अलीराजपुर। जिले में सामाजिक न्याय एवं निशक्तजन कल्याण विभाग ने जिले में ब्लॉक स्तरीय दिव्यांग और कृतिम अंग चिन्हित शिविरों में दिव्यांग लोगों के साथ खिलवाड़ हो रहा है. दरअसल 5 तरह की दिव्यांगता तय करने के लिए महज ऑर्थो और नेत्र चिकित्सक ही दिव्यांगता प्रमाणित कर रहे हैं. जिससे ऐसे शिविर मजाक बन रहे हैं. इन शिविर पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं.
- 5 तरह की शारीरिक विकृतियों से परखी जाती है दिव्यांगता
सामाजिक न्याय एवं जनकल्याण विभाग द्वारा विकासखंड स्तर पर लगाए जाने वाले दिव्यांग शिविरों में 5 तरह की शारीरिक विकृतियां, अस्थि बाधित, नेत्र बाधित, मानसिक रुग्ण, मूक बधिरता और मानसिक मंदता की जांच की जाती है. और उन्हें प्रमाण पत्र देकर शासकीय योजनाओं का लाभ दिया जाता है. जिसके बाद ऐसे लोगों को कृतिम अंग दिए जाते हैं. लेकिन मूक बधिरता, गूंगापन और मानसिक दिव्यांगता के लिए जांच की जगह लक्षणों को देखकर चिन्हित किया जा रहा है.
- कंपनी के कर्मचारी ही कर रहे जांच
इस सम्बंध में कट्ठीवाड़ा मद में लगे शिविर में आए भारतीय कृतिम अंग निर्माण निगम (आलिम्को) के प्रोजेक्ट इंचार्ज शशांक पांडे ने बताया कि उनकी कंपनी से 12 लोगों की टीम जाती है. जिसमें प्रोस्थेटिक एंड ऑर्थो के प्रशिक्षित कर्मचारी रहते है. वे ग्रामीणों की जांच कर दिव्यांगों को चिन्हित करते हैं. मानसिक रुग्णता और मन्दता की पहचान कर उनके लिए आवश्यक सामग्री तैयार करवाते हैं. वहीं बहरेपन के लिए भी हमारी टीम के कर्मचारी ही जांच करते हैं. जिला चिकित्सालय के सूत्रों के अनुसार मेडिकल विशेषज्ञ, ईएनटी, साइकेट्रिस्ट की कमी के चलते इस तरह की दिव्यांगता की जांच अन्य विशेषज्ञ ही करते हैं.
- दिव्यांग शिविर में सिर्फ दो विशेषज्ञ
सिविल सर्जन और जिला मद मेडिकल बोर्ड के प्रमुख डॉ केसी गुप्ता का कहना है कि दिव्यांग शिविर के मेडिकल बोर्ड में दो विशेषज्ञ ही जा रहे हैं. जो अस्थि और नेत्र दिव्यांगता के साथ ही अन्य दिव्यांगों को भी चिन्हित कर रहे हैं. जिले में ईएनटी और साइकेट्रिस्ट की कमी है. अन्य तरह की दिव्यांगता सामान्यत निर्धारित की जा सकती है. आवश्यकता होने पर उन्हें जिला मुख्यालय पर भी बुलाकर जांच की जाती है. डॉ गुप्ता के अनुसार सामान्यतया अस्थि बाधित और नेत्र संबंधी दिव्यांगता अधिक संख्या में होती है.