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आगर: जालम सिंह ने बनाया घोषणा पत्र, लिखा- मेरी मौत के बाद नहीं हो मृत्युभोज - Death system custom

आगर के सालरी गांव के रहने वाले जालम सिंह ने समाज में व्याप्त कुप्रथा के खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ा है. जिसके तहत उन्होंने मृत्युभोज प्रथा को समाप्त करने का ऐसा संकल्प लिया है.

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Published : May 15, 2019, 11:59 PM IST

आगर। जिला मुख्यालय से महज14 किमी दूर सालरी गांव के जालमसिंह पर्यावरण और पशु प्रेमी है. जालम सिंह ने गांव में एक घोषणा की है, कि उनके मरने के बाद मृत्युभोज न किया जाए. जिसकी सभी ग्रामीण तारीफ कर रहे हैं.

कुप्रथा के खिलाफ जालम सिंह

जालम सिंह ने कहा कि इन्होंने1968 में एक धार्मिक कार्यक्रम में मृत्युभोज प्रथा को समाप्त करने का संकल्प लिया था. जो आज हर किसी के लिए एक मिसाल साबित हो रहा है. जालम सिंह की इस पहल का समर्थन उनका पूरा परिवार तक करता है. जालम सिंह ने कहा कि मैंने अपनी माता जी के मरने के बाद उनकी मृत्युभोज नहीं किया और जब मेरी पिताजी की मृत्यु 1994 में हुई उस समय भी मैंने मृत्युभोज नहीं किया था.

जालम सिंह खुद 40सालों से किसी के भी मृत्युभोज कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. इतना ही नहीं वे इतने सालों से लोगों को इस कुप्रथा को बंद करने के लिए समझाते आ रहे हैं. जालमसिंह ने स्वयं का मृत्युभोज न हो इसके लिए उन्होंने जीवित रहते ही एक घोषणा पत्र बनवा लिया है. जिसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि उनकी मृत्यु उपरांत उनका किसी प्रकार का मृत्युभोज का कार्यक्रम न किया जाएं, साथ ही समाज जनों के लिए लिखा है कि उनकी मृत्यु उपरांत उनके परिजनों पर मृत्युभोज कराने के लिए किसी प्रकार का दबाव न बनाया जाए. यह भी बता दे कि जालमसिंह ने इस कुप्रथा को बंद करने की शुरआत अपने अपने घर से है.

परिवार और रिश्तेदार की सहमति पर बोलते हुए जालम सिंह ने कहा कि मैंने इस प्रथा को बंद करने के लिए घोषणा पत्र तैयार किया है कि मेरी मृत्यु के बाद मृत्युभोज नहीं किया जाए. इसके लिए जालम सिंह समाज, अन्य संगठनों के हर जवाबदार व्यक्ति से अनुरोध करेंगे कि मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को जड़ से मिटाने में सहयोग प्रदान करें.

आगर। जिला मुख्यालय से महज14 किमी दूर सालरी गांव के जालमसिंह पर्यावरण और पशु प्रेमी है. जालम सिंह ने गांव में एक घोषणा की है, कि उनके मरने के बाद मृत्युभोज न किया जाए. जिसकी सभी ग्रामीण तारीफ कर रहे हैं.

कुप्रथा के खिलाफ जालम सिंह

जालम सिंह ने कहा कि इन्होंने1968 में एक धार्मिक कार्यक्रम में मृत्युभोज प्रथा को समाप्त करने का संकल्प लिया था. जो आज हर किसी के लिए एक मिसाल साबित हो रहा है. जालम सिंह की इस पहल का समर्थन उनका पूरा परिवार तक करता है. जालम सिंह ने कहा कि मैंने अपनी माता जी के मरने के बाद उनकी मृत्युभोज नहीं किया और जब मेरी पिताजी की मृत्यु 1994 में हुई उस समय भी मैंने मृत्युभोज नहीं किया था.

जालम सिंह खुद 40सालों से किसी के भी मृत्युभोज कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. इतना ही नहीं वे इतने सालों से लोगों को इस कुप्रथा को बंद करने के लिए समझाते आ रहे हैं. जालमसिंह ने स्वयं का मृत्युभोज न हो इसके लिए उन्होंने जीवित रहते ही एक घोषणा पत्र बनवा लिया है. जिसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि उनकी मृत्यु उपरांत उनका किसी प्रकार का मृत्युभोज का कार्यक्रम न किया जाएं, साथ ही समाज जनों के लिए लिखा है कि उनकी मृत्यु उपरांत उनके परिजनों पर मृत्युभोज कराने के लिए किसी प्रकार का दबाव न बनाया जाए. यह भी बता दे कि जालमसिंह ने इस कुप्रथा को बंद करने की शुरआत अपने अपने घर से है.

परिवार और रिश्तेदार की सहमति पर बोलते हुए जालम सिंह ने कहा कि मैंने इस प्रथा को बंद करने के लिए घोषणा पत्र तैयार किया है कि मेरी मृत्यु के बाद मृत्युभोज नहीं किया जाए. इसके लिए जालम सिंह समाज, अन्य संगठनों के हर जवाबदार व्यक्ति से अनुरोध करेंगे कि मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को जड़ से मिटाने में सहयोग प्रदान करें.

Intro:आगर मालवा
-- मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को बंद करने के लिए ग्राम सालरी के 78 वर्षीय बुजुर्ग जालमसिंह की पहल काबीले तारीफ है। मृत्युभोज को आर्थिक नुकसान तथा एक निचली विचारधारा मानते हुवे उन्होंने 5 दशक पहले वर्ष 1968 में एक धार्मिक कार्यक्रम में मृत्युभोज प्रथा को समाप्त करने का ऐसा संकल्प लिया है जो आज हर किसी के लिए एक मिसाल साबित हो रहा है। जालमसिंह की इस पहल का समर्थन उनका पूरा परिवार तक करता है। वे पिछले 40 से अधिक वर्षो से किसी के भी मृत्युभोज कार्यक्रम में शामिल नही हुवे इतना ही नही वे इतने सालों से लोगो को इस कुप्रथा को बंद करने के लिए समझाते आ रहे है लेकिन कुछ लोगो को यदि छोड़ दिया जाए तो बाकी लोग इसको एक नियमित प्रथा के नाम पर ढोते चले आ रहे है हालांकि जालमसिंह ने स्वयं का मृत्युभोज न हो इसके लिए उन्होंने जीवित रहते ही एक घोषणा पत्र बनवा लिया जिसमे उन्होंने उल्लेख किया है कि उनकी मृत्यु के उपरांत उनका किसी प्रकार का मृत्युभोज का कार्यक्रम न किया जाए वही समाजजनों के लिए लिखा है कि उनकी मृत्यु उपरांत उनके परिजनों पर मृत्युभोज कराने के लिए किसी प्रकार का दबाव न बनाया जाए। यह भी बता दे कि जालमसिंह ने इस कुप्रथा को बंद करने की शुरआत अपने अपने घर से ही कि उन्होंने अपने माता-पिता का मृत्युभोज नही दिया समाज ने विरोध किया तो मृत्युभोज में लगने वाली वाली राशि उन्होंने एक अच्छे कार्य मे दान दे दी।


Body:बता दे जिला मुख्यालय से महज 14 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम सालरी में रहने वाले जालमसिंह पर्यावरण तथा पशु प्रेमी भी है। अपना मृत्युभोज न करने के घोषणा पत्र में उन्होंने उल्लेख किया है मृत्युभोज करने से निश्चित ही आर्थिक नुकसान होता है इसलिए इस राशि से ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए जाएं, पशु-पक्षी के लिए बेहतर कार्य किये जायें, गरीबो की शिक्षा पर यह राशि खर्च की जाए। बता दे कि जालमसिंह की पशु तथा पर्यावरण के प्रति प्रेम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके घर के बाड़े में गाय के साथ ही अन्य पशु भी बड़ी संख्या में है। पर्यावरण प्रदूषित न हो इसके लिए वे अपने घर पर खाना बनाने के लिए लकड़ी या एलपीजी गैस का उपयोग करने की बजाय गोबर गैस का उपयोग करते है वही फसलों को उपजाऊ बनाने के लिए खेत मे रासायनिक खाद का उपयोग करने की बजाय स्वयं के घर मे गोबर से निर्मित होने वाली जैविक खाद का उपयोग करते है।


Conclusion:जालमसिंह ने बताया कि वे अपने बनाये गए इस घोषणापत्र को उनकी समाज व अन्य संगठनों के हर जवाबदार व्यक्ति के पास भेजेंगे और अनुरोध करेंगे कि मृत्युभोज एक कुप्रथा है इसे जड़ से मिटाना है। गरीब तबके के व्यक्ति दिन-रात मेहनत करके कुछ राशि जोड़ता है और घर मे किसी की मृत्यु होने पर अपनी गाड़ी कमाई एक दिन में खत्म कर देता है। इस कुप्रथा को बंद करने के लिए वे हर स्तर पर प्रयास करेंगे।
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