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लॉकडाउन की तंगी के बीच रूपा बनी मिसाल

अनूपपुर जिले के कोतमा जनपद में रहने वाली रुपा ने कोराना काल में आत्मनिर्भर बनकर परिवार की बिगड़ी हालत को संभाला. रुपा ने लॉकडाउन के कठिन समय में मास्क बनाकर अपने और परिवार की आजिविका चला रही हैं. पढ़िए पूरी खबर.

आत्मनिर्भर रुपा,  कोतमा जनपद
रुपा
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Published : Feb 23, 2021, 10:56 PM IST

अनूपपुर। जिले के कोतमा जनपद अंचल की रहने वाली रूपा ने कोरोना काल में लाॅकडाउन के चलते जब सभी तरह के काम-धंधे बंद हो गए थे. ऐसे हालातों के बीच रुपा ने अपनी सूझबूझ से मास्क बनाने का काम शुरू किया. इस काम में होने वाली कमाई से वह अपने परिवार की आजीविका बेहतर ढंग से चला रही हैं.

रूपा के पति कृषि मजूदर हैं. पति का साथ देने के लिए वह आसपास के गांवों में लगने वाले हाट-बाजार में जाकर सिलाई का कार्य लाकर परिवार की आजीविका चलाया करती थी. वहीं लाॅकडाउन के दौरान उनके यहां सिलाई के लिए कपड़ा आना बंद हो गया. सिलाई कार्य बंद हो जाने से रूपा की आय में कमी आ गई. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया. लाॅकडाउन की वजह से गांव से बाहर निकलना नहीं हो पाता था. जिस कारण आसपास के गांवों की महिलाएं सिलाई करवाने नहीं आ पाती थी. इस तरह रूपा का सिलाई का व्यवसाय पूरी तरह ठप हो गया.

मास्क निर्माण बना मददगार

इसी बीच कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए मास्क बनाने का कार्य शुरू हो गया. रूपा ने मास्क बनाकर कमाई करने की ठानी. और वह आजीविका मिशन द्वारा गठित स्वसहायता समूह से जुड़ गई. म.प्र. ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा रूपा को मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना की वित्तीय मदद से मास्क बनाने का कार्य मिल गया. रूपा ने 7500 मास्क बना दिए. जिसकी बदौलत उसने ना केवल एक सेकेंडहैंड स्कूटी खरीदी साथ ही पति को साइकिल रिपेयरिंग की दुकान भी खुलवा दी. जिसके चलते उनके परिवार की आमदनी कई गुना तक बढ़ गई.

सिलाई मशीन ने संवारी जिंदगी

रूपा अपने पुराने दिन याद कर बताती हैं कि उन्हें अपने कार्य के सिलसिले में आसपास के गांवों में आने-जाने में कठिनाई होती थी. उनके पास साइकिल तक नहीं थी. अब स्कूटी आ जाने से आसपास के गांवों में जाने में सहुलियत हो गई है. रूपा कहती हैं कि कभी मेरी हैसियत साईकिल तक पर चलने की नहीं थी. आज मैं स्कूटी पर चल रही हूं. वह कहती हैं कि उन्हें सिलाई कार्य से प्रतिदिन 300 से 350 रुपये की आमदनी हो जाती है.

अनूपपुर। जिले के कोतमा जनपद अंचल की रहने वाली रूपा ने कोरोना काल में लाॅकडाउन के चलते जब सभी तरह के काम-धंधे बंद हो गए थे. ऐसे हालातों के बीच रुपा ने अपनी सूझबूझ से मास्क बनाने का काम शुरू किया. इस काम में होने वाली कमाई से वह अपने परिवार की आजीविका बेहतर ढंग से चला रही हैं.

रूपा के पति कृषि मजूदर हैं. पति का साथ देने के लिए वह आसपास के गांवों में लगने वाले हाट-बाजार में जाकर सिलाई का कार्य लाकर परिवार की आजीविका चलाया करती थी. वहीं लाॅकडाउन के दौरान उनके यहां सिलाई के लिए कपड़ा आना बंद हो गया. सिलाई कार्य बंद हो जाने से रूपा की आय में कमी आ गई. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया. लाॅकडाउन की वजह से गांव से बाहर निकलना नहीं हो पाता था. जिस कारण आसपास के गांवों की महिलाएं सिलाई करवाने नहीं आ पाती थी. इस तरह रूपा का सिलाई का व्यवसाय पूरी तरह ठप हो गया.

मास्क निर्माण बना मददगार

इसी बीच कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए मास्क बनाने का कार्य शुरू हो गया. रूपा ने मास्क बनाकर कमाई करने की ठानी. और वह आजीविका मिशन द्वारा गठित स्वसहायता समूह से जुड़ गई. म.प्र. ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा रूपा को मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना की वित्तीय मदद से मास्क बनाने का कार्य मिल गया. रूपा ने 7500 मास्क बना दिए. जिसकी बदौलत उसने ना केवल एक सेकेंडहैंड स्कूटी खरीदी साथ ही पति को साइकिल रिपेयरिंग की दुकान भी खुलवा दी. जिसके चलते उनके परिवार की आमदनी कई गुना तक बढ़ गई.

सिलाई मशीन ने संवारी जिंदगी

रूपा अपने पुराने दिन याद कर बताती हैं कि उन्हें अपने कार्य के सिलसिले में आसपास के गांवों में आने-जाने में कठिनाई होती थी. उनके पास साइकिल तक नहीं थी. अब स्कूटी आ जाने से आसपास के गांवों में जाने में सहुलियत हो गई है. रूपा कहती हैं कि कभी मेरी हैसियत साईकिल तक पर चलने की नहीं थी. आज मैं स्कूटी पर चल रही हूं. वह कहती हैं कि उन्हें सिलाई कार्य से प्रतिदिन 300 से 350 रुपये की आमदनी हो जाती है.

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