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जान की बाजी लगाने को मजबूर हुए छात्र, जर्जर हो चुके भवन में चल रहा छात्रावास - dilapidated hostel in Jaithari development block

अनूपपुर ग्राम पंचायत लाहसुना में स्थित आदिवासी बालक छात्रावास जर्जर हो चुका है. भवन किसी भी समय गिर सकता है. ऐसे में बच्चे जान जोखिम में डाल रहने के लिये मजबूर हैं.

जर्जर हो चुके भवन
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Published : Aug 26, 2019, 3:36 PM IST

Updated : Aug 26, 2019, 5:32 PM IST

अनूपपुर। दीवारों में दरार, टपकती छतें, भवन की दीवारों पर उगे पौधे, टूटे दरवाजे और गंदे शौचालय, यह हाल है अनूपपुर जिले के जैतहरी विकासखण्ड की ग्राम पंचायत लाहसुना में स्थित आदिवासी बालक छात्रावास का. भवन की स्थिति बहुत ही ज्यादा जर्जर है, जो कभी भी गिर सकता है. इससे छात्रावास में रहने वाले बच्चों पर हर समय खतरा बना हुआ है. इसी खतरे के भय से बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता. ऐसी हालत के बावजूद भी इस जर्जर भवन में 50 सीटों का छात्रावास संचालित हो रहा है, जिसकी जानकारी जिम्मेदार अधिकारियों को भी है.

जान की बाजी लगाने को मजबूर हुए छात्र

यह छात्रावास 1980 में 20 सीटों के साथ संचालित हुआ था. भवन में दो कमरे में ही बच्चों की रहने की व्यवस्था है. फिर भी यहां सीटें बढ़ाकर 50 कर दी गईं, जिससे अब एक बेड पर दो बच्चे सोते हैं. भवन में बारिश के दिनों में दीवारों से पानी अंदर आता है, जिससे दीवारों में काई जम गई है. दीवारें कई जगह से उखड़ चुकी हैं और छत झुक गई है, जो कभी भी गिर सकती है. जिस कारण बच्चों की जान को खतरा बना हुआ है. छत को लेकर बच्चे दहशत में है, शौचालय की स्थिति भी भवन जैसी ही खराब है. हैंडपंप से भी लाल पानी निकल रहा है, जिसका उपयोग करने के लिए बच्चे मजबूर हैं.

छात्रावास अधीक्षक द्वारा कई बार विकासखण्ड अधिकारी और सहायक आयुक्त के साथ कलेक्टर को भी लिखित और मौखिक रूप से जर्जर छात्रावास की जानकारी दी जा चुकी है. बावजूद इसके अधिकारियों ने अभी तक कोई सुध नहीं ली है. वहीं जब ट्राइबल विभाग के सहायक आयुक्त डीएस राव को मामले की जानकारी दी गई, तो उन्होंने प्रपोजल भिजवाकर नए भवन की मांग किए जाने की बात कही. तत्काल में अतिरिक्त कक्ष की व्यवस्था करने की बात कही.

अनूपपुर। दीवारों में दरार, टपकती छतें, भवन की दीवारों पर उगे पौधे, टूटे दरवाजे और गंदे शौचालय, यह हाल है अनूपपुर जिले के जैतहरी विकासखण्ड की ग्राम पंचायत लाहसुना में स्थित आदिवासी बालक छात्रावास का. भवन की स्थिति बहुत ही ज्यादा जर्जर है, जो कभी भी गिर सकता है. इससे छात्रावास में रहने वाले बच्चों पर हर समय खतरा बना हुआ है. इसी खतरे के भय से बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता. ऐसी हालत के बावजूद भी इस जर्जर भवन में 50 सीटों का छात्रावास संचालित हो रहा है, जिसकी जानकारी जिम्मेदार अधिकारियों को भी है.

जान की बाजी लगाने को मजबूर हुए छात्र

यह छात्रावास 1980 में 20 सीटों के साथ संचालित हुआ था. भवन में दो कमरे में ही बच्चों की रहने की व्यवस्था है. फिर भी यहां सीटें बढ़ाकर 50 कर दी गईं, जिससे अब एक बेड पर दो बच्चे सोते हैं. भवन में बारिश के दिनों में दीवारों से पानी अंदर आता है, जिससे दीवारों में काई जम गई है. दीवारें कई जगह से उखड़ चुकी हैं और छत झुक गई है, जो कभी भी गिर सकती है. जिस कारण बच्चों की जान को खतरा बना हुआ है. छत को लेकर बच्चे दहशत में है, शौचालय की स्थिति भी भवन जैसी ही खराब है. हैंडपंप से भी लाल पानी निकल रहा है, जिसका उपयोग करने के लिए बच्चे मजबूर हैं.

छात्रावास अधीक्षक द्वारा कई बार विकासखण्ड अधिकारी और सहायक आयुक्त के साथ कलेक्टर को भी लिखित और मौखिक रूप से जर्जर छात्रावास की जानकारी दी जा चुकी है. बावजूद इसके अधिकारियों ने अभी तक कोई सुध नहीं ली है. वहीं जब ट्राइबल विभाग के सहायक आयुक्त डीएस राव को मामले की जानकारी दी गई, तो उन्होंने प्रपोजल भिजवाकर नए भवन की मांग किए जाने की बात कही. तत्काल में अतिरिक्त कक्ष की व्यवस्था करने की बात कही.

Intro: दीवारों में दरार, टपकती छतें ,भवन में उगे हुए पौधे , टूटे दरवाजे तथा टूटे शौचालय को देख दिमाग में एक ही कल्पना आती है वही पुरानी फिल्मों की भूत बंगला की तस्वीर दिमाग में छप जाती हैं ठीक वैसे ही आदिवासी छात्रावास में रहने को छात्र मजबूर है मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विद्यालयों एवं छात्रावासों के लिए अनेक व्यवस्थाए किए जा रहे है तो एक तरफ अनूपपुर जिले के जैतहरी विकासखण्ड की ग्राम पंचायत लाहसुना में स्थित आदिवासी बालक छत्रावास भवन की स्थिति बहुत ही ज्यादा जर्जर है जो कभी भी गिर सकता है जिससे छत्रावास में रहने वाले बच्चो पर खतरा बना हुआ है। डर के भय से बच्चो का पड़ने में मन नही लगता यहाँ तक कि शौचालय की छत की स्थिति बुरी बनी हुई है फिर भी इस जर्जर भवन में 50 सीटों की छत्रावास संचालित है जिसकी जानकारी जिम्मेदार अधिकारियों को भी है।



Body:आदिवासी बालक छत्रावास लहसुना लगभग 1980 से 20 सीटो के साथ संचालित है जबकि भवन में दो कमरे में ही बच्चो की रहने की व्यवस्था है और छोटा सा रसोई घर व छोटा सा बरामदा है जहाँ अधीक्षक के ऑफिस स्थापित है जगह न होने पर भी इस भवन को बाद में बढ़ा कर 50 सीट वाली कर दी गई जिस कारण एक सीट में दो बच्चे सोते है जो अब जर्जर हो गई है बरसात में दीवालों से अंदर पानी आ जाते है जिससे दीवालों में काई जम गए है और दीवालों की छपाई उखड़ रही है तो कही उखड़ चुकी है दिवाले फट गए है और छत झुक गई है जो कभी भी गिर सकती है जिस कारण बच्चो की जान को खतरा बना हुआ छत को लेकर बच्चें दहशत में है तो वही शौचालय की स्थिति भी भवन के जैसी है अगर पानी की सुविधा के तरफ ध्यान दिया जाए तो हैण्डपम्प से निकलने वाली पानी भी लाल है जो उपयोग में लाया जाता है।Conclusion:छत्रावास अधीक्षक द्वारा कई बार विकासखण्ड अधिकारी एवं सहायक आयुक्त व कलेक्टर को लिखित एवं मौखिक रूप में जर्जर छत्रावास की जानकारी दी जा चुकी है जानकारी होने के वावजूद भी अधिकारी सुस्त दिखाई दे रहे है अभी तक किसी को जर्जर छत्रावास की सुध नही आ रही है अब आलम यह है कि सम्बंधित अधिकारी बच्चो के साथ दुर्घटना होने का इंतजार कर रहे है।
वही जिले के जिम्मेदार ट्राइवल विभाग के सहायक आयुक्त डी एस राव की मामले की जानकारी दी तो प्रपोजल भेजवा नए भवन की मांग किये जाने की बात कही वही तत्काल मैं अतिरिक्त कछ मैं व्यवस्था करने की बात कही।



बाइट:- 01 प्रताप सिंह, छात्र।

बाइट:- 02 रंजीत सिंह, छात्र।

बाइट:- 03 अमृत सिंह परस्ते, अधीक्षक छत्रावास।

बाइट:- 04 डी एस राव सहायक आयुक्त ट्राईवल।
Last Updated : Aug 26, 2019, 5:32 PM IST
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