बालाघाट। मध्य प्रदेश में चुनावी बिगुल बच चुका है और अलग-अलग राजनीतिक दलों के द्वारा अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणाओं के बाद अब नामांकन की प्रक्रिया भी पूर्ण कर ली गई है. इसके बाद मध्य प्रदेश में सियासी पारा आसमान की ओर बढ़ चला है, ऐसे में अलग-अलग मुद्दों पर जमकर सियासत भी देखने को मिल रही है. इसके अलावा जुबानी जंग भी अब तेज होते नजर आ रही है और लगातार आरोप-प्रत्यारोप का दौर प्रारंभ हो चुका है. मगर इन सब के बीच मजेदार बात यह है कि नेता अभी से ख्याली पुलाव पकाने में मशगूल नजर आ रहे हैं.
आब्जर्वर ने कर दी मंत्रियों की घोषणा: बालाघाट की विधानसभा परसवाड़ा पहुंचे कांग्रेस के ऑब्जर्वर नरेश कुमार पत्रकारों से मुखातिब होते हुए जीत का दावा करते नजर आए. इस दौरान उन्होंने कहा कि "मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार पूर्ण बहुमत से बनने जा रही है, वहीं बालाघाट की सभी 6 सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराएगा." इसके अलावा पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने न केवल कांग्रेस की सरकार में आने वाली 3 दिसंबर को कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने की घोषणा की, बल्कि बालाघाट से दो मंत्रियों की जगह भी सुनिश्चित कर डाली, जिसमे इशारों-इशारों में बैहर विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी संजय उइके और परसवाड़ा विधानसभा से मधु भगत के नाम की पुष्टि भी करते नजर आए.
हालांकि परसवाड़ा के चुनावी समर में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावनाएं देखी जा रही है, जहां कौन विजयी होगा यह कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी. ऐसे में कहा जा सकता है कि विधायक बनने से पहले मंत्रियों के नाम की घोषणा किसी ख्याली पुलाव से कम नहीं है.
त्रिकोणीय हो सकता है परसवाड़ा का चुनावी समर: एक बार फिर परसवाड़ा विधानसभा में त्रिकोणीय संघर्ष के आसार नजर आने लगे हैं, जहां भाजपा से मंत्री रामकिशोर कावरे मैदान में है, तो वहीं कांग्रेस से पूर्व विधायक मधु भगत ने अपना नामांकन दाखिल किया है. इसके अलावा पूर्व सांसद कंकर मुंजारे एक बार फिर मैदान में कूद पड़े हैं, जिन्हें गोंडवाना के साथ ही बसपा का भी समर्थन प्राप्त है. परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण की बात की जाए तो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, जहां आदिवासी समुदाय की संख्या सबसे अधिक है. आदिवासियों ने अपनी एकता का परिचय देते हुए 2003 में विधानसभा चुनाव में अपना परचम भी लहराया था.
बहरहाल मध्य प्रदेश में चुनावी समर प्रारंभ हो चुका है, जहां अपने-अपने दावों के साथ वादों की झड़ी लगाने से कोई भी चूक नहीं रहा है. ऐसे में इस चुनावी वैतरणी को पार करने की जद्दोजहद में वादों और घोषणाओं की नैया कितनी कारगर साबित होगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.