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तेंदूपत्ता खरीददारों से डील में हुई देरी, मजदूरों को देर से मिलेगी मजदूरी

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Published : May 24, 2020, 10:50 PM IST

बालाघाट में तेंदूपत्ता मजदूरों का करोड़ों का भुगतान अटका हुआ है. कोरोना के चलते तेंदूपत्ता के खरीददारों से डील में देरी हो जाने से मजदूरों को भी रुपए देरी से मिलेंगे.

Late wages
देर से मिलेगी मजदूरी

बालाघाट। इस बार तेंदूपत्ता संग्रहण और बिक्री पर भी कोरोना इफेक्ट दिख रहा है. वन विभाग का खरीददारों से समय पर अनुबंध नहीं होने से मजूदरों को उनकी मजदूरी का भुगतान देरी से मिलेगा. बालाघाट, प्रदेश का सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाला जिला है. इस जिले के लगभग 54 फीसदी भाग पर जंगल है. प्रकृति का यह उपहार जंगलों के करीब रहने वाले लोगों को रोजगार भी दिलाता है.

देर से मिलेगी मजदूरी

जंगलों से इमारती लकड़ी, गोंद, महुआ, चारबीजी, बांस, चिरोटा बीज और अन्य औषधियां मिलती हैं. तेंदूपत्ता एक ऐसी ही वनोपज है, जिसके रखरखाव से जिले के करीब 90 परिवारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार मिलता है. इस साल जिले में 85 हजार 700 मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का टारगेट था. संग्रहण तो हो गया, लेकिन लॉकडाउन के चलते खरीददारों से अनुबंध देरी से हुआ है.

इसी वजह से मजदूरों का करीब 15 करोड़ रुपए का भुगतान अटका हुआ है. तेंदूपत्ता मजदूरों को 2500 रुपए प्रति मानक बोरा की दर से भुगतान किया जाता है. इसके अलावा शासन द्वारा तेंदूपत्ता की बिक्री से हुए लाभ का कुछ हिस्सा भी इन मजदूरों को दिया जाता है.

बालाघाट। इस बार तेंदूपत्ता संग्रहण और बिक्री पर भी कोरोना इफेक्ट दिख रहा है. वन विभाग का खरीददारों से समय पर अनुबंध नहीं होने से मजूदरों को उनकी मजदूरी का भुगतान देरी से मिलेगा. बालाघाट, प्रदेश का सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाला जिला है. इस जिले के लगभग 54 फीसदी भाग पर जंगल है. प्रकृति का यह उपहार जंगलों के करीब रहने वाले लोगों को रोजगार भी दिलाता है.

देर से मिलेगी मजदूरी

जंगलों से इमारती लकड़ी, गोंद, महुआ, चारबीजी, बांस, चिरोटा बीज और अन्य औषधियां मिलती हैं. तेंदूपत्ता एक ऐसी ही वनोपज है, जिसके रखरखाव से जिले के करीब 90 परिवारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार मिलता है. इस साल जिले में 85 हजार 700 मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का टारगेट था. संग्रहण तो हो गया, लेकिन लॉकडाउन के चलते खरीददारों से अनुबंध देरी से हुआ है.

इसी वजह से मजदूरों का करीब 15 करोड़ रुपए का भुगतान अटका हुआ है. तेंदूपत्ता मजदूरों को 2500 रुपए प्रति मानक बोरा की दर से भुगतान किया जाता है. इसके अलावा शासन द्वारा तेंदूपत्ता की बिक्री से हुए लाभ का कुछ हिस्सा भी इन मजदूरों को दिया जाता है.

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