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आंखों के सामने पिता ने कोरोना से तोड़ दिया दम, अंतिम संस्कार के बाद दोबारा काम पर लौटीं कविता राठौर, जरूर पढ़ें...

कोरोना महामारी में स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे कोरोना वॉरियर्स की कई कहानियां आपने पढ़ी होंगी. लेकिन एक अनूपपुर की 34 वर्षीय महिला स्वास्थ्य अधिकारी कविता राठौर के बारे में जानकार आप हैरान रह जाएंगे.

kavita rathore continuously serving corona patients in anuppur
कोरोना वॉरियर कविता राठौर
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Published : Jun 13, 2021, 10:03 PM IST

अनूपपुर। कोरोना महामारी के दौर में लगातार कोरोना वॉरियर्स मोर्चा संभाले हुए हैं. पहले दिन से अभी तक बिना अपनी जान की फिक्र किए यह स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे हैं. अनूपपुर के छुलहा उप स्वास्थ्य केन्द्र के कोविड आइसोलेशन वार्ड में कार्यरत एक महिला अधिकारी दिन-रात मरीजों की सेवा कर रही हैं. 34 वर्षीय सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी कविता राठौर अपने पिता को खोने के बाद भी आज स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं. सवा साल से उन्होंने अवकाश तक नहीं लिया है.

पिता की मौत के बाद तुरंत काम पर लौटीं

कोविड आइसोलेशन वॉर्ड में भर्ती गंभीर मरीजों का कविता लगातार इलाज कर रही हैं. इस चुनौती काल में उनके सामने एक पल वह भी आया, जब उनके पिता कोरोना संक्रमित हो गए. इलाज के लिए उनके पिता को उसी कोविड आइसोलेशन वॉर्ड में भर्ती किया गया, जहां कविता कार्यरत हैं. दूसरे मरीजों के साथ-साथ उन्होंने अपने पिता की भी भरपूर सेवा की. मगर वह बच ना सके. पिता की मौत का गम आंसुओं के सैलाब के रूप में फूट पड़ा. पारिवारिक दायित्व निभाने उन्हें पिता के अंतिम संस्कार में जाना पड़ा. किन्तु वहां उनका मन यह सोचकर व्याकुल हो उठा कि कहीं उनके पिता की तरह किसी अन्य मरीज के साथ ऐसा ना हो जाए. इसी के चलते वह पिता के अंतिम संस्कार के बाद घर पर रुक नहीं सकीं और सीधे काम पर लौट आईं.

घर नहीं जाती हैं कविता

कोरोना संक्रमण से परिवार को बचाने के लिए कविता अपने घर तक नहीं जातीं. वह स्टाफ के साथ रेस्ट हाउस में रहती हैं. उनके पति ने भी उन्हें इस काम के लिए प्रोत्साहित किया. मरीजों की सेवा को देखते हुए कविता ने सवा साल से अवकाश नहीं लिया. कविता कहती हैं कि, वह जब भी मरीजों को देखती हैं, तो उनके सामने पिता का चेहरा आ जाता है और मरीजों को स्वस्थ करने का उन पर जुनून सवार हो जाता है. 24 घंटे में से वह अपने लिए महज 4 घंटे ही निकाल पाती हैं. जब कोई मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौटता है, तो बहुत प्रसन्नता होती है.

Dedicated Health Worker के व्यक्तित्व की सराहना, घर से 200 KM दूर से आकर दे रही सेवा

कोविड मरीजों का बढ़ाती हैं मनोबल

कविता का ऐसे मरीजों से भी सामना हुआ, जो अपनी बीमारी को लेकर डरने, घबराने और रोने लगते थे. वह रात-रात भर जाग कर ऐसे मरीजों को समझाकर उनका मनोबल बढ़ाती हैं. कविता मरीजों के प्रति हमेशा चैकस रहती हैं. कविता के मधुर एवं सहज व्यवहार ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया है. कोरोना की विकट स्थिति में मानव सेवा के अपने इस जज्बे को कायम रखते हुए कविता जिस तरह से काम कर रही हैं, वह सराहनीय है.

अनूपपुर। कोरोना महामारी के दौर में लगातार कोरोना वॉरियर्स मोर्चा संभाले हुए हैं. पहले दिन से अभी तक बिना अपनी जान की फिक्र किए यह स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे हैं. अनूपपुर के छुलहा उप स्वास्थ्य केन्द्र के कोविड आइसोलेशन वार्ड में कार्यरत एक महिला अधिकारी दिन-रात मरीजों की सेवा कर रही हैं. 34 वर्षीय सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी कविता राठौर अपने पिता को खोने के बाद भी आज स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं. सवा साल से उन्होंने अवकाश तक नहीं लिया है.

पिता की मौत के बाद तुरंत काम पर लौटीं

कोविड आइसोलेशन वॉर्ड में भर्ती गंभीर मरीजों का कविता लगातार इलाज कर रही हैं. इस चुनौती काल में उनके सामने एक पल वह भी आया, जब उनके पिता कोरोना संक्रमित हो गए. इलाज के लिए उनके पिता को उसी कोविड आइसोलेशन वॉर्ड में भर्ती किया गया, जहां कविता कार्यरत हैं. दूसरे मरीजों के साथ-साथ उन्होंने अपने पिता की भी भरपूर सेवा की. मगर वह बच ना सके. पिता की मौत का गम आंसुओं के सैलाब के रूप में फूट पड़ा. पारिवारिक दायित्व निभाने उन्हें पिता के अंतिम संस्कार में जाना पड़ा. किन्तु वहां उनका मन यह सोचकर व्याकुल हो उठा कि कहीं उनके पिता की तरह किसी अन्य मरीज के साथ ऐसा ना हो जाए. इसी के चलते वह पिता के अंतिम संस्कार के बाद घर पर रुक नहीं सकीं और सीधे काम पर लौट आईं.

घर नहीं जाती हैं कविता

कोरोना संक्रमण से परिवार को बचाने के लिए कविता अपने घर तक नहीं जातीं. वह स्टाफ के साथ रेस्ट हाउस में रहती हैं. उनके पति ने भी उन्हें इस काम के लिए प्रोत्साहित किया. मरीजों की सेवा को देखते हुए कविता ने सवा साल से अवकाश नहीं लिया. कविता कहती हैं कि, वह जब भी मरीजों को देखती हैं, तो उनके सामने पिता का चेहरा आ जाता है और मरीजों को स्वस्थ करने का उन पर जुनून सवार हो जाता है. 24 घंटे में से वह अपने लिए महज 4 घंटे ही निकाल पाती हैं. जब कोई मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौटता है, तो बहुत प्रसन्नता होती है.

Dedicated Health Worker के व्यक्तित्व की सराहना, घर से 200 KM दूर से आकर दे रही सेवा

कोविड मरीजों का बढ़ाती हैं मनोबल

कविता का ऐसे मरीजों से भी सामना हुआ, जो अपनी बीमारी को लेकर डरने, घबराने और रोने लगते थे. वह रात-रात भर जाग कर ऐसे मरीजों को समझाकर उनका मनोबल बढ़ाती हैं. कविता मरीजों के प्रति हमेशा चैकस रहती हैं. कविता के मधुर एवं सहज व्यवहार ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया है. कोरोना की विकट स्थिति में मानव सेवा के अपने इस जज्बे को कायम रखते हुए कविता जिस तरह से काम कर रही हैं, वह सराहनीय है.

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