आगर मालवा। जिले के सुसनेर से जुडे़ तीन गांव के लोगों ने राष्ट्रीय पक्षी मोर का संरक्षण करते हुए पांच साल में इनकी संख्या दोगुनी कर ली है. नाहरखेडा, उमरिया और लटुरी गांव के ग्रामीण अपने गांव और आसपास के क्षेत्र में रहने वाले मोरों को बचाने के लिए पूरी तरह से एकजुट होकर काम कर रहे हैं.
इन तीनों ही गांवों में मोरों की संख्या एक से डेढ़ हजार के लगभग है. ग्रामीणों की एकजुटता के चलते यहां मोरों के शिकार पर पूरी तरह से पाबंदी तो लगी ही है, साथ ही इनसे संरक्षण के अन्य उपाय भी किए गए.
मोरों को बचाने के लिए जैविक खाद का उपयोग
मोरों को बचाने के लिऐ उमरिया के कई ग्रामीण अपने खेतों में किटनाशक का उपयोग करने की बजाय जैविक खाद का उपयोग करते हैं. ग्राम उमरिया निवासी मांगीलाल शर्मा, नारायणलाल और लालसिंह के अनुसार खेतों में जैविक खाद डालने का उन्हें फायदा भी मिला है, उनकी फसल में पैदावार दो से तीन क्विंटल प्रति बीघा तक बढ़ गई है.
नाहरखेड़ा ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच कालू सिंह चौहान के अनुसार उनकी नाहरखैडा, उमरिया और समीपस्थ गांव लटुरी के ग्रामीण मोरों के सरंक्षण के लिए पूरी तरह से एक जुट हैं. कहीं पर भी मोरों के शिकार से जुड़ी कोई सूचना मिलती है, तो पूरा गांव उस जगह पहुंच जाता है. ग्रामीणों के इस तरह के प्रयासों से उनकी ग्राम पंचायत में मोरों की संख्या दोगुना हो गई है.
मोरों के शिकार की घटना बनी प्रेरणा
उमरिया में 5 वर्ष पहले मोर के शिकार की एक घटना, ग्रामीणों के लिए प्रेरणा का सबब बनी, करीब 5 साल पहले सुसनेर के दो से तीन लोग मोरों के शिकार के लिए उमरिया पहुंचे थे, सूचना मिलने पर ग्रामीण भी वहां पहुंचे, तो शिकारी भाग कर पिपलिया जा पहुंचे, जिन्हें ग्रामीणों ने पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया. इसके बाद इन ग्रामीणों ने मोरों के संरक्षण का अभियान शुरू कर दिया.
ग्रामीणों के इस तरह के प्रयासों से राष्ट्रीय पक्षी के संरक्षण को लेकर जागृति भी बढ़ने लगी है. वन परिक्षेत्र अधिकारी रितु चौधरी के अनुसार नाहरखेड़ा, उमरिया और लटुरी के ग्रामीणों की राष्ट्रीय पक्षी के सरंक्षण की पहल सराहनीय है.