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वेंटिलेटर पर है बालाघाट जिले का ये सरकारी अस्पताल ! इलाज के लिए भटक रहे हैं मरीज
बालाघाट के परसवाड़ा इलाक में 30 बिस्तरों वाले सरकारी अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है, स्टाफ की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है.
इलाज के लिए भटक रहे मरीज
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Published : Oct 23, 2019, 10:39 AM IST
| Updated : Oct 23, 2019, 11:07 AM IST
बालाघाट। जिले के आदिवासी बाहुल्य परसवाड़ा इलाके में स्थित एकमात्र अस्पताल खुद ही वेंटिलेटर पर पहुंच चुका है. स्टाफ की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते मरीजों को सही वक्त पर इलाज नहीं मिल पा रहा है.
इलाज के लिए भटकते हैं मरीज
अस्पताल में सुविधाओं के अभाव की वजह से मरीज इलाज के लिए भटकते रहते हैं. अधिकांश स्टाफ अपनी ड्यूटी से अक्सर नदारद रहते हैं. डाक्टरों की गैर मौजूदगी में दवाइयां वितरण करने वाले कर्मचारी ही ओपीडी का जिम्मा संभालते हैं.
समय पर नहीं हो पाती कोई जांच
ग्रामीण अंचलों से इलाज के लिए आए मरीजों को कई बार घंटों इंतजार करना पड़ता है, तब जाकर लैब में उनकी जांच हो पाती है. कई बार तो बिना जांच के ही मरीजों को वापस लौटना पड़ता है. लैब टेक्नीशियन श्यामा मरकाम ने बताया कि अस्पताल में सिर्फ दो लैब टेक्नीशियन हैं और कुपोषित बच्चों का कैंप लगा होने से अन्य मरीजों की जांच नहीं की जा रही है.
अक्सर स्टाफ रहता है नदारद
अस्पताल में पदस्त स्टाफ ज्यादातर वक्त अस्पताल से गायब रहता है. जो भी अधिकारी कर्मचारी उपस्थित नहीं होता है, वो फील्ड पर होने का बहाना देता है. कई पदस्थ अधिकारी और कर्मचारी फिल्ड का बहाना देकर अक्सर अस्पताल नहीं आते हैं. इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि, अस्पताल की सेहत कितनी खराब है.
ब्लीचिंग पाउडर का नहीं किया जा रहा वितरण
बिमारियों से बचने के लिए ब्लीचिंग पाउडर का वितरण करना आवश्यक है, लेकिन अस्पताल में ब्लींचिंग पाउडर का वितरण तक नहीं किया जा रहा है. ब्लीचिंग पाउडर मांगने पर आशा कार्यकर्ता से संपर्क करने को कहा जाता है. जिला स्वास्थ्य अधिकारी अजय जैन ने कहा कि ब्लीचिंग पाउडर उपलब्ध कराकर तत्काल वितरण करवा दिया जाएगा, लेकिन अभी भी लोग ब्लीचिंग पाउडर के लिए भटक रहे हैं.
औपचारिकताओं में स्वच्छता अभियान
परसवाड़ा अस्पताल में गंदगी का अंबार लगा हुआ है. यहां पर स्वच्छता अभियान महज औपचारिकताओं में ही सिमट कर रह गया है. गंदगी के अंबार से कमरे भी अछूते नहीं हैं. कई जगहों पर बदबू होने से मरीजों सहित परिजनों को भी मुसीबत का सामना करना पड़ता है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर रोशनी गौतम जो वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर परसवाड़ा अस्पताल में दो दिन सेवाएं प्रदान करती हैं, उन्होंने बताया कि प्रशासन का आदेश हैं कि, सात ग्राम खून से कम वाले बच्चों का एचबी टेस्ट कर उन्हें बालाघाट रेफर किया जाए है, जिससे उनका अच्छे से उपचार हो सकेगा. लेकिन सिर्फ कुपोषित बच्चों का ही एचबी टेस्ट किया जा रहा है.
बालाघाट। जिले के आदिवासी बाहुल्य परसवाड़ा इलाके में स्थित एकमात्र अस्पताल खुद ही वेंटिलेटर पर पहुंच चुका है. स्टाफ की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते मरीजों को सही वक्त पर इलाज नहीं मिल पा रहा है.
इलाज के लिए भटकते हैं मरीज
अस्पताल में सुविधाओं के अभाव की वजह से मरीज इलाज के लिए भटकते रहते हैं. अधिकांश स्टाफ अपनी ड्यूटी से अक्सर नदारद रहते हैं. डाक्टरों की गैर मौजूदगी में दवाइयां वितरण करने वाले कर्मचारी ही ओपीडी का जिम्मा संभालते हैं.
समय पर नहीं हो पाती कोई जांच
ग्रामीण अंचलों से इलाज के लिए आए मरीजों को कई बार घंटों इंतजार करना पड़ता है, तब जाकर लैब में उनकी जांच हो पाती है. कई बार तो बिना जांच के ही मरीजों को वापस लौटना पड़ता है. लैब टेक्नीशियन श्यामा मरकाम ने बताया कि अस्पताल में सिर्फ दो लैब टेक्नीशियन हैं और कुपोषित बच्चों का कैंप लगा होने से अन्य मरीजों की जांच नहीं की जा रही है.
अक्सर स्टाफ रहता है नदारद
अस्पताल में पदस्त स्टाफ ज्यादातर वक्त अस्पताल से गायब रहता है. जो भी अधिकारी कर्मचारी उपस्थित नहीं होता है, वो फील्ड पर होने का बहाना देता है. कई पदस्थ अधिकारी और कर्मचारी फिल्ड का बहाना देकर अक्सर अस्पताल नहीं आते हैं. इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि, अस्पताल की सेहत कितनी खराब है.
ब्लीचिंग पाउडर का नहीं किया जा रहा वितरण
बिमारियों से बचने के लिए ब्लीचिंग पाउडर का वितरण करना आवश्यक है, लेकिन अस्पताल में ब्लींचिंग पाउडर का वितरण तक नहीं किया जा रहा है. ब्लीचिंग पाउडर मांगने पर आशा कार्यकर्ता से संपर्क करने को कहा जाता है. जिला स्वास्थ्य अधिकारी अजय जैन ने कहा कि ब्लीचिंग पाउडर उपलब्ध कराकर तत्काल वितरण करवा दिया जाएगा, लेकिन अभी भी लोग ब्लीचिंग पाउडर के लिए भटक रहे हैं.
औपचारिकताओं में स्वच्छता अभियान
परसवाड़ा अस्पताल में गंदगी का अंबार लगा हुआ है. यहां पर स्वच्छता अभियान महज औपचारिकताओं में ही सिमट कर रह गया है. गंदगी के अंबार से कमरे भी अछूते नहीं हैं. कई जगहों पर बदबू होने से मरीजों सहित परिजनों को भी मुसीबत का सामना करना पड़ता है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर रोशनी गौतम जो वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर परसवाड़ा अस्पताल में दो दिन सेवाएं प्रदान करती हैं, उन्होंने बताया कि प्रशासन का आदेश हैं कि, सात ग्राम खून से कम वाले बच्चों का एचबी टेस्ट कर उन्हें बालाघाट रेफर किया जाए है, जिससे उनका अच्छे से उपचार हो सकेगा. लेकिन सिर्फ कुपोषित बच्चों का ही एचबी टेस्ट किया जा रहा है.
Intro:वेंटीलेटर पर अस्पताल, इलाज के लिए भटक रहे मरीज, प्रशासनिक उदासिनता के चलते लचर हुई स्वास्थ्य सुविधा, जिम्मेदार नही दे रहे ध्यान,Body:वेंटिलेटर पर नजर आ रहा परसवाड़ा अस्पताल,
इलाज को लेकर परेशान हो रहे मरीज, कर्मचारियों की उदासीनता से बिमारू हुआ अस्पताल
परसवाड़ा( बालाघाट) :- जिले के आदिवासी बाहुल्य परसवाड़ा क्षेत्र के एकमात्र 30 बिस्तरीय अस्पताल स्टाफ की कमी और प्रशासनिक उदासीनता के चलते स्वयं बिमारू नजर आ रहा है, आलम यह कि खुद अस्पताल वेंटिलेटर पर नजर आ रहा है, स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर महज खानापूर्ति ही बची है, विगत कई वर्षों से लगातार स्टाफ की कमी के चलते जहां पर उचित इलाज नही मिल पा रहा है, वहीं पदस्थ स्टाफों के उदासीन रवैये के कारण अस्पताल में मात्र औपचारिकताओं में सिमटता नजर आने लगा है सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र। दुर्भाग्य इस परसवाड़ा क्षेत्र का यह कि यहां पर दूरदराज से इलाज के लिए आए मरीजों की कोई सुनने वाला भी नही है, आखिरकार परसवाड़ा क्षेत्र के सैकड़ों गांव के लोगों को आज भी इलाज के नाम पर झोलाझाप डाक्टरो के हाथों लुटना पड़ रहा है या फिर मजबूरी में जिला चिकित्सालय का रूख करना पड़ रहा है, ऐसी दोनो ही परिस्थितियों में मरीजों सहित परिजनों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है, किन्तु यहां उनकी सुध लेने वाला कोई नजर नही आ रहा है ।
इलाज के लिए भटकते हैं मरीज, औपचारिकताओं में सिमटा उपचार
परसवाड़ा क्षेत्र के एक मात्र 30 बिस्तरीय अस्पताल में लोगों के इलाज के अभाव में भटकते रहना कोई नई बात नही है, यहां पर अधिकांश स्टाफ जो पदस्थ है, नदारद ही पाया जाता है, जिसके चलते मरीजों को इलाज के नाम पर महज चंद गोलियां लेकर वापस होना पड़ता है, डाक्टरों की गैरमौजूदगी में दवाईयां वितरण करने वाले कर्मचारी ही ओपीडी का जिम्मा संभालते है, जिनके द्वारा किसी तरह जांच उपरांत मरीजों का इलाज किया जाता है, जहां पर दवाईयां वितरण करने वाले कर्मचारियों के द्वारा ही मरीजों का इलाज किया जाता हो वहां अंदाजा लगाया जा सकता है, किस तरह मरीजों का उपचार होता होगा,।
दूरदराज ग्रामीण अंचलों से इलाज के लिए यहां पंहुचते लोगों को कई बार घंटो इंतजार करना पड़ता है, तब जाकर लेब से उनकी जांच हो पाती है, कई बार तो बिना जांच के ही मायूस हो कर चार गोलियों से ही संतुष्ट करना पड़ता है।
हाल ही में विगत दो दिनों से अस्पताल में कुपोषित बच्चों की जांच की जा रही है, बताया जा रहा है कि कुपोषित बच्चों की जांच के लिए शिविर लगाया गया है, किन्तु शिविर में कोई डाक्टर नजर ही नही आया जो बच्चों की व्यवस्थित जांच कर सके। इधर ओपीडी में महिला चिकित्सक डा. रोशनी गौतम आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी जो कि वर्तमान में चंदना में पदस्थ है, किन्तु वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर परसवाड़ा अस्पताल में दो दिन सेवाएं प्रदान करती है, इस दौरान ओपीडी संभाल रही महिला चिकित्सक ने कहा कि मैने ऐसा सुना है कि बालाघाट से ऐसे आदेश आए हैं कि 7 ग्राम खून से कम वाले बच्चों का एच बी टेस्ट कर उन्हें बालाघाट रिफर किया जा रहा है। जिनका वहां पर अच्छे से उपचार होगा। इस दौरान देखा गया कि लेब टेक्नेशियन द्वारा सिर्फ एच बी टेस्ट कुपोषित बच्चों का ही किया जा रहा है, बाकि मरीजों को बिना जांच के दवाईयां लेनी पड़़ रहीं है, या फिर बिना इलाज के वापस मायूस होकर जाना पड़ रहा है।
समय पर नहीं हो पाती कोई जांच
लेब टेक्नेशियन श्यामा मरकाम ने बताया कि यहां पर दो लेब टेक्नेशियन है किन्तु आज वे अकेले ही जांच कर रहीं है, उन्होने बताया कि कुपोषित बच्चों का केम्प लगा हुआ है, जिसके कारण अन्य मरीजों की जांच नहीं की जा सकती, इस दौरान अधिकांश मरीज खून की जांच के लिए घंटों इधर से उधर भटकते नजर आए, वहीं कुपोषित बच्चों की जांच कर रही टेक्नेशियन से जानकारी ली गई कि अब तक कितने कुपोषित बच्चों की संख्या पाई गई है तो सीधा जवाब न देकर आशाओ को इसकी पूरी जानकारी होने की बात कहते नजर आई।
बहरहाल जो भी हो किन्तु स्टाफ की कमी के साथ साथ पदस्थ अन्य कर्मचारियों की उदासीनता के चलते मरीज यहां परेशान होते रहते हैं किन्तु उनका कोई उचित उपचार नही हो पाता है।
अक्सर स्टाफ रहता है नदारद
वैसे तो इस अस्पताल में किसी प्रकार की जानकारी अगर लेना हो तो कोई जिम्मेदार व्यक्ति अक्सर होता ही नहीं है, यहां पर कोई ऐसा सूचना बोर्ड भी नही है, जिस पर वर्तमान समय में पदस्थ ड्यूटी कर्मचारियों की संख्या अंकित हो, बहरहाल लेब टेक्नेशियन के नाम पर दो कर्मचारियों की पदस्थापना बताया जा रहा है, किन्तु लेब में एक ही महिला टेक्नेशियन मौजूद होती है, दूसरे का अक्सर पता नही होता है, जिनकी जानकारी पर पता चलता है कि दूसरे टेक्नेशियन अन्यत्र सेवा देने गए हैं, या फिर फिल्ड में है, अक्सर अस्पताल में एक ही जवाब सुनने मिलता है, जो भी अधिकारी कर्मचारी उपस्थित नही होता वह फील्ड पर होता है। इसके अलावा और भी कई पदस्थ अधिकारी कर्मचारी है जो फिल्ड का बहाना या और कोई बहाना बनाकर अक्सर नदारद रहते है। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पर स्वास्थ्य व्यवस्था किस तरह लचर पड़ी हुई है।
इन दिनों अस्पताल में कर्मचारियों का मरीजों तथा उनके परिजनो के साथ बर्ताव भी ऐसा होता है, जैसे मरीजों का इलाज कर उन पर ऐहसान किया जा रहा हो, खैर इस पर भी बेचारे ग्रामीण किसी तरह इलाज के लिए लाईन लगाकर घंटों खड़े रहते है, किन्तु संबंधित इलाज करने वालों का कोई अतापता नही होता , बताया जाता है कि यहां कर्मचारियों का अपना समय है, उन्हे शासन प्रशासन के नियमों से शायद कोई लेनादेना नही है, अपनी मर्जी से आते हैं अपनी मर्जी से जाते है, तभी तो अस्पताल में खुलने और बंद होने का समय दिवारों तक ही सीमित रह गया है।
ब्लीचिंग पाउडर का नही किया जा रहा वितरण
जानकारी अनुसार इन दिनों परसवाड़ा अस्पताल में ब्लींचिंग पाउडर का भी वितरण नहीं किया जा रहा है, बताया जाता है कि ब्लीचिंग पाउडर मांगने पर आशा कार्यकर्ता से संपर्क करने कहा जाता है, किन्तु आशा से संपर्क करने पर जवाब मिलता है कि हमारे पास तो ब्लीचिंग पाउडर आया ही नही है, इस तरह गोलमोल घुमाकर लोगों को परेशान किया जा रहा है। जबकि स्थानीय मीडिया से मुखातिब होते हुए हाल ही मे जिला स्वास्थ्य अधिकारी अजय जैन ने बताया था कि दूसरे ही दिन से ब्लीचिंग पाउडर उपलब्ध कराकर तत्काल वितरण करवा दिया जाएगा, किन्तु एक पखवाड़े से ज्यादा का समय बीत चुका है और ब्लीचिंग पाउडर के लिए अभी भी लोगों को भटकना पड़ रहा है ।
औपचारिकताओं में स्वच्छता अभियान
पूरे देश में स्वच्छता अभियान को फोलो किया जा रहा है किन्तु परसवाड़ा अस्पताल में गंदगी का अंबार लगा हुआ है, यहां पर स्वच्छता अभियान महज औपचारिकताओ में ही सिमट कर रह गया है, गंदगी के अंबार से कमरे भी अछूते नही हैं, कई जगहों पर बदबू होने से मरीजों सहित परिजनों को परेशान होना पड़ता है, किन्तु अस्पताल प्रबंधन का इस ओर कोई ध्यान ही नही जाता है।
बाईट :- डॉ रोशनी गौतम, आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी,
2 श्रीमती श्यामा मरकाम, लेब टेक्नीशियन,Conclusion:सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज नही मिलने पर मजबूरन गांव के झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करवाने मजबूर है क्षेत्र के लोग, या फिर जिला अस्पताल का करते है रूख,,,वही जिला चिकित्सालय की दूरी ज्यादा होने के चलते कई बार मरीज को जान से हाथ तक धोना पड़ा है।
Last Updated : Oct 23, 2019, 11:07 AM IST