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विधानसभा उपचुनाव: कांग्रेस-बीजेपी के लिए आसान नहीं है राह, जानिए आशोकनगर का सियासी समीकरण

प्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. इनमें अशोकनगर जिले की 2 विधानसभा अशोक नगर और मुंगावली में उपचुनाव होना है. कांग्रेस सरकार के दौरान विधायक रहे जजपाल सिंह जज्जी और बृजेंद्र सिंह यादव कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. उपचुनाव की तारीखों का एलान नहीं हुआ है, लेकिन प्रदेश का सियासी बिगुल बज चुका है. इन दोनों विधानसभा सीटों पर दोनों प्रमुख पार्टी बीजेपी-कांग्रेस की तैयारियां जोरों पर है.

Assembly by-election preparations
विधानसभा उपचुनाव की तैयारी
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Published : Jun 29, 2020, 6:50 PM IST

Updated : Jun 29, 2020, 9:34 PM IST

अशोकनगर। मध्यप्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. इनमें अशोकनगर जिले की 2 विधानसभा अशोक नगर और मुंगावली में उपचुनाव होना है. कांग्रेस सरकार के दौरान विधायक रहे जजपाल सिंह जज्जी और बृजेंद्र सिंह यादव कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. उपचुनाव की तारीखों का एलान नहीं हुआ है, लेकिन प्रदेश का सियासी बिगुल बज चुका है. इन दोनों विधानसभा सीटों पर दोनों प्रमुख पार्टी बीजेपी-कांग्रेस की तैयारियां जोरों पर हैं. एक तरह जहां बीजेपी के प्रत्याशित घोषित माने जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए इन दोनों विधानसभाओं से दमदार उम्मीदवार तलाशने का सफर जारी है.

विधानसभा उपचुनाव की तैयारी

15 महीने में गई कांग्रेस की सरकार

कोरोना महामारी के दस्तक देते ही मध्यप्रदेश की 15 महीने की सरकार को बीजेपी ने वापस वनवास का रास्ता दिखा दिया. और 15 साल राज करने वाली पार्टी एक बार फिर सियासी मिजाज में लौट आई, लेकिन इस मिजाज के बीच एक समझौते की डोर जिसे संभाल पाना एक बड़ी चुनौती है. अशोकनगर जिले में ज्योतिरादित्य सिंधिया का विशेष प्रभाव रहता है. लंबे समय से इस लोकसभा सीट से सिंधिया परिवार ही विजय का परचम लहराता रहा है. अब ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए हैं. तो मुख्य रूप से बीजेपी की ओर से प्रभावशाली नेतृत्व ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही रहेगा. वहीं अगर कांग्रेस की बात की जाए तो इस क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद कांग्रेस के किसी बड़े नेता का प्रभाव नहीं दिखाई देता. फिर भी दिग्विजय सिंह और उनके बेटे जयवर्धन सिंह इस क्षेत्र के लिए प्रभावशाली नेता आंके जा रहे हैं.

अशोकनगर विधानसभा का सियासी सफर

अशोकनगर विधानसभा सीट में वोटरों की कुल संख्या 17 लाख 8 हजार 260 है. पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा इस सीट पर जीत हासिल करती आ रही है. लेकिन 2018 में हुए चुनाव में लंबे समय के बाद कांग्रेस इस सीट पर चुनाव जीती है. 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर गोपीलाल जाटव ने जजपाल सिंह जज्जी को 3348 मतों से हराया था. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा से लड्डूराम कोरी और कांग्रेस से जजपाल सिंह के बीच मुकाबला हुआ था. जिसमें जजपाल सिंह जज्जी ने भाजपा प्रत्याशी लड्डू राम कोरी को 9730 वोटों से हरा दिया था. दरअसल जसपाल सिंह जज्जी सिंधिया खेमे से आते हैं, इसलिए हाल ही में उन्होंने सिंधिया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद अपने विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा है.और अब अशोक नगर विधानसभा सीट से उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी के रूप में आंके जाते हैं.

2003 में अशोकनगर बना जिला

अशोक नगर विधानसभा की बात की जाए तो अशोकनगर में 2003 में गुना जिले का हिस्सा हुआ करता था. जबकि साडोरा सीट साल 1977 में अस्तित्व में आई थी. तब से 2003 तक इस सीट पर 7 बार चुनाव हुए, उस समय प्रत्येक जिले में एक सीट आरक्षित रखी गई थी. इसलिए यह सीट गुना जिले की आरक्षित सीट के रूप में बनी हुई थी. इस सीट का विस्तार वर्तमान अशोकनगर जिले के साढ़ौरा और नईसराय और शेष हिस्सा गुना जिले के अंतर्गत आता था.

2003 में 15 अगस्त को गुना जिले का विभाजन कर अशोकनगर को नया जिला बनाया गया. दो जिले होने के कारण दोनों में अलग-अलग सुरक्षित सीट बनानी पड़ी. इसलिए साडोरा सीट का जो हिस्सा गुना जिले की सीमा में आता है. उसे गुना सीट में शामिल कर गुना को आरक्षित कर दिया गया. वही जो हिस्सा अशोकनगर जिले की सीमा में आता है उसे अशोकनगर में मिलाकर आरक्षित सीट बनाया गया. वहीं पुराने अशोकनगर का कुछ हिस्सा ईसागढ़- चंदेरी सीट में भी चला गया.

ये है सियासी समीकरण

कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए विधायकों को बीजेपी की ओर से टिकट मिलना तय माना जा रहा है. मगर फिर भी उनके लिए यह जीत आसान नहीं दिखाई दे रही. अगर मतदाताओं की माने तो उनका कहना है कि उन्होंने विधायक को 5 साल के लिए चुना था. मगर बीच में ही अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए इस्तीफा देकर प्रदेश में दोबारा चुनाव कराना यह सही नहीं है. कांग्रेस भी निश्चित ही इस बात को मुद्दा बनाएगी. वहीं कांग्रेस पार्टी से बागी होकर बीजेपी से आए विधायकों को टिकट मिलने से ऐसे नेता जो बीजेपी में लंबे समय से काम कर रहे हैं, वे अपनी दावेदारी विधानसभा सीट पर करते आ रहे हैं. उन्हें यह बात नागवार गुजर रही है. इससे पार्टी में बगावत भी हो सकती है. अगर वह कार्यकर्ता बागी होकर कांग्रेसी खेमे में जाता है तो निश्चित ही बीजेपी को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

विधानसभा क्षेत्र के लोगों की शिकायत

अशोकनगर विधानसभा सीट के मतदाताओं की मानें तो यहां पर कोई विकास कार्य देखने को नहीं मिला है. इस विधानसभा सीट पर शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का भी अभाव देखने को मिलता है. जिला चिकित्सालय का हाल काफी बेहाल बना हुआ है. वहीं शिक्षा के लिए भी कई इंतजाम क्षेत्र में देखने को नहीं मिलते हैं. जितने भी विधायक इस विधानसभा सीट से विजयी हुए उन्होंने बातें तो बड़ी बड़ी की. मगर जमीनी स्तर पर कोई विकास कार्य नहीं कराए गए.

दोनों पार्टी ने जीत का किया दावा

अशोक नगर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं. हार और जीत का फैसला तो मतदाता करेंगे. मगर फिर भी जहां एक तरफ कांग्रेस 15 महीने में किए गए विकास कार्यों का मुद्दा बता कर जनता के बीच जाने का दावा कर रही है. तो वहीं जीत का दावा करने वाली बीजेपी अपने पिछले कार्यकालों को बताकर जनता के बीच जाने की बात कह रही है.

आसान नहीं होगा सफर

लेकिन हाल ही में हुए घटनाक्रम के बाद अभी यह नहीं कहा जा सकता कि होने वाले उपचुनाव में इस सीट पर विजय किसकी होगी?, लेकिन जजपाल सिंह जज्जी के भाजपा में शामिल होने के बाद चुनाव आते-आते बीजेपी के कुछ नेता बागी हो सकते हैं, और जसपाल सिंह जज्जी के लिए चुनाव जीत में अड़ंगा डाल सकते हैं. कांग्रेस की ये कोशिश भी होगी कि बीजेपी से बागी होने वाले नेताओं को अपनी ओर खींच कर कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ाया जाए. अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को चुनाव जीतना इतना आसान नहीं होगा.

अशोकनगर। मध्यप्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. इनमें अशोकनगर जिले की 2 विधानसभा अशोक नगर और मुंगावली में उपचुनाव होना है. कांग्रेस सरकार के दौरान विधायक रहे जजपाल सिंह जज्जी और बृजेंद्र सिंह यादव कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. उपचुनाव की तारीखों का एलान नहीं हुआ है, लेकिन प्रदेश का सियासी बिगुल बज चुका है. इन दोनों विधानसभा सीटों पर दोनों प्रमुख पार्टी बीजेपी-कांग्रेस की तैयारियां जोरों पर हैं. एक तरह जहां बीजेपी के प्रत्याशित घोषित माने जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए इन दोनों विधानसभाओं से दमदार उम्मीदवार तलाशने का सफर जारी है.

विधानसभा उपचुनाव की तैयारी

15 महीने में गई कांग्रेस की सरकार

कोरोना महामारी के दस्तक देते ही मध्यप्रदेश की 15 महीने की सरकार को बीजेपी ने वापस वनवास का रास्ता दिखा दिया. और 15 साल राज करने वाली पार्टी एक बार फिर सियासी मिजाज में लौट आई, लेकिन इस मिजाज के बीच एक समझौते की डोर जिसे संभाल पाना एक बड़ी चुनौती है. अशोकनगर जिले में ज्योतिरादित्य सिंधिया का विशेष प्रभाव रहता है. लंबे समय से इस लोकसभा सीट से सिंधिया परिवार ही विजय का परचम लहराता रहा है. अब ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए हैं. तो मुख्य रूप से बीजेपी की ओर से प्रभावशाली नेतृत्व ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही रहेगा. वहीं अगर कांग्रेस की बात की जाए तो इस क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद कांग्रेस के किसी बड़े नेता का प्रभाव नहीं दिखाई देता. फिर भी दिग्विजय सिंह और उनके बेटे जयवर्धन सिंह इस क्षेत्र के लिए प्रभावशाली नेता आंके जा रहे हैं.

अशोकनगर विधानसभा का सियासी सफर

अशोकनगर विधानसभा सीट में वोटरों की कुल संख्या 17 लाख 8 हजार 260 है. पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा इस सीट पर जीत हासिल करती आ रही है. लेकिन 2018 में हुए चुनाव में लंबे समय के बाद कांग्रेस इस सीट पर चुनाव जीती है. 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर गोपीलाल जाटव ने जजपाल सिंह जज्जी को 3348 मतों से हराया था. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा से लड्डूराम कोरी और कांग्रेस से जजपाल सिंह के बीच मुकाबला हुआ था. जिसमें जजपाल सिंह जज्जी ने भाजपा प्रत्याशी लड्डू राम कोरी को 9730 वोटों से हरा दिया था. दरअसल जसपाल सिंह जज्जी सिंधिया खेमे से आते हैं, इसलिए हाल ही में उन्होंने सिंधिया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद अपने विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा है.और अब अशोक नगर विधानसभा सीट से उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी के रूप में आंके जाते हैं.

2003 में अशोकनगर बना जिला

अशोक नगर विधानसभा की बात की जाए तो अशोकनगर में 2003 में गुना जिले का हिस्सा हुआ करता था. जबकि साडोरा सीट साल 1977 में अस्तित्व में आई थी. तब से 2003 तक इस सीट पर 7 बार चुनाव हुए, उस समय प्रत्येक जिले में एक सीट आरक्षित रखी गई थी. इसलिए यह सीट गुना जिले की आरक्षित सीट के रूप में बनी हुई थी. इस सीट का विस्तार वर्तमान अशोकनगर जिले के साढ़ौरा और नईसराय और शेष हिस्सा गुना जिले के अंतर्गत आता था.

2003 में 15 अगस्त को गुना जिले का विभाजन कर अशोकनगर को नया जिला बनाया गया. दो जिले होने के कारण दोनों में अलग-अलग सुरक्षित सीट बनानी पड़ी. इसलिए साडोरा सीट का जो हिस्सा गुना जिले की सीमा में आता है. उसे गुना सीट में शामिल कर गुना को आरक्षित कर दिया गया. वही जो हिस्सा अशोकनगर जिले की सीमा में आता है उसे अशोकनगर में मिलाकर आरक्षित सीट बनाया गया. वहीं पुराने अशोकनगर का कुछ हिस्सा ईसागढ़- चंदेरी सीट में भी चला गया.

ये है सियासी समीकरण

कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए विधायकों को बीजेपी की ओर से टिकट मिलना तय माना जा रहा है. मगर फिर भी उनके लिए यह जीत आसान नहीं दिखाई दे रही. अगर मतदाताओं की माने तो उनका कहना है कि उन्होंने विधायक को 5 साल के लिए चुना था. मगर बीच में ही अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए इस्तीफा देकर प्रदेश में दोबारा चुनाव कराना यह सही नहीं है. कांग्रेस भी निश्चित ही इस बात को मुद्दा बनाएगी. वहीं कांग्रेस पार्टी से बागी होकर बीजेपी से आए विधायकों को टिकट मिलने से ऐसे नेता जो बीजेपी में लंबे समय से काम कर रहे हैं, वे अपनी दावेदारी विधानसभा सीट पर करते आ रहे हैं. उन्हें यह बात नागवार गुजर रही है. इससे पार्टी में बगावत भी हो सकती है. अगर वह कार्यकर्ता बागी होकर कांग्रेसी खेमे में जाता है तो निश्चित ही बीजेपी को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

विधानसभा क्षेत्र के लोगों की शिकायत

अशोकनगर विधानसभा सीट के मतदाताओं की मानें तो यहां पर कोई विकास कार्य देखने को नहीं मिला है. इस विधानसभा सीट पर शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का भी अभाव देखने को मिलता है. जिला चिकित्सालय का हाल काफी बेहाल बना हुआ है. वहीं शिक्षा के लिए भी कई इंतजाम क्षेत्र में देखने को नहीं मिलते हैं. जितने भी विधायक इस विधानसभा सीट से विजयी हुए उन्होंने बातें तो बड़ी बड़ी की. मगर जमीनी स्तर पर कोई विकास कार्य नहीं कराए गए.

दोनों पार्टी ने जीत का किया दावा

अशोक नगर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं. हार और जीत का फैसला तो मतदाता करेंगे. मगर फिर भी जहां एक तरफ कांग्रेस 15 महीने में किए गए विकास कार्यों का मुद्दा बता कर जनता के बीच जाने का दावा कर रही है. तो वहीं जीत का दावा करने वाली बीजेपी अपने पिछले कार्यकालों को बताकर जनता के बीच जाने की बात कह रही है.

आसान नहीं होगा सफर

लेकिन हाल ही में हुए घटनाक्रम के बाद अभी यह नहीं कहा जा सकता कि होने वाले उपचुनाव में इस सीट पर विजय किसकी होगी?, लेकिन जजपाल सिंह जज्जी के भाजपा में शामिल होने के बाद चुनाव आते-आते बीजेपी के कुछ नेता बागी हो सकते हैं, और जसपाल सिंह जज्जी के लिए चुनाव जीत में अड़ंगा डाल सकते हैं. कांग्रेस की ये कोशिश भी होगी कि बीजेपी से बागी होने वाले नेताओं को अपनी ओर खींच कर कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ाया जाए. अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को चुनाव जीतना इतना आसान नहीं होगा.

Last Updated : Jun 29, 2020, 9:34 PM IST
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