बालाघाट। बैगाओं के उत्थान को लेकर शासन-प्रशासन द्वारा अनेक योजनाओं के क्रियान्वयन के बाद भी उनके दैनिक जीवन में कुछ खास बदलाव नजर नहीं आ रहा है. हालांकि बैगा परियोजना अंतर्गत इस विशेष संरक्षित प्रजाति के लिए करोड़ों रुपये की राशि का आवंटन किया जाता है, लेकिन योजनाओं का समुचित लाभ उन तक नहीं पंहुच पा रहा है, जिसके चलते आज भी बैगा परिवार मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है. हद तो तब हो जाती है, जब प्रशासनिक नुमाइंदों के द्वारा योजनाओं के नाम पर इनसे ही अवैध वसूली करते हुए इन्हें ठग लिया जाता है.
बिजली कनेक्शन के लिए बैगा परिवार से लिए रुपए
परसवाड़ा जनपद पंचायत अंतर्गत बघोली ग्राम पंचायत में बिजली कनेक्शन के नाम पर बैगा परिवारों से 3200 रुपये लेकर उनके घरों तक बिजली कनेक्शन पंहुचाया गया. वहीं बैगा परिवारों के अनुसार, लाइनमेन ओम गौर ने मीटर बाद में लगाने की बात कही. पहले तो लाइनमेन द्वारा उनके घर का कनेक्शन काट दिया गया, लेकिन कुछ ही दिन बाद फिर कनेक्शन जोड़ भी दिया गया. लाइनमेन ने कहा कि इस समय परमानेंट कनेक्शन नहीं दिया जा रहा है. इसलिए टीसी कनेक्शन दिया गया है.
अवैध वसूली को दे रहे टीसी कनेक्शन का नाम
बिजली कनेक्शन के नाम पर बैगा परिवार से अवैध वसूली की बात जब सामने आई, तो जवाबदारों ने उसे टीसी कनेक्शन की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया, जबकि विद्युत वितरण केन्द्र से जानकारी लेने पर पता चला कि बघोली गांव में हाल फिलहाल किसी भी नाम पर कोई टीसी कनेक्शन नहीं किया गया है. हालांकि लाइनमेन ने अपने बचाव में कहा कि उक्त कनेक्शन उसके द्वारा नहीं किया गया.
6000 परिवारों को नहीं मिला बिजली का स्थाई कनेक्शन
ग्रामीण होते हैं परेशान
ग्रामीणों के अनुसार, कई दिनों तक यहां लाइनमेन का पता ही नहीं चलता है. खानापूर्ति के नाम पर कभी-कभी उपस्थिति दी जाती है. ग्रामीणों ने ये भी बताया कि बिजली गुल हो जाने के बाद कई बार हमें अंधेरे में रहना पड़ता है. इसको लेकर कई बार संबंधित अधिकारियों को मौखिक तौर पर सूचित भी किया जा चुका है, लेकिन समस्याओं का हल नहीं निकल पा रहा है.
इस पूरे मामले पर जेई केपी सनोडिया का कहना है कि बघोली में किसी प्रकार का टीसी कनेक्शन नहीं किया गया है. अगर ऐसा हुआ है, तो जांच कर कार्रवाई की जाएगी.
राजनीतिक संरक्षण के चलते लाइनमेन के हौसले बुलंद
प्राप्त जानकारी के अनुसार, कुछ माह पहले अपने कार्यों के प्रति लापरवाही और उदासीनता के कारण लाइनमेन ओम गौर का स्थानांतरण कर दिया गया था, लेकिन राजनीतिक प्रभाव और दबाव के चलते उक्त कर्मचारी ने अपना स्थानांतरण रूकवा दिया.
बहरहाल मामला चाहे जो भी हों, लेकिन यहां इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आदिवासी बाहुल्य में रहने वाले गरीब परिवारों को शासन की योजनाओं के नाम पर लूटा जा रहा है.