तब यहां जनसंघ का खासा नियंत्रण था. पहले पांच में से तीन चुनाव जनसंघ के उम्मीदवारों ने जीते और बीच-बीच में सीट दोनों ही पार्टियों के बीच आती जाती रही. फिलहाल यह सीट कांग्रेस के कब्जे में है. अब सवाल यह है कि किस पार्टी के सामने अधिक चुनौती है, तो पहले बात करते हैं बीजेपी की. बीजेपी की तरफ से लगातार पांच दशक से एक ही परिवार के चेहरे बने दिखाई देते हैं. जनसंघ के जमाने से आर्य परिवार का नियंत्रण है और पूर्व मंत्री अंतर सिंह आर्य की तूती एक तरफा है, लेकिन उनके सामने बीजेपी के ही डॉ रैलास सेनानी ने दांवा ठोक दिया है.
सेंधवा में कांग्रेस ने ग्यारसी लाल रावत का टिकट काट कर जयस के जिला अध्यक्ष मोंटू सोलंकी को प्रत्याशी बनाया है. जबकि बीजेपी ने अंतर सिंह आर्य को प्रत्याशी बनाया है. वहीं आम आदमी पार्टी से नरसिंह नरवड़े भी चुनावी मैदान में हैं.
सुर्खियों में डॉक्टर रैलास सेनानी: अंतर सिंह आर्य फग्गन सिंह कुलस्ते के समर्थक माने जाते हैं और रावजी भाई (जनसंघ नेता) के बेटे हैं. अंतर सिंह आर्य ने 1990, 2003, 2008 और 2013 में जीत दर्ज की है, लेकिन आर्य ने पिछले चुनाव में बड़े अंतर से हार के बाद अपने बेटे का नाम उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाया है. बीजेपी ने भी फिलहाल अंतर सिंह आर्य को जिला संयोजक का कार्यभार सौंपकर चारों विधानसभाओं का प्रभारी बना दिया है. माना जा रहा है कि उन्हें टिकट नहीं मिलेगा, क्योंकि संघ से जुड़े तेजी से दो साल पहले उभरे डॉक्टर रैलास सेनानी इन दिनों सुर्खियों में हैं. अब बात करें कांग्रेस की तो वर्तमान विधायक ग्यारसी रावत उनकी पहली पसंद है. 1993 और 1998 में ग्यारसी लाल रावत विधायक रह चुके हैं और 2018 में उन्होंने 16 हजार वोटों के बड़े अंतर से अंतर सिंह को हराया था.
सेंधवा विधानसभा के मुद्दे: इस विधानसभा में अंतर सिंह आर्य और बीजेपी को लेकर एक ही विरोध है कि रोजगार के लिए कोई बड़ा प्रयास नहीं हुआ है. पलायन यहां की मुख्य समस्या है. स्वास्थ्य, रोजगार और सड़क से भी क्षेत्र दूर है. ज्यादातर सरकारी अमला प्रभार पर है. स्थायी स्टॉफ की कई बार मांग उठी है. सेंधवा में बीजेपी की जीत केवल संघ की सक्रियता से होती है. संघ का यहां आदिवासियों में मजबूत काम है.
सेंधवा विधानसभा का चुनावी इतिहास: वर्ष 1957 में पहला चुनाव हुआ और पहली बार में कांग्रेस के बारकू ने जनसंघ के भीकला को 1064 वोट से हरा दिया. इसके बाद 1962 के विधानसभा चुनाव में जनसंघ के रूपसिंह ने कांग्रेस के बारकू भाई को 3021 वोट से हरा दिया. 1967 में एक बार फिर भारतीय जनसंघ के बी. मोती ने कांग्रेस के उम्मीदवार जी. रायसिंह को 736 वोट से हराकर सीट पर कब्जा बरकरार रखा, लेकिन 1972 में कांग्रेस के शोभाराम पटेल ने भारतीय जनसंघ के राओजी भाई को 11777 वोट से हरा दिया. राओजी ने पूरे पांच साल मेहनत की और 1977 में जनता पार्टी के टिकट लड़कर रावजी कालजी ने कांग्रेस के शोभाराम पटेल को 2993 वोट से हरा दिया.
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के शोभाराम पटेल ने बीजेपी के बाबू सिंह भीम सिंह बघेल को 2454 वोट से हराकर सीट वापस ले ली. वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के भाई सिंह डाबर ने बीजेपी के बालूसिंह को 5019 वोट से हराकर सीट पर कब्जा बरकरार रखा. 1990 में बीजेपी के अंतर सिंह राओजी ने कांग्रेस के ग्यारसीलाल रावत को 3907 वोट से हराकर सीट को जैसे तैसे बीजेपी को दिलाई. इसके बाद 1993 में कांग्रेस के ग्यारसी लाल रावत ने बीजेपी के अंतर सिंह आर्य को 6472 वोट से हराकर सीट कांग्रेस को दिला दी. 1998 में भी कांग्रेस के ग्यारसी लाल रावत ने बीजेपी के अंतर सिंह आर्य को 3083 वोट से हराकर अपना कब्जा बरकरार रखा.
सेंधवा में पहली बार बीजेपी ने बनाई हैट्रिक: कांग्रेस की लगातार जीत का क्रम 2003 में टूटा. इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अंतर सिंह आर्य ने कांग्रेस के ग्यारसीलाल रावत को 32115 वोट से हराया. 2008 में फिर से बीजेपी के अंतर सिंह आर्य ने कांग्रेस के सुखलाल को 12934 वोट से हराकर सीट पर कब्जा बरकरार रखा. 2013 में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से अंतरसिंह आर्य को उम्मीदवार बनाया गया. उन्होंने यह चुनाव कांग्रेस के उम्मीदवार दयाराम पटेल को 25686 वोटों के बड़े अंतर से हराया. हैट्रिक बनाने के बाद जीत का सिलसिला एक बार फिर ग्यारसीलाल रावत ने 2018 में थामा. इस चुनाव में कांग्रेस ने ग्यारसीलाल रावत को अपना उम्मीदवार बनाया और जीते व विधायक बने. रावत ने भारतीय जनता पार्टी के लगातार उम्मीदवार बनाए जा रहे अंतरसिंह आर्य को कुल 15878 वोटों से हराया.